विदेश

इराक: दुनिया का सबसे समृद्ध देश हो सकता था, युद्ध और आतंकवाद से हो गया बर्बाद

कभी मैसोपोटामिया की सभ्यता का प्रतीक रहा इराक आज एक युद्ध में उलझे देश के तौर पर जाना जाता है. शुरू से ही सभ्यताओं का उद्गम स्थल रहा इराक आज पिछले कई सालों से आंतरिक सशस्त्र संघर्ष में उलझा हुआ है. 2017 में दुनिया के चौथा सबसे ज्यादा कच्चा तेल देने वाले पश्चिम एशिया के इस देश को अब भी शांति का इंतजार है. इराक का अधिकारिक नाम रिपब्लिक ऑफ ईराक है. अकूत तेल भंडार होने के बाद भी इराक अपेक्षाकृत उन्नति नहीं कर सका. यहां का समृद्ध इतिहास का कारण इस क्षेत्र की बड़ा उपजाऊ मैदान है.

भौगोलिक स्थिति

राजनैतिक रूप से इराक पूर्व में ईरान, उत्तर में तुर्की, पश्चिम में सीरिया, दक्षिण पश्चिम में जॉर्डन, दक्षिण में सउदी अरब, दक्षिणपूर्व में कुवैत से घिरा है. इसके अलावा दक्षिण पूर्व की सीमा का कुछ हिस्सा (लगभग 58 किलोमीटर) फारस की खाड़ी को छूता है. यहां का सबसे बड़ा इलाका दजला (टिगरिस) और फरात नदी का क्षेत्र है जो इसे पूरे अरब संसार का सबसे बड़ा उपजाऊ मैदान बनाता है. उत्तर पूर्व में तुर्की और ईरान की सीमा से लगी जागरोस पर्वत श्रंखला है. दजला और फरात नदी का मैदान उत्तर से दक्षिण पश्चिम की ओर जाता है जहां इस क्षेत्र का सबसे उपजाऊ क्षेत्र आता है. दक्षिण पश्चिम में सीरीयाई रेगिस्तान का इलाका है.

आज का इराक 437,072 वर्ग किलोमीटर (168,754 वर्ग मील) में फैला है. राजधानी बगदाद यहां का सबसे बड़ा शहर है. सुन्नी मुस्लिम बहुल लोग होने के बावजूद यहां कई प्रजाति के लोग रहते हैं जिनमें अरब, कुर्द, असीरियाई, तुर्क, शाबिकी, याजिदी, अर्मेनियाई, आदि शामिल हैं. 95 प्रतिशत से ज्यादा लोग यहां मुस्लिम हैं, बाकी लोगों में ईसाई और अन्य मूल के लोगों की बसाहट है. यहां की अधिकारिक भाषा अरबी और कुर्दिश है.

संक्षिप्त इतिहास

इस क्षेत्र में प्रागैतिहासिक काल के अवशेष नवपाषाण युग के पाए गए हैं. कई पाए गए प्रमाणों के मुताबिक सबसे पहले मानव यहीं बसा था. हालांकि इस बात से बहुत से वैज्ञानिक सहमत नहीं हो पाए हैं. लगभग 5000 ईसापूर्व से सुमेरिया की सभ्यता के बाद यहां बेबीलोनिया, असीरिया तथा अक्कद साम्राज्यों का प्रभाव आया. इसी दौरान दुनिया में सबसे पहले लिखने की शुरुआत भी यहीं से ही हुई. इतना ही नहीं, यहीं विज्ञान, गणित और अन्य विधाएं भी फली फूलीं. ईसा पूर्व छठी सदी में यहां फारस के हखामनी सभ्यता का प्रभुत्व रहा. इसके बाद यहां मिदियों और असीरियाइयों ने राज किया. तीसरी सदी ईसापूर्व में सिकंदर के आगमन के समय यहां यवनों और उसके बाद रोमन साम्राज्य का आंशिक प्रभाव भी रहा, लेकिन उस समय तक यह इलाका पार्थियनों के कब्जे में आ चुका था. इसके बाद सासानियों ने यहां सातवीं सदी तक शासन किया.

