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बदमाशों के साथ मुठभेड़ में शहीद दारोगा का अंतिम संस्कार, आज उनके पैतृक गांव में हुआ

बिहार के खगड़िया में अपराधियों से मुठभेड़ में शहीद हुए दारोगा आशीष की अंत्येष्टि रविवार की सुबह उनके पैतृक गांव में राजकीय सम्‍मान के साथ संपन्‍न हुई। शहीद दारोगा सहरसा के सिमरीबख्तियारपुर स्थित बलवाहाट ओपी क्षेत्र के सरोजा गांव के रहने वाले थे। शहीद को मुखाग्नि उनके नन्‍हे पुत्र शौर्य ने दी। इस दौरान जिले के वरीय अधिकारियों की अनुपस्थिति से इलाके में आक्रोश का माहौल है।

सहरसा का सरोजा गांव दो दिनों से गम में तो डूबा हुआ है। उसे अपने छोटू (आशीष) की शहादत पर नाज भी है। शुक्रवार देर रात को खगडिय़ा जिले में अपराधियों से लोहा लेते हुए आशीष शहीद हो गए थे। 04 सितंबर, 2017 को आशीष ने खगडिय़ा जिले के पसराहा थानाध्यक्ष के रूप में योगदान दिया था। नवरात्र में मिली इस दुखद सूचना से गांव का हर चेहरा गमगीन है। रविवार को इस गम में तब प्रशासन के खिलाफ आक्रोश भी घुल गया, जब शहीद के अंतिम संस्‍कार में जिला का कोई वरीय अधिकारी नहीं पहुंचा। अंतिम संस्‍कार के वक्‍त केवल सिमरीबख्तियारपुर की एसडीपीओ मृदुला कुमारी उपस्थित रहीं।

एकमत नहीं दिखे मंत्री व पूर्व विधायक 
शहीद के अंतिम संस्‍कार में सूबे के लघु सिंचाई व आपदा प्रबंधन मंत्री दिनेश चंद्र यादव शामिल रहे। उन्‍होंने कहा कि अंतिम संस्‍कार के दौरान डीएसपी को रहना था, वो थीं। इसलिए उन्‍हें नहीं लगता कि अंतिम संस्‍कार के दौरान कोई खामी रही। अंतिम संस्‍कार सिस्टम के अनुसार हुआ। हालांकि, सहरसा के पूर्व भाजपा विधायक संजीव झा उनसे असहमत दिखे। उन्‍होंने कहा कि मंत्रीजी को संवेदनहीन अधिकारियों के खिलाफ संज्ञान लेना चाहिए।

गरीबी को करीब से देखा था 
आशीष का जन्म एक मध्यमवर्गीय किसान परिवार में हुआ था। पिता गोपाल सिंह ने खेती कर अपने तीनों पुत्रों को पढ़ाया। सबसे छोटा आशीष उनका दुलारा था। घर के लोग उसे प्यार से छोटू कहा करते थे। बचपन से ही आशीष की तमन्ना थी कि वे पुलिस विभाग में भर्ती होकर असहायों की सेवा करे। आशीष 2009 में पुलिस सेवा में आए।

गांव में सबकी मदद करते थे आशीष
आशीष अपने मिलनसार स्वभाव के कारण पूरे गांव के चहेते थे। गांव के हर महत्वपूर्ण काम में वे बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे। किसी गरीब लड़की की शादी में हरसंभव मदद करते थे। उनके बचपन के मित्र राजीव रंजन ङ्क्षसह सीआरपीएफ के इंस्पेक्टर हैं। उन्होंने बताया कि छोटू बचपन से ही चंचल और निडर थे। मित्रों की मदद के लिए वे हर समय तैयार रहते थे।

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