Main Slideउत्तर प्रदेशबड़ी खबर

हरियाणा विधानसभा की दहलीज लांघने को बेताब ‘आप’, लोकसभा चुनाव में निराशाजनक रहा प्रदर्शन

हरियाणा में विधानसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है। राजनीतिक दल आदर्श आचार संहिता लागू होने से पहले ही अपनी बिसात बिछा चुके हैं। प्रदेश में सत्ता के लिए मुख्य मुकाबला तो भाजपा और कांग्रेस के बीच ही माना जा रहा है, लेकिन क्षेत्रीय दल इसे रोचक बनाने में लगे हुए हैं। इनेलो, जजपा, बसपा, लोसुपा के साथ ही आम आदमी पार्टी यानि आप ने भी अपने तरकश में तीर जमा कर लिए हैं। आप इस बार विधानसभा की दहलीज अपने बूते पार करने का दम भर रही है। पार्टी ने 2014 का विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा था। हालांकि, 2014 और 2019 का लोकसभा चुनाव आप लड़ चुकी है। इन दोनों चुनावों में पार्टी का राजनीतिक अनुभव हरियाणा में अच्छा नहीं रहा। पार्टी कोई भी लोकसभा सीट जीतने में कामयाब नहीं हो पाई। इस बार विधानसभा चुनाव में आप अपने दम पर ताल ठोकने जा रही है। प्रदेश में नवीन जयहिंद पार्टी का चेहरा हैं। लंबे समय से प्रदेशाध्यक्ष की कमान उनके हाथ है। समय-समय पर वह प्रदेश सरकार को जनहित के मुद्दों पर घेरते रहे हैं। धरना-प्रदर्शन करने में भी वह पीछे नहीं रहे।

बावजूद इसके हरियाणा में आप अपनी जड़ें उतनी मजबूत नहीं कर पाई जितनी चुनावी रण फतह करने के लिए होनी चाहिए। पार्टी का संगठन तो हर जिले में है, मगर जनता का जुड़ाव उतना ज्यादा नहीं है। जयहिंद के अलावा कोई कद्दावर नेता या बड़ा चेहरा पार्टी के पास नहीं। लोकसभा चुनावों में लचर प्रदर्शन के कारण भी पार्टी का माहौल प्रदेश में नहीं बन पाया। एक समय पार्टी को भाजपा, कांग्रेस के अलावा तीसरे विकल्प के तौर पर देखा जा रहा था, लेकिन आप खुद को स्थापित करने में नाकाम रही। जिससे उसकी विधानसभा चुनाव की राह आसान नहीं दिख रही।

खाता खोलने के लिए करनी होगी कड़ी मेहनत

लोकसभा चुनाव में उम्मीदों के विपरीत प्रदर्शन के बाद आप को विधानसभा चुनाव से काफी उम्मीदें हैं। पार्टी को आस है कि सरकार से नाराज वोटर उनके साथ आएगा। जिससे पार्टी विधानसभा चुनाव में दमदार प्रदर्शन करते हुए खाता खोलेगी। अगर ऐसा न हुआ तो अभी और इंतजार आप को करना पड़ सकता है। आप की नजरें टिकट न मिलने की सूरत में भाजपा और कांग्रेस से बगावत करने वालोंपर भी टिकी हुई हैं।

दिल्ली की तरह घर-घर तक पहुंच नहीं
हरियाणा में आप खुद को भले ही दमदार स्थिति में आंके, लेकिन सांगठनिक तौर पर उसका ढांचा दिल्ली की तरह मजबूत नहीं है। पार्टी प्रदेश में घर-घर तक पहुंच नहीं बना पाई है। न ही प्रदेश में ऐसा कोई बड़ा आंदोलन खड़ा किया, जिससे कि जनता भाजपा, कांग्रेस और अन्य दलों को छोड़कर आप के साथ आए। दिल्ली में पार्टी केवालंटियर और कार्यकर्ता बड़ी संख्या में थे, यहां ऐसा नहीं है। दिल्ली के साथ सटे इलाकों में ही पार्टी की कुछ पकड़ है। वहां भी लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा।

अंदरखाने पार्टी में विरोधी सुर
नवीन जयहिंद को आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल का खासमखास माना जाता है। इसलिए हरियाणा की कमान लंबे समय से उनके पास है। लोकसभा चुनाव के खराब नतीजों के बाद उनके खिलाफ कुछ लोकसभा अध्यक्षों ने बगावती तेवर भी दिखाए थे, जिन्हें पार्टी ने तत्काल बाहर का रास्ता दिखा दिया था। ऐसे में पार्टी के विधानसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किसी चुनौती से कम नहीं है। जयहिंद कैसे खुद को इस चुनाव में साबित कर दिखाते हैं, ये भी देखने लायक होगा। चूंकि, अभी तक सफलता उनसे दूर ही रही है।

Related Articles

Back to top button