इस्लाम का प्रभाव

सातवीं सदी में इराकी क्षेत्र पर अरबों का शासन और इस्लाम का जबर्दस्त प्रभाव रहा. आठवीं सदी में बगदाद इस्लामी अब्बास वंश के शासन के दौरान खिलाफत की राजधानी और धार्मिक केंद्र बन गया. 13वीं सदी में बगदाद पर मंगोलों ने कब्जा कर उसे एक तरह से नष्ट ही कर दिया जिसमें हजारों लोग मारे गए. इसके बाद 15वीं सदी की शुरुआत में भी तैमूरलंग के हमले से काफी लोग मारे गए थे. 15वीं सदी में ओटोमन साम्राज्य से संघर्ष के बाद अंततः इराक 16वीं सदी में उसमें शामिल कर लिया गया. बीच में 18वीं सदी में नादिर शाह के हमलों के बाद मम्लूकों ने यहां पर कब्जा कर लिया लेकिन जल्दी ही यह तुर्कों के ओटोमन साम्राज्य का वापस हिस्सा बन गया जो प्रथम विश्व युद्ध तक उसका हिस्सा रहा. प्रथम विश्व युद्ध में तुर्की ने जर्मनी का साथ दिया था जिसकी हार के बाद ओटोमन साम्राज्य का अंत हो गया.

 

प्रथम विश्व युद्ध के बाद

1916-17 में ब्रिटेन ने बगदाद पर कब्जा किया और युद्ध में मिली जीत के बाद ब्रिटेन और फ्रांस के बीच पश्चिम एशिया पर शासन के बंटवारे के लिए समझौता हुआ जिसके तहत ब्रिटेन का इराक पर कब्जा हो गया. 1932 में स्वतंत्र शाही शासन आने के बाद भी इराक पर ब्रिटेन का प्रभाव कायम रहा जिसका अंत 1958 में उसके गणतंत्र बनने से हुआ. हालांकि इसके बाद यहां सैन्य शासन ही रहा. 1968 में एक जनआंदोलन के माध्यम से बाथ पार्टी ने सत्ता अपने हाथ में ले ली और अहमद हसन अल बक्र इराक के पहले राष्ट्रपति बने. इसके बाद 1979 में सद्दाम हुसैन ने सत्ता संभाल ली. सद्दाम हुसैन ने ईरान से 8 साल तक (1980 से 88 तक) युद्ध लड़ा. उसके बाद 1990 कुवैत पर कब्जा करने के बाद उसे अमेरिका की अगुआई में संयुक्त राष्ट्र की सेना से हार का सामना करना पड़ा कुवैत गंवाने के बाद संयुक्त राष्ट्र ने इराक पर अपने हथियार खत्म करने के लिए कड़े प्रतिबंधों का दबाव बनाया. 2003 में अमेरिका की अगुआई में सद्दाम हुसैन की सत्ता का खात्मा किया गया जिसके बाद नई इराकी सरकार बनी जिसमें न तो सेना के लोग शामिल किए गए, न बाथ पार्टी के सदस्य और न ही सद्दाम हुसैन की सरकार के अधिकारी.

2003 से बढ़ता असंतोष और आइसिल का उदय

यहीं से जेहादियों के समूह बनने शुरू हो गए. इसी के साथ ही सुन्नी शिया सशस्त्र संघर्ष भी शुरू हुआ, जो जल्दी ही सरकार साथ त्रिकोणीय संघर्ष में बदल गया. 2005 में नए संविधान के तहत चुनाव तो हुए लेकिन हिंसा में भी कमी नहीं आई और सद्दाम हुसैन को फांसी की सजा देने के बाद इराकी सरकार और अमेरिका के बीच अमेरिकी फौज के इराक छोड़ने को लेकर समझौता हुआ. 2011 में अमेरिकी फौज हटने के बाद भी इराक में हिंसा जारी रही.

