दिल्ली एनसीआर

बादल नहीं अब सरकार तय करेगी, दिल्ली में बुधवार को बारिश होगी या नहीं

दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण को लेकर हालात में ज्यादा सुधार नहीं हुआ है। जहरीली हवाओं से लोगों को बचाने के लिए सरकार अब कृत्रिम बारिश कराएगी। इसकी शुरुआत दिल्ली से होगी और सब कुछ ठीक रहा तो इसे लखनऊ जैसे शहरों में भी आजमाया जा सकता है। मौसम विभाग का अनुमान ठीक रहा, तो 21 नवंबर को यह बारिश होगी। फिलहाल इसे लेकर केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने सभी सुरक्षा मंजूरी हासिल कर ली हैं।

कृत्रिम बारिश को लेकर केंद्रीय मंत्री का अहम बयान

इस बीच 21 नवंबर (बुधवार) को दिल्ली में कृत्रिम बारिश के बीच केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा ने समाचार एजेंसी एएनआइ के मुताबिक, अगर हालात बदतर होते हैं तो कृत्रिम बारिश विकल्प है। इसे तत्काल प्रभाव से किया जा सकता है।

एनसीआर के शहरों में भी हो सकती है बारिश

प्रदूषण से निपटने के लिए दिल्ली में कृत्रिम बारिश कराने का केंद्र सरकार का प्रयोग सफल रहा, तो आने वाले दिनों में एनसीआर के कुछ शहर भी ऐसी बारिश से भीग सकते हैं। फिलहाल फोकस दिल्ली में प्रयोग सफल बनाने पर है। सफलता मिली तो 21 नवंबर को कृत्रिम बारिश हो सकती है।

कृत्रिम बारिश को लेकर यूपी सरकार ने दिखाया उत्साह

पर्यावरण मंत्रालय ने सोमवार को आइआइटी कानपुर, इसरो और योजना पर काम कर रहे मौसम विभाग के आला अधिकारियों के साथ मिलकर इस योजना को अंतिम रूप दिया। सूत्रों के मुताबिक, प्रयोग के सफल होने पर जिन शहरों को लेकर सबसे ज्यादा फोकस किया गया है, उनमें एनसीआर के गाजियाबाद, नोएडा, गुरुग्राम और फरीदाबाद जैसे शहरों के साथ लखनऊ भी प्राथमिकता पर है। उत्तर प्रदेश सरकार ने इस प्रयोग को लेकर काफी उत्साह दिखाया है। 

कैसे होती है कृत्रिम बारिश

कृत्रिम वर्षा करने के लिए कृत्रिम बादल बनाए जाते हैं जिन पर सिल्वर आयोडाइड और सूखी बर्फ जैसे ठंडा करने वाले रसायनों का प्रयोग किया जाता है जिससे कृत्रिम वर्षा होती है। कृत्रिम वर्षा मानव निर्मित गतिविधियों के माध्यम से बादलों को बनाने और फिर उनसे वर्षा कराने की क्रिया को कहते हैं। कृत्रिम वर्षा को क्लाउड-सीडिंग भी कहा जाता है। क्लाउड-सीडिंग का पहला प्रदर्शन जनरल इलेक्ट्रिक लैब द्वारा फरवरी 1947 में बाथुर्स्ट, ऑस्ट्रेलिया में किया गया था। 

यहां पर बता दें कि अमूमन बारिश तब होती है जब सूरज की गर्मी से हवा गर्म होकर हल्की हो जाती है और ऊपर की ओर उठती है। ऊपर उठी हुई हवा का दबाव कम हो जाता है और आसमान में एक ऊंचाई पर पहुंचने के बाद वह ठंडी हो जाती है। जब इस हवा में और सघनता बढ़ जाती है तो वर्षा की बूंदें इतनी बड़ी हो जातीं हैं कि वे अब और देर तक हवा में लटकी नही रह सकतीं हैं, तो वे बारिश के रूप में नीचे गिरने लगती हैं। इसे ही सामान्य वर्षा कहते हैं, लेकिन कृत्रिम वर्षा में इस प्रकार की परिस्तिथियां हम इंसानों द्वारा तकनीकी ढंग से पैदा की जातीं हैं।

कृत्रिम वर्षा से मतलब एक विशेष प्रक्रिया द्वारा बादलों की भौतिक अवस्था में कृत्रिम तरीके से बदलाव लाना होता है, जो वातावरण को बारिश के अनुकूल बनाता है।  बादलों के बदलाव की यह प्रक्रिया क्लाउड सीडिंग कहलाती है। 

कृत्रिम वर्षा कराने के लिए प्रक्रिया तीन चरणों में पूरी की जाती है

पहला चरणः पहले चरण में रसायनों का इस्तेमाल करके बारिश वाले क्षेत्रों के ऊपर वायु के द्रव्यमान को ऊपर की तरफ भेजा जाता है, जिससे वे वर्षा के बादल बना सकें। इस प्रक्रिया में कैल्शियम क्लोराइड, कैल्शियम कार्बाइड, कैल्शियम ऑक्साइड, नमक और यूरिया के यौगिक और यूरिया और अमोनियम नाइट्रेट के यौगिक का प्रयोग किया जाता है। ये यौगिक हवा से जल वाष्प को सोख लेते हैं और संघनन की प्रक्रिया शुरू कर देते हैं।

दूसरा चरण: इस चरण में बादलों के द्रव्यमान को नमक, यूरिया, अमोनियम नाइट्रेट, सूखी बर्फ और कैल्शियम क्लोराइड का इस्तेमाल करके बढ़ाया जाता है। 

तीसरा चरण: ऊपर बताए गए पहले दो चरण बारिश योग्य बादलों के निर्माण से जुड़े हैं, तीसरे चरण की प्रक्रिया तब की जाती है जब या तो बादल पहले से बने हुए हों या मनुष्य द्वारा बनाये गए हों। इस चरण में सिल्वर आयोडाइड और सूखी बर्फ़ जैसे ठंडा करने वाले रसायनों का बादलों में छिडकाव किया जाता है, इससे बादलों का घनत्व बढ़ जाता है और सम्पूर्ण बादल बर्फीले स्वरूप (ice crystal) में बदल जाते हैं और जब वे इतने भारी हो जाते हैं कि और कुछ देर तक आसमान में लटके नही रह सकते हैं तो बारिश के रूप में बरसने लगते हैं। 

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