उत्तराखंड

हेलमेट न पहनने से होती हैं 70 फीसद मौतें

सड़क दुर्घटनाओं में दुपहिया वाहन सवारों की सबसे अधिक मौतें हेलमेट न पहनने से होती हैं। यह आंकड़ा करीब 70 फीसद है और हेलमेट पहनकर इन अकाल मौतों की संख्या को कम किया जा सकता है। यह कहना है अंतरराष्ट्रीय सड़क महासंघ के जनसंपर्क अधिकारी वीरेंद्र अरोड़ा का।

जागरण सड़क सुरक्षा सप्ताह के उपलक्ष्य पर जारी प्रेस बयान में वीरेंद्र अरोड़ा ने कहा कि देश में हर साल 1.48 लाख लोग सड़क हादसों का शिकार होते हैं। इनमें सर्वाधिक संख्या दुपहिया वाहन सवारों की है। लिहाजा, यदि अनिवार्य रूप से हेलमेट पहनकर सफर किया जाए तो ऐसी अकाल मौतों को बचाया जा सकता है। साथ ही इस बात का ध्यान भी रखा जाना चाहिए कि हेलमेट आइएसआइ मार्क का जरूर हो। क्योंकि कई दफा यह भी देखने में आता है कि हल्के हादसों के दौरान भी हेलमेट फट हैं या आसानी से सिर से अलग हो गए हैं। सफर के दौरान सिर व चेहरे को अच्छे से कवर करने वाले हेलमेट ही पहने जाने चाहिए। क्योंकि कई बार सिर तो बच जाता है, मगर चेहरे का आकार बिगड़ जाता है।

इसलिए जरूरी है हेलमेट का आइएसआइ मार्क का होना

विभिन्न उत्पादों के साथ ही हेलमेट की गुणवत्ता भी भारतीय मानक ब्यूरो तय करता है। यदि हेलमेट पर आइएसआइ का मार्क है तो इस बात की गारंटी मिल जाती है कि उसका निर्माण सुरक्षा मानकों के अनुरूप किया गया है।

चौपहिया वाहनों में सीट बेल्ट बांधना जरूरी

अंतरराष्ट्रीय सड़क महासंघ के जनसंपर्क अधिकारी वीरेंद्र अरोड़ा का कहना है कि चौपहिया वाहन चलाते समय सीट बेल्ट अवश्य बांधनी चाहिए। पहली बात तो दुर्घटना के समय सीट बेल्ट शरीर को आगे की तरफ धकेलने से बचाती है, साथ ही इसके पहनने से एयरबैग्स भी खुल जाते हैं। सीट बेल्ट का सीधा संबंध एयरबैग्स से होता है, वाहन के टकराने के दौरान सीट बेल्ट के माध्यम से सेंसर एक्टिव रहते हैं और एयरबैग्स खुल जाते हैं। इसी तरह वाहनों के फ्रंट में सुरक्षा गार्ड लगाने से भी एयरबैग्स नहीं खुलते हैं। क्योंकि इसके लगे होने से सेंसर भली-भांति काम नहीं कर पाते।

बच्चों को फ्रंट सीट पर बैठाना खतरनाक

बच्चों का सिर कमजोर होता है और दुर्घटना के समय उनका सिर आसानी से सामने डैशबोर्ड या शीशे से टकरा सकता है। साथ ही आगे की सीट पर झटका भी अधिक जोर से लगता है। इसलिए जहां तक संभव हो बच्चों को पीछे की सीट पर ही बैठाना चाहिए।

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