उत्तराखंड

अपना जंगल-अपनी शान, इस गांव की यही पहचान; जानिए इस गांव की कहानी

लग्जरी गाड़ी, आलीशान बंगला, अपने स्तर के लोगों के साथ उठना-बैठना, खाना-पीना आदि को लोग अपनी शान-ओ-शौकत समझते हैं, लेकिन उत्तरकाशी के डख्यियाट गांव में लोग अपनी शान-ओ-शौकत इन विलासिता की वस्तुओं को नहीं, बल्कि गांव के पास स्थित बांज के घने जंगल को मानते हैं।

55.54 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला यह जंगल वन विभाग का नहीं, बल्कि ग्रामीणों ने इसे राजस्व भूमि पर खड़ा किया है। यह उनकी विरासत भी है।

डख्यियाट गांव उत्तरकाशी जिले की बड़कोट तहसील में पड़ता है। जिला मुख्यालय से सौ किमी दूर स्थित यह गांव सड़क से जुड़ा हुआ है। पूर्व सैनिक एवं गांव के पूर्व प्रधान जयवीर सिंह जयाड़ा बताते हैं कि वह मूलरूप से टिहरी जिले में सिद्धपीठ चंद्रबदनी के पास नौसा गांव के रहने वाले हैं। लेकिन 16वीं सदी में उनके पूर्वज यमुना घाटी में आ गए थे। तब वे अपनी पहचान के लिए साथ में बांज के पौधे भी लाए थे, जिन्हें गांव के निकट बंजर भूमि पर रोपा गया। इसी के निकट मां चंद्रबदनी का छोटा-सा मंदिर भी बनाया गया था।

आजादी के बाद से ग्रामीणों ने पूर्वजों के इस जंगल का धरोहर के रूप में संरक्षण करना शुरू किया। इसके बाद से जंगल लगातार बढ़ता चला गया। जयवीर बताते हैं कि वर्ष 1980 में वे जब गांव के प्रधान बने तो उन्होंने बांज के जंगल के संरक्षण को वन पंचायत का गठन किया। तब यह उत्तरकाशी जिले की पहली वन पंचायत थी, जिसके अध्यक्ष जगमोहन सिंह जयाड़ा चुने गए। उस दौर में भी बड़े स्तर पर बांज के पौधों का रोपण किया गया, जो आज 55.54 हेक्टेयर में फैला घना जंगल बन चुका है।

इस जंगल के सिवा और कहीं बांज के पेड़ नहीं

वर्तमान में वन पंचायत के सरपंच प्रकाश जयाड़ा कहते हैं कि गांव के पास बांज के पुश्तैनी जंगल को ग्रामीण अपनी शान और विरासत मानते हैं। डख्यियाट गांव के इस जंगल के अलावा आसपास दूर-दूर तक बांज के पेड़ नजर नहीं आते। गांव के पास राजस्व विभाग की दस हेक्टेयर बंजर भूमि है। इस पर बांज का जंगल तैयार करने के लिए जिला प्रशासन को प्रस्ताव भेजा गया है

बांज के जंगल से आबाद हैं सात जलस्रोत

डख्यियाट गांव के ऊपर बांज के जंगल के कारण गांव में सात स्थानों पर प्राकृतिक जल स्रोत मौजूद हैं। इनमें वर्षभर पानी रहता है। डख्यियाट गांव के प्रधान धनवीर जयाड़ा बताते हैं कि गांव में लगभग 200 परिवार हैं, जिन्हें इन प्राकृतिक स्रोतों से पर्याप्त पानी मिल जाता है। गांव के प्राकृतिक जलस्रोत से पेयजल योजना भी बनाई गई है, जिससे घर-घर आपूर्ति होती हैं। आंगन में सब्जी उत्पादन के लिए भी पर्याप्त पानी मिल जाता है।

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