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अयोध्या मामलाः सुप्रीम कोर्ट में आज 5 जजों की पीठ करेगी सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस सहित पांच जजों की संवैधानिक बेंच आज अयोध्या मामले पर सुनवाई करेगी. पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कोर्ट की रजिस्ट्री को आदेश दिया था कि वह देखे कि अयोध्या केस से जुड़ें सभी दस्तावेज और सभी फ़ाइलों आदि का अंग्रेज़ी में सही तरीक़े से अनुवाद हो गया है या नहीं, और फिर वह इसकी जानकारी कोर्ट को दे ताकि अदालत सुनवाई शुरू कर सके. पांच जजों की बेंच में चीफ जस्टिस रंजन गगोई के अलावा जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर शामिल हैं. कोर्ट 16 अपीलों पर सुनवाई करेगा.

इस बीच 29 जनवरी को केंद्र सरकार ने SC में अर्ज़ी दाखिल कर अयोध्या की विवादित जमीन को मूल मालिकों को वापस देने की अनुमति देने की अनुमति मांगी है. अर्ज़ी  में कहा गया है कि 67-एकड़ एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया गया था, जिसने लगभग 2.77 एकड़ विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि का अधिग्रहण था.

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि वह विवादित जमीन पर अपने 31.3.03 के यथास्थिति बनाए रखने के आदेश में संशोधन करे या उसे वापस लें. केंद्र का कहना है कि राम जन्मभूमि न्यास से 1993 में जो 42 एकड़ जमीन अधिग्रहित की थी वह मूल मालिकों को वापस करना चाहती है. केंद्र सरकार ने कहा है कि अयोध्या जमीन अधिग्रहण कानून 1993 के ख़िलाफ़ मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी जिसमें उनहोनें सिर्फ़ .313 एकड़ जमीन पर ही अपना हक़ जताया थी, बाकि जमीन पर पर मुस्लिम पक्ष ने कभी भी दावा नहीं किया.

जमीन का विवाद सिर्फ 2.77 एक़ड़ का है बाकि जमीन पर कोई विवाद नहीं है. इसलिए उस पर यथास्थित बरकरार रखने की जरूरत नही है. इसीलिए सरकार चाहती है जमीन का कुछ हिस्सा राम जन्भूमि न्यास को दिया जाए और सुप्रीम कोर्ट इसकी इज़ाजत है

1991 से 1993 के बीच केंद्र ने अयोध्या में कुल 67.703 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था. इसमें से 0.313 एकड़ पर विवादित ढांचा था, जिसे 6 दिसंबर 1992 को गिरा दिया गया था. सरकार के मुताबिक शेष 67.390 एकड़ जमीन गैर-विवादित, इसमें से 42 एकड़ हिस्सा राम जन्मभूमि न्यास के पास

2.77 एकड़ परिसर के अंदर है विवादित जमीन
अयोध्या में 2.77 एकड़ परिसर में राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद का विवाद है. इसी परिसर में 0.313 एकड़ का वह हिस्सा है, जिस पर विवादित ढांचा मौजूद था और जिसे 6 दिसंबर 1992 को गिरा दिया गया था. रामलला अभी इसी 0.313 एकड़ जमीन के एक हिस्से में विराजमान हैं. केंद्र की अर्जी पर भाजपा और सरकार का कहना है कि हम विवादित जमीन को छू भी नहीं रहे.

अर्जी में केंद्र की मुख्य दलीलें 

‘‘केंद्र ने 2.77 एकड़ के विवादित परिसर समेत कुल 67.703 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था. अब हम अतिरिक्त और गैर-विवादित जमीन उनके मूल मालिकों को लौटाने की अनुमति चाहते हैं और यथास्थिति बरकरार रखने के 2003 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले में बदलाव चाहते हैं.’’

‘‘मुस्लिम समाज ने भी 0.313 एकड़ के मूल विवादित क्षेत्र पर ही अपना दावा जताया है, जहां 1992 से पहले विवादित ढांचा मौजूद था.’’

‘‘1993 के कानून के तहत अधिग्रहित की गई शेष संपत्ति पर किसी भी मुस्लिम पक्ष की ओर से मालिकाना हक का दावा नहीं किया गया है.’’

‘‘जमीनें उनके मूल मालिकों को लौटाने की मांग राम जन्मभूमि न्यास की है. न्यास ने अपनी 42 एकड़ जमीन मांगी है.’’

‘‘सरकार को एक प्लान मैप बनाकर न्यास और अन्य मूल भूमि मालिकों को उनकी जमीन लौटा देने में सैद्धांतिक रूप से कोई आपत्ति नहीं है, बशर्ते विवादित स्थल तक उचित पहुंच बनी रहे.’’

‘‘31 मार्च 2003 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ विवादित जमीन पर यथास्थिति बरकरार रखने का निर्देश देने की बजाय आसपास की अधिग्रहित जमीनों पर भी यथास्थिति बनाए रखने के निर्देश दिए थे.’’

‘‘2003 के निर्देश में भी सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर कहा था कि इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आने तक वहां यथास्थिति बनाए रखी जाए.’’

‘‘1994 के फारुकी केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर केंद्र चाहे तो सेंट्रल एरियाज ऑफ अयोध्या एक्ट के तहत मूल विवाद के 0.313 एकड़ इलाके के अलावा अतिरिक्त अधिग्रहित जमीनें उनके मूल मालिकों को लौटा सकता है.’’

‘‘गैर-विवादित जमीन लौटाने के फैसले की न्यायिक समीक्षा या उसकी संवैधानिक वैधता जांचने की जरूरत नहीं है.’’

इलाहाबाद हाईकोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने 30 सितंबर 2010 को 2:1 के बहुमत से 2.77 एकड़ के विवादित परिसर के मालिकाना हक पर फैसला सुनाया था. यह जमीन तीन पक्षों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला में बराबर बांट दी गई थी. हिंदू एक्ट के तहत इस मामले में रामलला भी एक पक्षकार हैं. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा था कि जिस जगह पर रामलला की मूर्ति है, उसे रामलला विराजमान को दे दिया जाए. राम चबूतरा और सीता रसोई वाली जगह निर्मोही अखाड़े को दे दी जाए. बचा हुआ एक-तिहाई हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया जाए.

इस फैसले को निर्मोही अखाड़े और सुन्नी वक्फ बोर्ड ने नहीं माना और उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई.  शीर्ष अदालत ने 9 मई 2011 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी. सुप्रीम कोर्ट में यह केस तभी से लंबित है.

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