Main Slideदेश

SC में याचिका, आश्रम, मदरसे और कैथोलिक धार्मिक स्थलों पर भी लागू हो विशाखा गाइडलाइन्स

बीते दिनों आश्रम, मदरसा और कैथोलिक धार्मिक स्थलों के अंदर महिलाओं के यौन शोषण के कई ऐसे मामले सामने आए, जिन्‍होंने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। यौन शोषण मामले में कई बाबाओं, मौलवियों और पादरियों के चौंकाने वाले नाम भी सामने आए हैं, जिसने महिला सुरक्षा की बहस को और तेज कर दिया। अब इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है, जिसमें  देशभर में बने आश्रमों, मदरसों व कैथोलिक धार्मिक स्थलों पर भी महिलाओं का यौन उत्पीड़न रोकने के लिए विशाखा गाइडलाइन लागू करने की मांग की गई है।बीते दिनों आश्रम, मदरसा और कैथोलिक धार्मिक स्थलों के अंदर महिलाओं के यौन शोषण के कई ऐसे मामले सामने आए, जिन्‍होंने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। यौन शोषण मामले में कई बाबाओं, मौलवियों और पादरियों के चौंकाने वाले नाम भी सामने आए हैं, जिसने महिला सुरक्षा की बहस को और तेज कर दिया। अब इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है, जिसमें  देशभर में बने आश्रमों, मदरसों व कैथोलिक धार्मिक स्थलों पर भी महिलाओं का यौन उत्पीड़न रोकने के लिए विशाखा गाइडलाइन लागू करने की मांग की गई है।  सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका वकील मनीष पाठक ने दाखिल की है, जिसमें कहा गया है कि धार्मिक स्थलों पर ही विशाखा गाइडलाइन्स को लागू किया जाना चाहिए। बता दें कि दफ्तरों (वर्क प्लेस) में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों पर नकेल कसने के लिए अलग से एक कानून है, जिसे 'विशाखा गाइडलाइन्स' के नाम से जाना जाता है। इसके तहत महिलाएं तुरंत शिकायत दर्ज करवा सकती हैं। हालांकि धार्मिक संस्थान जैसे आश्रम, मदरसा और कैथोलिक धार्मिक स्थलों पर यह कानून लागू नहीं होता है, जबकि बड़े स्तर पर इनसे महिला अनुयायी जुड़ी हैं, जो विभिन्न कार्यों में अपना योगदान देती हैं।   –– ADVERTISEMENT ––     सावधान! स्मार्टफोन से पति-पत्नी के बीच सोशल मीडिया बना 'वो' यह भी पढ़ें आइए जानते है क्या हैं विशाखा गाइडलाइंस  इसके तहत हर संस्थान, जिसमें दस से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं, वहां कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (निवारण, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के तहत अंदरूनी शिकायत समिति का होना अनिवार्य किया गया है। इस समिति में 50 फीसद से ज्यादा महिलाएं होंगी। इस समिति की अध्यक्ष भी कोई महिला होगी। समिति में यौन शोषण के मुद्दे पर काम कर रही किसी गैर-सरकारी संस्था की एक प्रतिनिधि को भी शामिल करना ज़रूरी होता है। कार्यस्‍थल पर पुरुष द्वारा मांगा गया शारीरिक लाभ, महिला के शरीर या उसके रंग पर की गई कोई गंदी टिप्पणी, गंदे मजाक, छेड़खानी, जानबूझकर महिला के शरीर को छूना शोषण का हिस्‍सा है। इसके अलावा किसी महिला या उससे जुड़े किसी कर्मचारी के बारे में फैलाई गई यौन संबंधों की अफवाह, अश्‍लील फिल्में या अपमानजनक तस्वीरें दिखाना या भेजना भी शोषण की श्रेणी में आएगा। महिला से शारीरिक लाभ के बदले उसको भविष्य में फायदे का वादा करना या गंदे इशारे, कोई गंदी बात ये सब भी शोषण का हिस्सा है। यहां यौन शोषण का तात्‍पर्य केवल शारीरिक शोषण ही नहीं है। यदि कार्यस्‍थल पर किसी महिला के साथ भेदभाव भी किया जाता है तो यह भी शोषण के दायरे में आएगा। अगर किसी महिला को लगता है कि संस्‍थान में उसका शोषण हो रहा है तो वह इसकी लिखित शिकायत समिति को कर सकती है। इस बाबत उसे संबंधित सभी दस्तावेज भी देने होंगे, जैसे मोबाइल संदेश, ईमेल आदि। ध्‍यान रहे कि यह शिकायत तीन माह के भीतर देनी होती है। उसके बाद समिति 90 दिन के अंदर अपनी रिपोर्ट पेश करती है। शिकायत के बाद जांच समिति दोनो पक्षों से पूछताछ कर सकती है। जांच के दौरान और उसके बाद भी शिकायतकर्ता की पहचान को गोपनीय रखा जाता है। यह समिति की जिम्मेदारी है। गाइडलाइंस के तहत कोई भी कर्मचारी चाहे वो इंटर्न भी हो, वो भी शिकायत कर सकता है। उसके बाद अनुशानात्मक कार्रवाई की जा सकती है।

सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका वकील मनीष पाठक ने दाखिल की है, जिसमें कहा गया है कि धार्मिक स्थलों पर ही विशाखा गाइडलाइन्स को लागू किया जाना चाहिए। बता दें कि दफ्तरों (वर्क प्लेस) में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों पर नकेल कसने के लिए अलग से एक कानून है, जिसे ‘विशाखा गाइडलाइन्स’ के नाम से जाना जाता है। इसके तहत महिलाएं तुरंत शिकायत दर्ज करवा सकती हैं। हालांकि धार्मिक संस्थान जैसे आश्रम, मदरसा और कैथोलिक धार्मिक स्थलों पर यह कानून लागू नहीं होता है, जबकि बड़े स्तर पर इनसे महिला अनुयायी जुड़ी हैं, जो विभिन्न कार्यों में अपना योगदान देती हैं।

आइए जानते है क्या हैं विशाखा गाइडलाइंस

  • इसके तहत हर संस्थान, जिसमें दस से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं, वहां कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (निवारण, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के तहत अंदरूनी शिकायत समिति का होना अनिवार्य किया गया है।
  • इस समिति में 50 फीसद से ज्यादा महिलाएं होंगी। इस समिति की अध्यक्ष भी कोई महिला होगी। समिति में यौन शोषण के मुद्दे पर काम कर रही किसी गैर-सरकारी संस्था की एक प्रतिनिधि को भी शामिल करना ज़रूरी होता है।
  • कार्यस्‍थल पर पुरुष द्वारा मांगा गया शारीरिक लाभ, महिला के शरीर या उसके रंग पर की गई कोई गंदी टिप्पणी, गंदे मजाक, छेड़खानी, जानबूझकर महिला के शरीर को छूना शोषण का हिस्‍सा है।
  • इसके अलावा किसी महिला या उससे जुड़े किसी कर्मचारी के बारे में फैलाई गई यौन संबंधों की अफवाह, अश्‍लील फिल्में या अपमानजनक तस्वीरें दिखाना या भेजना भी शोषण की श्रेणी में आएगा।
  • महिला से शारीरिक लाभ के बदले उसको भविष्य में फायदे का वादा करना या गंदे इशारे, कोई गंदी बात ये सब भी शोषण का हिस्सा है।
  • यहां यौन शोषण का तात्‍पर्य केवल शारीरिक शोषण ही नहीं है। यदि कार्यस्‍थल पर किसी महिला के साथ भेदभाव भी किया जाता है तो यह भी शोषण के दायरे में आएगा।
  • अगर किसी महिला को लगता है कि संस्‍थान में उसका शोषण हो रहा है तो वह इसकी लिखित शिकायत समिति को कर सकती है। इस बाबत उसे संबंधित सभी दस्तावेज भी देने होंगे, जैसे मोबाइल संदेश, ईमेल आदि।
  • ध्‍यान रहे कि यह शिकायत तीन माह के भीतर देनी होती है। उसके बाद समिति 90 दिन के अंदर अपनी रिपोर्ट पेश करती है।
  • शिकायत के बाद जांच समिति दोनो पक्षों से पूछताछ कर सकती है। जांच के दौरान और उसके बाद भी शिकायतकर्ता की पहचान को गोपनीय रखा जाता है। यह समिति की जिम्मेदारी है।
  • गाइडलाइंस के तहत कोई भी कर्मचारी चाहे वो इंटर्न भी हो, वो भी शिकायत कर सकता है। उसके बाद अनुशानात्मक कार्रवाई की जा सकती है।

Related Articles

Back to top button