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दिल्ली मेट्रो से इस साल महंगे किराये ने उतारे 4.2 लाख यात्री, सीएसई की रिपोर्ट में खुलासा

दिल्ली, लखनऊ, जयपुर और चेन्नई जैसे शहरों में सार्वजनिक परिवहन के प्रति लोगों का झुकाव कम होता जा रहा है। दिल्ली मेट्रो का किराया बढ़ने से इस वर्ष अब तक करीब 4.2 लाख यात्रियों की कमी आई है। इससे न सिर्फ सड़कों पर वाहनों का बोझ बढ़ा है, बल्कि प्रदूषण भी बढ़ा है।

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि कारगर नीति न होने से 2030-31 तक देश में निजी वाहनों की संख्या 50 फीसदी हो सकती है।

स्वच्छ परिवहन को लेकर मंगलवार को यह रिपोर्ट जारी की गई। सीएसई की ओर से टिकाऊ सार्वजनिक परिवहन और उसकी पहुंच को लेकर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला आयोजित की जा रही है।

रिपोर्ट में यह भी तथ्य सामने आया है कि पिछले 60 वर्षों में देश में 10.5 करोड़ से ज्यादा वाहन पंजीकृत हुए, जबकि 2009 से 2015 के बीच पंजीकृत वाहनों की संख्या 10.5 करोड़ से कहीं ज्यादा है। 

75 से घटकर 44 फीसदी रह जाएगा सार्वजनिक परिवहन

रिपोर्ट के मुताबिक शहरों में परिवहन के लिए निजी वाहनों की मांग बढ़ रही है, जबकि सार्वजनिक परिवहन के लिए वाहनों की संख्या लगातार कम हो रही है। वर्ष 2000-01 के बीच सार्वजनिक परिवहन की हिस्सेदारी 75.5 फीसदी थी, जो 2030-31 तक 44.7 फीसदी तक रह जाएगी। वहीं निजी वाहनों की संख्या 50 फीसदी से ज्यादा होगी।  

सार्वजनिक वाहनों से हो रहा मोहभंग
रिपोर्ट में कहा गया है कि कमजोर नीति के कारण अकेले मेट्रो और बस ही यात्रियों का बोझ उठा रही हैं। शहरों के पास यात्रियों को प्रोत्साहित करने वाली हर तरह के परिवहन साधनों के विकास की कोई योजना नहीं है। सार्वजनिक वाहनों के प्रति मोहभंग के पीछे सिर्फ किराए का महंगा होना ही वजह नहीं है। सार्वजनिक परिवहन के साधनों को समय के साथ आधुनिक नहीं बनाया जा रहा है।

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