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जीत तो गई भाजपा लेकिन अब मुख्यमंत्री के नाम पर दोनों राज्यों में फंसा पेंच

गुजरात और हिमाचल प्रदेश में जीत के बाद जहां भाजपा में जश्न का माहौल है वहीं एक उलझन भी खड़ी हो गई है। हिमाचल और गुजरात में भाजपा को खुलकर वोट करने वाली जनता ने इस बार उसके ‌सामने एक पेंच भी फंसा दिया है जिसका हल निकालना अब पार्टी के लिए टेढी खीर हो गया है।
जीत तो गई भाजपा लेकिन अब मुख्यमंत्री के नाम पर दोनों राज्यों में फंसा पेंच
ये पेंच है दोनों राज्यों में मुख्यमंत्री को लेकर। हालांकि दोनों ही राज्यों में भाजपा ने मुख्यमंत्री के नाम का ऐलान चुनाव से पहले ही कर दिया था लेकिन चुनावों परिणामों ने दोनों ही जगह सारे समीकरण उलझा दिए हैं।

हिमाचल में भाजपा प्रचंड बहुमत से सत्‍ता में लौटी है तो वहां मुख्यमंत्री उम्‍मीदवार प्रेम कुमार धूमल अत्प्रत्यशित रूप से अपनी सीट गंवा बैठे हैं, जबकि मोदी के गृह राज्य गुजरात में भाजपा जैसे तैसे सत्ता में तो लौटी है लेकिन वहां जीत का अंतर काफी कम होने से मुख्यमंत्री विजय रूपाणी की कुर्सी दांव पर लग गई है।

यही कारण है कि चुनाव परिणाम आते ही दोनों राज्यों में मुख्यमंत्री के चेहरों को लेकर खुशफुसाहट शुरू हो चुकी है। 

जीत के बाद भी विजय रूपाणी के चेहरे पर नहीं दिखाई दी विजयी मुस्कान

भाजपा ने गुजरात में जैसे तैसे जीतकर अपनी लाज तो बचा ली लेकिन पिछली 22 सालों में पहली बार जिस तरह वह 100 से कम सीटों पर सिमट गई है उसका ठीकरा मुख्यमंत्री विजय रूपाणी के सिर पर फूटना तय माना जा रहा है।

खुद पार्टी में अंदरखाने इस बात की चर्चा है कि जो गुजरात में जो जीत मिली उसमें स्‍थानीय नेतृत्व से ज्यादा प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे का बड़ा हाथ है, जिन्होंने धुआंधार रैलियां कर भाजपा के हाथ से खिसकती बाजी को वापिस अपने हाथों में ले लिया।

पाटीदार आंदोलन से ठीक से न निपटने के कारण ही पूर्व मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी थी अब उसी आंदोलन की आंच में रूपाणी अपने हाथ जला बैठे। ऐसे में पार्टी नेतृत्व का मानना है कि गुजरात में भाजपा को प्रधानमंत्री मोदी की तरह ही किसी मजबूत चेहरे को बागडोर सौंपनी होगी जो पार्टी के गढ़ में उसका झंडा बुलंद कर सके।

खुद विजय रूपाणी भी अपने भविष्य को लेकर निश्चिंत नहीं दिखाई दे रहे हैं, इसकी बानगी उस समय भी दिखी जब गुजरात में जीत दर्ज करने के बाद वह मीडिया से मुखातिब हुए। उस दौरान न उनके चेहरे पर विजयी मुस्कान दिखाई दी, न कोई खास उत्साह। मुख्यमंत्री के नाम पर पूछे गए सवाल पर उन्होंने यह कहकर जवाब दिया कि ये बड़ा मुद्दा नहीं है पार्टी जिसे जिम्मेदारी सौंपेगी वो स्वीकार किया जाएगा।

रूपाणी ये कह कर भी अपने भाव स्पष्ट कर गए कि मुख्यमंत्री का पद बड़ा मुद्दा नहीं है, हमारे यहां पार्टी का जीतना महत्वपूर्ण है। गौरतलब है कि नरेन्द्र मोदी के हटने के बाद से ही गुजरात में सीएम का पद भाजपा के लिए बड़ा मुद्दा रहा है।

राज्य में पार्टी की आपसी खींचतान में आनंदीबेन पटेल अपनी कुर्सी गंवा बैठी तो उनकी जगह कुर्सी संभालने वाले विजय रूपाणी भी कई मजबूत दावेदारों को बाईपास कर यहां तक पहुंचने में सफल हुए थे। ऐसे में अब गुजरात में समीकरण बदलते ही एक बार फिर सीएम पद के लिए विजय रूपाला और उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल जैसे नाम दोबारा चर्चाओं में आ गए हैं। 

हिमाचल में धूमल और नड्डा के बीच फंस सकता है पेंच 

माना जा रहा है कि हार्दिक पटेल की आगे की पटेल राजनीति खत्म करने के लिए भी भाजपा नितिन पटेल पर दांव लगा सकती है जिन्हें रूपाणी से पहले भी मजबूत दावेदार माना जा रहा था। हार्दिक पटेल ने ही भाजपा को गुजरात में सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है।

दूसरी ओर हिमाचल प्रदेश में उलझन और बड़ी है, जहां उसे बहुमत तो शानदार मिला लेकिन उसका कमांडर ही अपनी सीट गंवा बैठा। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये ही खड़ा हो गया है कि क्या सीट हारने के बाद भी भाजपा उस चेहरे को मुख्यमंत्री बनाएगी जिसके नाम पर वह चुनावों में उतरी थी या फिर किसी दूसरे चेहरे को यह मौका दिया जाएगा, शायद जेपी नड्डा को।

नड्डा इसलिए क्योंकि, चुनाव से पहले इस पद के लिए वह धूमल के मुकाबले ज्यादा मजबूत दावेदार थे और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह का भी उन्हें नजदीकी माना जाता है। हालांकि स्‍थानीय स्तर पर नड्डा के मुकाबले धूमल ज्यादा लोकप्रिय चेहरा हैं, और कार्यकर्ताओं के बीच उनकी स्वीकार्यता ज्यादा है।

इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कुड़लहर सीट से जीत दर्ज करने वाले विधायक वीरेन्द्र कंवर विधायक ने जीतते ही धूमल के लिए अपनी सीट छोड़ने का प्रस्ताव दे दिया। हालांकि पार्टी की ओर से दोनों राज्यों के लिए पर्यवेक्षकों के नाम तय कर दिए गए हैं।

गुजरात के लिए जहां वित्त मंत्री अरुण जेटली तो हिमाचल के लिए रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण को प्रभारी बनाया गया है। जो स्‍थानीय नेताओं और पार्टी कार्यकर्ताओं से बात कर मुख्यमंत्री के नाम का चयन करेंगे, जिसके बाद भाजपा संसदीय बोर्ड की बैठक में उस पर मुहर लगेगी।

 
 

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