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चीन का दबदबा भी अब मालदीव से खत्‍म होने की उम्‍मीद जताई जा रही है.

तानाशाही की तरफ बढ़ रहे पड़ोसी देश मालदीव के आम चुनावों में राष्‍ट्रपति अब्‍दुला यामीन की सत्‍ता अप्रत्‍याशित रूप से उखड़ गई. नियम-कायदों को ताक पर रखकर अब्‍दुला यामीन जिस तरह से मालदीव में शासन कर रहे थे, उसमें इस तरह के चुनावी नतीजों की उम्‍मीद नहीं थी. कूटनीति के लिहाज से यामीन की हार से यदि सबसे ज्‍यादा चीन को नुकसान होने वाला है तो दूसरी तरफ भारत के लिए यह सबसे बड़ी राहत की खबर है. चीन का दबदबा भी अब मालदीव से खत्‍म होने की उम्‍मीद जताई जा रही है.चीन की चालाकी
ऐसा इसलिए क्‍योंकि 2013 में सत्‍ता में अब्‍दुल्‍ला यामीन के आने के बाद चीन ने वहां अपना जाल बिछाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. नतीजतन यामीन चीन के करीब और भारत से दूर होते गए. उन्‍होंने चीन को भारत की कीमत पर वह सब-कुछ देने की कोशिश की जो सामरिक दृष्टि से चीन के लिए उपयोगी था. इस कड़ी में पिछले सितंबर में मालदीव ने चीन के साथ मुक्‍त व्‍यापार समझौता किया. चीन के साथ मैरीटाइम सिल्‍क रूट से जुड़े एमओयू पर हस्‍ताक्षर किए. तमाम इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर प्रोजेक्‍ट भारत से छीनकर चीन को दिए गए. भारत के दो मिलिट्री हेलीकॉप्‍टर मालदीव में हैं. यामीन ने उनको लौटाने की घोषणा कर दी. दरअसल हिंद महासागर में मालदीव की भौगोलिक स्थिति सामरिक दृष्टि के लिहाज से चीन के लिए बेहद उपयोगी है. इसलिए वह मालदीव के साथ संबंध मजबूत करने का इच्‍छुक है.

लेकिन यामीन की हार के साथ ही चीन का दबदबा भी अब मालदीव से खत्‍म होने की उम्‍मीद जताई जा रही है. मालदीव की सत्‍ता संभालने जा रहे नए निजाम ने घोषणा करते हुए कहा है कि चीन को दिए गए इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर प्रोजेक्‍ट्स की जांच की जाएगी क्‍योंकि इनका मानना है कि इसके जरिये चीन अपने हितों के लिए मालदीव में जमीन हथियाने की कोशिशों में लगा था. भारत के हेलीकॉप्‍टर नहीं लौटाए जाएंगे. इस बात की संभावना व्‍यक्‍त की जा रही है कि इस साल के अंत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मालदीव की यात्रा पर जाएंगे. इसके साथ ही दोनों देशों के बीच संबंधों को फिर से मजबूत करने की कोशिशें की जाएंगी.

 

ऑपरेशन कैक्‍टस
1988 में मालदीव के राष्‍ट्रपति मौमून अब्‍दुल गयूम को सत्‍ता से उखाड़ फेंकने के लिए वहां के व्‍यापारी अब्‍दुल्‍ला लुथूफी ने एक योजना बनाई. उसने इसके लिए श्रीलंका के तमिल पृथकतावादी संगठन पीपुल्‍स लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ तमिल ईलम (PLOTE) का सहयोग लिया. उनकी योजना ये थी कि जब राष्‍ट्रपति गयूम राजधानी माले में नहीं हों तो बगावत कर दी जाए.

इसी बीच तीन नवंबर, 1988 को गयूम ने भारत आने की योजना बनाई. उनके लिए एक भारतीय विमान भी माले के लिए भेजा गया था. लेकिन वो यहां आ पाते, उससे पहले ही तत्‍कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को चुनाव के सिलसिले में दिल्‍ली से बाहर जाना पड़ गया. उन्‍होंने गयूम से बात की और ये तय हुआ कि वह बाद में आ जाएंगे.

इस बीच अब्‍दुल्‍ला लुथूफी पूरी तरह से गयूम की गैरमौजूदगी में तख्‍तापलट की योजना बना चुका था. इसलिए जब उसको यह पता चला कि गयूम का भारत दौरा टल चुका है, इसके बावजूद उसने अपनी योजना नहीं बदली. फिर क्‍या था, पर्यटकों के वेश में स्‍पीड बोटों के माध्‍यम से पर्यटकों के रूप में मालदीव में घुसे PLOTE चरमपंथी सड़कों पर उतर आए. उन्‍होंने माले के सरकारी प्रतिष्‍ठानों पर कब्‍जे करने शुरू कर दिए. राष्‍ट्रपति गयूम ने सुरक्षित जगह पर पनाह ली और भारत से तत्‍काल मदद मांगी.

नतीजतन भारत सरकार ने तत्‍काल एक्‍शन लेते हुए सेना को मालदीव में सैन्‍य हस्‍तक्षेप करने का आदेश दिया. लिहाजा तीन नवंबर, 1988 को भारतीय वायुसेना के Ilyushin Il-76 एयरक्राफ्ट ने ब्रिगेडियर फारूख बुलसारा के नेतृत्‍व में पैराशूट रेजीमेंट के जवानों को लेकर उड़ान भरी. बिना रुके 2000 किमी की हवाई उड़ान के बाद हुलहुले द्वीप पर माले अंतरराष्‍ट्रीय एयरपोर्ट पर उतरे. उसके कुछ ही घंटे के भीतर भारतीय सेना ने माले पर नियंत्रण कर लिया और राष्‍ट्रपति गयूम को सुरक्षित निकाला गया. इस तरह मालदीव के इतिहास का अब तक का सबसे बड़ा राजनीतिक संकट भारत की मदद से समाप्‍त हुआ.

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