उत्तराखंड

करवाचौथ पर ये है पूजा का शुभ मुहूर्त, जानिए इसबार क्या है खास

करवाचौथ के दिन महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। इस साल करवाचौथ का व्रत 27 अक्टूबर यानि शनिवार को है। इसदिन पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 5.40 से 6.47 तक है। यानि करीब एक घंटे 7 मिनट का समय पूजा के लिए शुभ है। 

करवा चौथ पर महिलाएं जहां पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं तो कर्इ जगह कुंवारी लड़कियां अच्छा वर पाने के लिए भी इस व्रत को करती हैं। वे पूरे दिन निर्जला व्रत रखकर अपने सुहाग की सलामती की दुआ मांगती है। महिलाएं इस दिन सोलह श्रृंगार कर चांद की पूजा करती हैं और छन्नी से चांद को देखने के बाद पति को देख अपना व्रत खोलती हैं।

कब खोलें व्रत

करवाचौथ पर चांद को अर्घ्य देकर ही व्रत खोला जाता है। शनिवार को पड़ने वाले करवाचौथ पर इस बार चंद्रोदय शाम 7.55 पर होगा। यानि इस समय में आप चांद का दीदार कर अपना व्रत खोल सकते हैं।

मेंहदी का भी है खास महत्व 

करवाचौथ पर हाथों पर मेंहदी लगाने का भी अपना अलग ही महत्व है। व्रत से पहले सभी महिलाएं अपने हाथों पर मेंहदी लगवाती है। कुछ लोग मेहंदी के रंग को पति के प्यार से भी जोड़कर देखते हैं। माना जाता है कि मेहंदी जितना गाढ़ा रंग छोड़ती है पति उतना ही प्यार अपनी पत्नी से करता है

बाजारों में बढ़ने लगी रौनक, साड़ियों से सजे बाजार  

करवाचौथ त्योहार को लेकर बाजारों में भी रोनक बढ़ने लगी है। महिलाएं इस मौके पर खास दिखने के लिए अभी से प्लानिंग कर रही हैं। खासकर कपड़ों को लेकर विवाहिताओं ने खरीददारी शुरू कर दी है। अक्सर त्योहारों पर महिलाओं की पहली पसंद पारंपरिक पोशाक ही होती है। इनमें भी करवा चौथ पर ज्यादातर महिलाएं साड़ी पहनना ही पसंद करती हैं। हाल के ट्रेंड पर गौर करें तो बाजार में सिल्क की साड़ियां महिलाओं की पहली पसंद बनी हुई हैं। पलटन बाजार में बहुत सी दुकानों पर महिलाओं को सिल्क साड़ी की खरीददारी करते देखा जा सकता है। इनमें कई तरह की सिल्क की रेंज बाजार में मौजूद है। 

महिलाएं हैं पटोला सिल्क की दीवानी 

पटोला सिल्क साड़ियां हथकरघे से बनाई जाती हैं। इसमें रेशम के धागों पर बने डिजाइन को वेजिटेबल या केमिकल रंगों से रंगा जाता है। फिर होता है हैंडलूम पर बुनाई का काम। पूरी साड़ी की बुनाई में एक धागा डिजाइन के मुताबिक अलग-अलग रंगों में पिरोया जाता है। पटोला साड़ियों का इतिहास तकरीबन 700 साल पुराना है। मुगल काल में गुजरात के कारीगरों ने इस कला को ईजाद किया था। लेकिन लागत के हिसाब से बाजार में कीमत न मिलने के कारण पटोला साड़ियों का बाजार अब सिमटता जा रहा है। ये साड़ियां 5000 रुपये से लेकर 25 हजार रुपये तक की रेंज में उपलब्ध हैं। 

कुछ हटके है गीचा सिल्क की साड़ियां

पलटन बाजार में साड़ियों की दुकान चलाने वाले मोहम्मद शरीफ बताते हैं कि गीचा सिल्क खादी और टसर को मिलाकर बनाया जाता है। साड़ी की खासियत यह है कि इसमें पूरी साड़ी मशीन पर तैयार होती है। लेकिन, पल्लू की बुनाई हाथ से की जाती है। ये साडिय़ां चार हजार से लेकर दस हजार रुपये तक की रेंज में उपलब्ध हैं। 

लौट आया मुर्शिदाबादी सिल्क 

मुर्शिदाबाद बीते 200 वर्षों से सिल्क साड़ियों के लिए मशहूर रहा है। यह ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रमुख निर्यातकों में एक था। मुर्शिदाबादी सिल्क साड़ियां अपने खास पल्लू और बॉर्डर लुक के लिए जानी जाती हैं। बीच में इनका चलन काफी कम हो गया था, लेकिन अब फिर से इनका दौर लौट आया है। इनमें 30 से 80 ग्राम की प्योर सिल्क साडिय़ां बेशकीमती होती हैं, जिनकी रौनक देखते ही बनती है। इनकी रेंज 15 हजार रुपये से शुरू होकर तीन-चार लाख रुपये तक है। 

सबसे ज्यादा डिमांड में है भागलपुरी सिल्क

महिलाओं में सबसे ज्यादा डिमांड प्लेन गोल्डन बॉर्डर वाली भागलपुरी सिल्क साड़ी की है। दुकानदार प्रदीप कुकरेजा बताते हैं कि इन साड़ियों को आसानी से पहना जा सकता है और इनमें आयरन की जरूरत नहीं होती। ये एक हजार से दस हजार की रेंज में मौजूद हैं। 

ऐरी, कांजीवरम और क्रेप सिल्क भी हैं खास

इसके अलावा 800 से 2000 की रेंज में ऐरी सिल्क, 5000 से 25 हजार की कीमत में कांजीवरम सिल्क और 5000 से 10 हजार की रेंज में क्रेप सिल्क की साड़ियां भी मौजूद हैं। 

Related Articles

Back to top button