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2012 में हुए फैसले को आयकर विभाग ने बताया लंबित, सुप्रीम कोर्ट की फटकार, 10 लाख का जुर्माना ठोका

सुप्रीम कोर्ट ने अदालत को गुमराह करने वाले आयकर विभाग के एक बयान पर उसे जमकर फटकार लगाई है। यही नहीं, कोर्ट ने उसे 10 लाख रुपये हर्जाना भरने का भी आदेश दिया है। साथ ही अदालत ने आयकर विभाग को फटकार लगाते हुए यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट कोई पिकनिक मनाने की जगह नहीं है। अदालत के साथ इस तरह का रवैया बिल्कुल भी जायज नहीं है। 

यह मामला 2016 का है। गाजियाबाद आयकर आयुक्त ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के अगस्त 2016 के एक फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। दरअसल, हापुड़ पिलखुवा डेवलपमेंट अथॉरिटी के टैक्स असेसमेंट संबंधी आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण के फैसले के खिलाफ विभाग की अपील हाईकोर्ट ने रद्द कर दी थी। इसी मामले को लेकर आयकर विभाग सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। 

विभाग ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि ऐसी एक याचिका उन्होंने 2012 में कोर्ट में दाखिल की थी, जो अभी तक लंबित है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में सितंबर 2012 में ही फैसला सुना चुका है। जस्टिस एमबी लोकुर, एस अब्दुल नजीर और दीपक गुप्ता की पीठ ने विभाग की याचिका को खारिज कर दिया और याचिकाकर्ता को फटकार लगाते हुए कहा कि आप गुमराह करने वाले बयान दे रहे हैं। 

पीठ ने कहा कि आयकर विभाग ने 596 दिन की देरी से याचिका दायर की और इस देरी के अपर्याप्त और असुविधाजनक कारण गिनाए। पीठ ने विभाग के वकील से कहा कि कृप्या ऐसा न करें। यह सुप्रीम कोर्ट में पेश आने का तरीका नहीं है।

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