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शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन वसीम रिजवी ने ओवैसी पर साधा निशाना

AIMIM के चीफ असदुद्दीन ओवैसी द्वारा अयोध्या में राम मंदिर भूमि पूजन को लेकर दिए गए बयान पर शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन वसीम रिजवी ने पलटवार करते हुए कहा है कि ओवैसी को अब मंदिर-मस्जिद विवाद पर चुप हो जाना चाहिए.

उन्होंने कहा कि अयोध्या में जिन लोगों ने मंदिर गिराकर वहां मस्जिद बनायी वे लोग ओवैसी के पूर्वज थे. अब ओवैसी को भारत के मुसलामानों को छोड़ देना चाहिए था.

वसीम रिजवी ने आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के ट्वीट पर करार हमला बोला. उन्होंने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड बाबर की फ़ौज खड़ा कर अयोध्या में राम मंदिर गिराने की बात कर रहा है.

हिंदुस्तान में गृह युद्ध कराकर इस्लामिक सल्तनत का कब्ज़ा करवाएगा. पर्सनल लॉ बोर्ड ने ये कैसे सोच लिया कि हिन्दुस्तानी मुसलमान उनके साथ है.

पर्सनल लॉ बोर्ड अपने मंसूबों में कभी कामयाब नहीं हो पाएगा. क्योंकि हिन्दुस्तानी मुसलमान कभी पर्सनल लॉ बोर्ड के साथ नहीं रहेगा.

अयोध्या में राम मंदिर के भूमि पूजन से पहले ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने राम मंदिर के निर्माण की अनुमति देने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ‘अन्यायपूर्ण और अनुचित’ बताया है. इस बीच ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन के चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने भी ऐसा ही ट्वीट किया.

ओवैसी ने बाबरी मस्जिद और इसके विध्वंस की एक-एक तस्वीर शेयर करते हुए कहा- ‘बाबरी मस्जिद थी और रहेगी. इशांअल्लाह.’इसके पहले हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने प्रियंका गांधी के बयान पर तंज कसा था. प्रियंका के बयान पर ओवैसी ने कहा था

खुशी है कि वो अब नाटक नहीं कर रहे हैं. कट्टर हिंदुत्व की विचारधारा को गले लगाना चाहते हैं तो ठीक है, लेकिन भाईचारे के मुद्दे पर पर वो खोखली बातें क्यों करती हैं.

वहीं, AIMPLB के महासचिव मौलाना मोहम्मद वली रहमानी ने कहा हमने हमेशा कहा है कि बाबरी मस्जिद को कभी भी किसी मंदिर या किसी हिंदू पूजा स्थल को ध्वस्त करके नहीं बनाया गया था.

एक बयान में उन्होंने कहा सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार किया है कि मस्जिद में 22 दिसंबर, 1949 को मूर्तियों को रखना एक गैरकानूनी काम था.

कोर्ट ने अपने फैसले में ये भी स्वीकार किया है कि 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद का विध्वंस एक गैरकानूनी, असंवैधानिक और आपराधिक कृत्य था.

इन सभी तथ्यों को स्वीकार करने के बाबजूद एक बेहद अन्यायपूर्ण फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद की जमीन को उन लोगों को सौंप दिया, जिन्होंने एक आपराधिक तरीके से मस्जिद में मूर्तियों को रखा था और इस आपराधिक विध्वंस के पक्षकार थे.

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