2013 में आइसिल (Islamic State of Iraq and Lavent ISIL या ISIL) के उदय के बाद सुन्नी कट्टरपंथी उग्रवादियों ने इराकी शियाओं पर हमले तेज किए. इसके बाद आइसिस ने 2015 तक तिकरित, फालुजा और मोसुल पर कब्जा कर लिया. इराक और सीरिया में आइएस (आइसिस या आइसिल का नया नाम) के बढ़ते वर्चस्व (जिसमें दुनिया के आंतकवादी संगठन भी शामिल हो गए थे) को देखते हुए एक बार दुनिया की ताकतें यहां आतंकवादियों को खत्म करने के लिए यहां के आंतरिक युद्ध में कूद पड़ीं. इराक में अमेरिका आइएस को खत्म करने उतरा तो सीरिया में रूस. फ्रांस ने भी आइएस के खिलाफ सीरिया में हमले किए. दिसंबर 2017 तक इराक आइएस मुक्त हो गया और आइएस सीरिया तक सिमट गया जो फरवरी 2019 तक वहां से भी खत्म होने की कगार पर आ गया.

वर्तमान परिदृश्य

आज इराक में आइसिल (या आइसिस या आइएस) का वजूद खत्म है. अमेरिकी सेना वहां से जाने की तैयारी में है. इसके अलावा राजनैतिक अनिश्चितता, युद्ध के बाद बुरी आर्थिक स्थिति ने इराक को सबसे अस्थिर देश बना दिया है. अल्पसंख्यक कुर्दों की अपनी सरकार और सुरक्षा बल है. कुर्द अपना अलग राष्ट्र तो चाह ही रहे हैं, वहीं सुन्नी मुस्लिमों ने भी शिया बहुल सरकार के खिलाफ अपने लिए स्वायत्ता की मांग कर दी है, जबकि बहुत से राष्ट्रवादी लोग एकीकृत और मजबूत इराक चाहते हैं. अमेरिका का पिछली बार सद्दाम हुसैन को अपदस्थ करने के बाद इराकी अनुभव अच्छा नहीं रहा था. इसके अलावा वह नहीं चाहता कि एक बार फिर आइएस या आइसिल जैसा कोई समूह फिर खडा़ हो जाए. अब इराक में स्थायी राजनैतिक हल की जरूरत इराक के साथ-साथ दुनिया को भी है.

अर्थव्यवस्था

इराक दुनिया का सबसे बड़ा खजूर उत्पादक देश है. लेकिन यहां के प्रमुख कृषि उत्पादों में गेंहूं, चावल, सब्जियां, जौ आदि भी शामिल हैं. प्रमुख उद्योग पेट्रोलियम, केमिकल्स, चमड़ा, निर्माण सामग्री, खाद्य प्रसंस्करण, उर्वरक धातु उद्योग हैं. अधिकांश निर्यात कच्चे तेल का ही होता है. यहां की मुद्रा इराकी दीनार है. युद्ध की वजह से यहां कि अर्थव्यवस्था काफी कमजोर हो गई है.

भारत और इराक

भारत और इराक के बीच अच्छे व्यापारिक संबंध रहे हैं. 1991 में खाड़ी युद्ध और 2003 के इराक युद्ध के बाद इराक की नई सरकार से भारत के संबंधों में फिर से सुधार आया है. भारत के लिए इराक में निवेश की बहुत ज्यादा संभावनाएं हैं हाल ही में भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने विज्ञप्ति जारी की है जिसमें भारतीय कंपनियों को सलाह दी गई है कि इराक में बढ़ती सुरक्षा के मद्देनजर वे इराक में निवेश कर सकती हैं. सरकार ने पिछले महीने ही कहा कि भारतीय व्यवसायी इराक के 19 में 14 प्रांतों में निसंकोच निवेश कर सकते हैं. हालांकि लगभग एक साल पहले ही भारत सरकार ने इराक में आइसिस के कब्जे वाले इलाकों में से 39 भारतीय को मारे जाने की पुष्टि की थी. फिलहाल एक अनुमान के मुताबिक इराक में इस समय करीब 10000 से 120000 भारतीय हैं जिनमें से ज्यादातर कुर्दिस्तान, बसरा, नजफ और करबला क्षेत्र में हैं. वहीं तीस से चालीस हजार भारतीय हर साल बगदाद, करबला, नजफ और समर्राह की यात्रा करते हैं.

Related Articles

Back to top button