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प्रशासन ने नहीं किया सहयोग तो चट्टान तोड़कर ग्रामीणों ने ही बना डाली सड़क

एक दशरथ मांझी थे जिन्होंने असंभव को संभव करके समाज और सरकार के सामने स्वयं के प्रयास से बेहतर परिणाम का उदाहरण प्रस्तुत किया। कुछ इसी तर्ज पर जनपद के सीमावर्ती एक गांव के ग्रामीण अपने सैकड़ों हाथों में कुदाल, फावड़ा लेकर पहाड़ को समतल कर आने-जाने का रास्ते बनाने में जुट गए हैं। उन्होंने यह साबित कर दिया कि प्रशासन सहयोग नहीं भी करेगा तो ग्रामीण स्वसाधन से ही सड़क बना लेंगे।

दरअसल, बीजपुर थाने की सीमा से सटे बैढ़न थाना अंतर्गत ग्राम पंचायत क्षेत्र गोभा का टोला कुठीलाखांड़ बरन नदी के किनारे है। यह नदी उत्तर प्रदेश-मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ की सीमा बनाती है। चूंकि सीमा विवाद है इसलिए विकास भी बाधित है। इस वजह से नदी पर पुल तक नहीं बना। इस रास्ते से तीनों राज्य के लोग 24 घंटे लगातार आते-जाते रहते हैं। नदी से कुछ दूर मध्य प्रदेश में प्रधानमंत्री सड़क योजना से सड़क महज 300 मीटर दूरी पर बना है। नदी से उत्तर प्रदेश की सड़क की दूरी सिर्फ 800 मीटर है। दोनों प्रांतों की यह दूरी बताने के लिए काफी है कि छोटे से कार्य के नहीं होने से लोगों को सदैव पहाड़ी रास्ते से जूझना पड़ता है। लोग जान हथेली पर रखकर यात्रा तय करते हैं।

ग्रामीणों के अनुसार इस रास्ते से प्रतिदिन सैकड़ों संविदा श्रमिक अपने जीविकोपार्जन के लिए लोग एनटीपीसी रिहंदनगर के पावर प्लांट में काम करने जाते हैं। शासन-प्रशासन से सड़क निर्माण की मांग करने के बाद अभी तक कोई कार्य नहीं हुआ। मंगलवार को ग्रामीण स्वयं ही अपने आवागमन के लिए फरसा, कुदाल और साबल आदि लेकर सड़क निर्माण में जुट गए।

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