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सांसदों के मुकाबले कम दिन काम करते हैं विधायक, दिल्‍ली विधानसभा सूची में सबसे नीचे

 अक्सर संसद में गतिरोध और उसके कारण बैठकें रद होने की खबरें राष्ट्रीय सुर्खियां बनती हैं, लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि हमारे विधानसभा के सदस्य कितना काम करते हैं और कितना वक्त बर्बाद करते हैं। पीआरएस लेजिलेस्टिव रिसर्च के आंकड़े बता रहे हैं कि सांसदों के मुकाबले विधायक बहुत कम काम करते हैं। राज्यों के इन सदनों में साल में औसतन 28 दिन ही काम होता है।

साल भर में सिर्फ 28 दिन ही काम

हाल ही में आए एक सर्वे के आंकड़े आपको चौंकने के लिए मजबूर कर देंगे। सर्वे के मुताबिक, जितना काम सालभर में संसद के सदस्य करते हैं, उसके मुकाबले राज्यों की विधानसभाओं के सदस्य काफी कम काम करते हैं। छोटे राज्यों की विधानसभाओं में स्थिति कुछ ज्‍यादा खराब है। पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च ने 26 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की विधानसभाओं के 2011 से 2016 तक के काम का विश्लेषण किया है। बता दें कि अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, पंजाब, त्रिपुरा और पुडुचेरी की विधानसभाओं को पर्याप्त डेटा न होने की वजह से इस लिस्ट में शामिल नहीं किया गया है। इस विश्लेषण में जो सामने आया, वो सच चौंकानेवाला है। विधानसभाओं में औसत तौर पर साल भर में सिर्फ 28 दिन ही काम हुआ है। इस विश्‍लेषण से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि चुनाव प्रचार के दौरान रात-दिन काम करने वाले आपके नेता विधायक बनने के बाद कितने आराम पसंद हो जाते हैं

।13 राज्‍यों की विधानसभाओं में 28 फीसद से कम काम

सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि विधानसभाओं में सबसे ज्‍यादा काम ‘बजट सत्र’ के दौरान होता है। बजट सत्र के दौरान सभी मंत्रालय अपने लिए बजट की मांग करते हैं। राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की विधानसभाओं के बीते छह साल के आंकड़े से पता चलता है कि 26 में से 13 विधानसभाओं में साल भर में सिर्फ 28 दिन या उससे कुछ छज्यादा काम हुआ है। इसका मतलब यह है कि 13 विधानसभाओं में 28 दिनों से भी कम काम हुआ। दिल्‍ली भी इन्‍हीं राज्‍यों में शुमार है।

केरल सबसे ऊपर, दिल्‍ली सबसे नीचे

केरल विधानसभा की कार्यवाही के मामले में भी टॉप पर है। यहां की विधानसभा में बीते सालों में औसतन 46 दिन काम हुआ। इसके अलावा कर्नाटक में 46 दिन, महाराष्ट्र में 45 दिन और ओडिशा में 42 दिन काम हुआ। वहीं झारखंड, उत्‍तर प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल और हरियाणा उन 13 राज्यों में से एक हैं, जहां साल भर में 28 दिन से भी कम काम हुआ। आपको जानकर हैरानी होगी की इस सूची में सबसे निचले पायदान पर देश की राजधानी दिल्‍ली भी शामिल है। दिल्‍ली के साथ इस पायदान पर नगालैंड, और सिक्किम हैं।

संसद में विधानसभाओं से ज्‍यादा काम 

 

अगर हम सांसदों और विधायकों की तुलना करें, तो पाएंगे कि राज्यसभा और लोकसभा के सदस्यों ने 2011 से 2016 तक ज्यादा दिनों तक कम किया। लोकसभा के सदस्यों ने औसत तौर पर साल भर में 70 दिन काम किया और राज्यसभा के सदस्यों ने 69 दिन काम किया। हालांकि संसद में बजट सत्र के दौरान ही सदस्यों ने सबसे ज्यादा दिनों तक काम किया।

मध्य प्रदेश की 14वीं विधानसभा का कामकाज

112 बिल पारित हुए, जिनमें 15 नए एक्ट बने, 95 ने मौजूदा एक्‍ट्स में संशोधन किया, दो ने मौजूदा एक्‍ट्स को रद किया। वित्त एवं टैक्सेशन और उच्च शिक्षा मंत्रालयों ने अधिकतर बिल्स पेश किए। वित्त मंत्रालय और टैक्सेशन मंत्रालयों द्वारा पेश किए गए 34 बिल्स में से 31 ने वैट, एक्साइज, राज्य वित्त आयोग इत्यादि से संबंधित एक्‍ट्स में संशोधन किए। तीन बिल्‍स ने जीएसटी और मोटर स्पिरिट एवं हाईस्‍पीड डीजल पर सेस संबंधित नए एक्‍ट्स बनाए। उच्च शिक्षा मंत्रालय ने 16 बिल्स पेश किए। वतर्मान विधानसभा कुल 135 दिन चली। 14वीं विधानसभा में औसत 27 दिन काम हुआ, जो 13वीं विधानसभा के औसत दिन (33) से कम है।

छत्तीसगढ़ विधानसभा 8वें स्‍थान पर 

मौजूदा विधानसभा कुल 145 दिन चली। यह तीसरी विधानसभा (2009-2013) की तुलना में कम है, जो कि 159 दिन चली थी। चौथी विधानसभा में तीन बार अविश्‍वास प्रस्‍ताव पर चर्चा हुई। यह चर्चा कुल मिलाकर 57 घंटे चली। वहीं 2011 और 2016 के बीच छत्‍तीसगढ़ विधानसभा एक वर्ष में औसत 36 दिन चली। यह 26 राज्‍य विधानसभाओं में 8वें स्‍थान पर है। ये सभी विधानसभाएं 2011 से 2016 के बीच कुल मिलाकर वर्ष में औसत 28 दिन ही चलीं।

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