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उत्तराखंड: ग्लोबल वार्मिग का असर, खतरे में साल के वृक्षों का अस्तित्व

विश्व प्रसिद्ध कार्बेट व कार्बेट टाइगर रिजर्व के अलावा उत्तराखंड के सात वन प्रभागों में फैले साल के वृक्षों पर संकट मंडराने लगा है। वन विभाग के अनुसंधान वृत्त की सांख्यिकी शाखा की अध्ययन रिपोर्ट इसी तरफ इशारा कर रही है। रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के चलते उत्तराखंड में न सिर्फ साल की वार्षिक वृद्धि दर घटी है, बल्कि इसका प्राकृतिक पुनरोत्पादन भी बुरी तरह प्रभावित हुआ है। और तो और साल के पेड़ों में समय से पहले पतझड़ होने के कारण ये रोगों की चपेट में आ रहे हैं। यदि यही परिदृश्य रहा तो भविष्य में साल का अस्तित्व मिटते देर नहीं लगेगी। इस बारे में वन मुख्यालय को रिपोर्ट भेजी जा रही है।

उत्तराखंड के 12.10 फीसद हिस्से में साल के वृक्षों का फैलाव है। ये हल्द्वानी, रामनगर, हरिद्वार, देहरादून, तराई केंद्रीय, पूर्वी व पश्चिमी वन प्रभागों के अलावा राजाजी व कार्बेट टाइगर रिजर्व में फैले हैं। पिछले कुछ वर्षों से साल की ग्रोथ रेट कम होने और इसके रोगों की चपेट में आने के मद्देनजर वन विभाग के अनुसंधान वृत्त ने अध्ययन कराने का निर्णय लिया। सांख्यिकी शाखा ने साल के वर्ष 1929 से 2012 तक के आंकड़ों के साथ ही रामनगर वन प्रभाग के मूसाबंगर साल वन क्षेत्र का विश्लेषण किया।

अध्ययन रिपोर्ट में चौंकाने वाली तस्वीर सामने आई। वन संरक्षक अनुसंधान वृत्त संजीव चतुर्वेदी के मुताबिक साल के वनों पर जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक दुष्प्रभाव सामने आया है। इसी के चलते साल के बीज समय से पहले परिपक्व होकर गिर रहे हैं। उन्होंने बताया कि साल के बीज वर्षाकाल से ठीक पहले जून आखिर में गिरते थे और फिर बरसात होते ही अंकुरित हो जाते थे। अब इसके बीज अपै्रल आखिर व मई पहले हफ्ते में गिर रहे हैं। तब तापमान अधिक होने के साथ ही जंगलों में सूखे की स्थिति रहती है। साल के बीज का जीवनकाल एक से दो हफ्ते के बीच होता है। इस अवधि में आद्र्रता न होने से बीज नष्ट हो जा रहे हैं। ऐसे में साल के प्राकृतिक पुनरोत्पादन में भारी गिरावट आई है। यानी नए पौधे नहीं उग पा रहे हैं। यही नहीं, साल के पतझड़ के समय व अंतराल में परिवर्तन से साल में डाइंग बैक की समस्या आने के साथ ही कई रोग भी इसे जकड़ रहे हैं।

घट रही वृद्धि दर

अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार विश्लेषण में बात सामने आई कि साल की वार्षिक वृद्धि दर लगातार कम हो रही है। रिपोर्ट में मूसाबंगर का जिक्र करते हुए बताया गया है कि वर्ष 1996 से 2006 तक यहां साल के वृक्ष के आयतन में प्रति हेक्टेयर वार्षिक वृद्धि दर 2.11 घन मीटर थी। इसके बाद 2006 से 2012 के बीच यहां इस वृद्धि दर में भारी गिरावट दर्ज की गई। इस अवधि में यहां यह दर 1.847 दर्ज की गई। ऐसी ही स्थिति अन्य क्षेत्रों में भी है।

बेहद अहम है साल

इमारती लकड़ी के लिहाज से साल बेहद अहम है। अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मैदानी क्षेत्रों में अन्य वृक्ष प्रजातियों को साल की सहचरी कहा जाता है। राज्य में इसके जंगलों का कुल क्षेत्र है 3.13 लाख हेक्टेयर है। प्रतिवर्ष इनसे अनुमानित 4.79 करोड़ घन मीटर काष्ठ मिलता है।

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