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रेशम और सूती धागों से बनी साड़ियों का न्यारा शहर माहेश्वर

अब तक महेश्वर (मध्य प्रदेश) के बारे में मुझे बस इतना मालूम था कि वहां की साडि़यां बहुत प्रसिद्ध हैं। महीन रेशों के ताने बाने से बुनी, सूती हों या रेशमी, महेश्वरी साडि़यां कहीं टंगी दिख जाएं, तो मेरे कदम कुछ देर के लिए वहीं ठिठक जाते हैं। पर अभी कुछ दिनों पहले ही मुझे पता लगा कि महेश्वर की महानता उसकी साडि़यों से कहीं ज्यादा है! जयपुर की तरफ जाते हुए हमने निर्णय लिया कि इस साड़ी वाले शहर में एक रात गुजारें।

गूगल मैप ने हमें हाइवे से नीचे उतार दिया और हमारी गाड़ी एक भीड़-भाड़ वाले शहर से होती हुई एक लंबे, हरियाली भरे और शांत रास्ते पर आ गई। सूर्यास्त के बाद हम एक छोटे और सुस्त से शहर महेश्वर पहुंचे। नर्मदा के किनारे किसी होटल में रात बिताने के खयाल से हमने पहले मध्य प्रदेश पर्यटन के होटल को देखा तो निराशा हुई। रख-रखाव के अभाव में कमरों की हालत खस्ता थी। फिर हम कहीं और रुके जो ज्यादा साफ था पर नर्मदा के किनारे नहीं था। शायद उस रात कानों में नर्मदा की कल-कल का सुख नहीं लिखा था।

महेश्वरी साडि़यों की बुनाई

ये मध्य प्रदेश के इस इलाके की खासियत हैं। रेशम और सूती धागों से बनी इन साडि़यों की बुनाई की शुरुआत पांचवीं या छठी शताब्दी में बताई जाती है। पुराने जमाने में रेशम चीन से आता था। बाद में भारत का रेशम प्रयोग में लाया जाने लगा। इन साडि़यों का अपना एक खास चरित्र होता है जो इन्हें अलग पहचान देता है। अधिकतर साडि़यों का डिज़ाइन मंदिर पर की गई नक्काशी/कलाकारी से प्रेरित होता है। रेवा होल्कर परिवार की ही पहल है और इन्हीं के संरक्षण में चलती है जिससे वहां के बुनकरों को इन खूबसूरत साड़ियों का उचित मूल्य मिल सके। साड़ियों के रंग और बुनाई कला से कोई भी सम्मोहित हो जाएगा। अहिल्या बाई के वंशज रिचर्ड होल्कर, इंदौर में जन्मे और कैलिफोर्निया अमेरिका में पले-बढ़े थे, उन्होंने टेक्सास की महिला सैली से विवाह किया था। इन दोनों ने महेश्र्वर आकर इस किले और कला दोनों को पुनर्जिवित किया। रानी की पीढि़यां उनके इस पुण्य कार्य को आगे बढ़ा रही हैं ताकि यहां की करघनियां घूमती रहें और कला अमर रहे।

माडूं को देखते जाएं

अगर आप इंदौर की तरफ जा रहे हैं तो एक बार और रास्ता भटकने में बुद्धिमानी है। राष्ट्रीय मार्ग से उतर कर थोड़ी ही दूर पर अत्यन्त रमणीय पर्यटन क्षेत्र है-मांडव यानी मांडू। पठारी क्षेत्र पर बसा मांडू कभी राजा बाज बहादुर और सुंदरी रूपमती की नगरी हुआ करता था। उनकी प्रेमकथायें आज भी प्रसिद्ध हैं। यहां की ख़ूबसूरत व दर्शनीय इमारतें पुरातत्व विभाग के संरक्षण में हैं। प्रेम और वीरता की कथाओं से सराबोर यहां के अवशेष फिल्म वालों को लुभाते रहे हैं। ‘किनारा’ फिल्म के मशहूर गीत ‘नाम गुम जाएगा’ के साथ यहां अन्य कई मधुर गीतों की शूटिंग हो चुकी है। छोटे-छोटे गावों से होकर मांडू जाने का रास्ता यात्रा को और भी रोमांचकारी बना देता है।

बॉलीवुड को पसंद है महेश्वर

महेश्र्वर का नैसर्गिक सौंदर्य सैलानियों के साथ-साथ हमारे बॉलीवुड और दक्षिण के फिल्म निर्देशकों के आकर्षण का भी केंद्र रहा है! एआर रहमान ने यहां अपना एक गैर-फि़ल्मी वीडियो भी शूट किया है। फिल्म ‘यमला पगला दीवाना’ के एक बड़े हिस्से की शूटिंग यहां नर्मदा के किनारे और बाजार चौक में हुई है। टीवी सीरियल ‘झांसी की रानी’ के कई एपिसोड भी यहीं बने थे। इस कड़ी में सबसे ताजा फिल्म अक्षय कुमार और राधिका आपटे की ‘पैड मैन’ है।

कैसे पहुंचें

वायु सेवा: महेश्वर के लिए निकटतम हवाई अड्डा इंदौर करीब 91 किमी. दूर है, जो मुंबई, दिल्ली, भोपाल तथा ग्वालियर से सीधी विमान सेवा से जुड़ा है।

रेल सेवा: महेश्वर के लिए बड़वाह (39 किमी.) निकटतम रेलवे स्टेशन हैं। पश्चिमी रेलवे के बड़वाह, खंडवा, इंदौर से भी यहां पहुंच सकते हैं।

सड़क मार्ग: बड़वाह, खंडवा, इंदौर, धार और धामनोद से महेंश्वर के लिए बस सेवाएं उपलब्ध हैं।

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