यह ब्रॉड गेज लाइन होगी। योजना पूरी होने के साथ भारतीय रेलवे चीन संघाई-तिब्बत रेलवे को पीछे छोड़ देगा। इस ट्रैक की ऊंचाई समुद्र तल से 3300 मीटर होगी। इस प्रोजेक्ट के पूरा होने पर रेलवे हिमाचल प्रदेश के मंडी, मनाली, कुल्लू, कियलॉंग, टन्डी, कोकसर, डच, उपसी और कारु को भी जोड़ेगा। उत्तर रेलवे के महाप्रबंधक विश्वेश चौबे ने बताया कि रेललाइन की कुल लंबाई लगभग 465 किलोमीटर होगी। इस रूट पर कुल 30 रेलवे स्टेशन बनाने का प्रस्ताव दिया गया है। जिस तरह से कश्मीर में ट्रेन चलाई गई है उसी तरह बिलासपुर और लेह दोनों ओर से पटरियों को बिछाने का काम शुरू किया जाए।
सामरिक दृष्टिकोण से अहम
ट्रैक बन जाने से चीन की सीमा तक सेना को रसद पहुंचाना आसान हो जाएगा। अंतिम लोकेशन सर्वे का काम रेल मंत्रालय के तहत आने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम राइट्स ने पूरा किया है। सर्वे तीन चरणों में किया जाएगा। रक्षा मंत्रालय ने देश की दीर्घकालिक आवश्यकताओं के लिए कुल चार प्रोजेक्ट की पहचान की है। इसमें मुख्य रूप से अरुणाचल प्रदेश में मीसामारी-तेंगा-तवांग 378 किलोमीटर, असम और अरुणाचल प्रदेश में 249 किलोमीटर नार्थ लखीमपुर-बामे सलापत्थर, 227 किलोमीटर पासीघाट-तेजू-परशुरामकुड-रूपई और पंजाब-हिमाचल और लद्दाख इलाके में बनने वाले सबसे ऊंचा ट्रैक।
एक दिन में दिल्ली से लेह
यात्री 1100 किलोमीटर की दूरी ट्रेन से महज एक दिन में पूरा कर सकेंगे। यहां जाने के लिए महज पांच महीने ही सड़क के रास्ते खुले रहते है। ट्रैक बन जाने से प्रतिदिन ट्रेन लेह के लिए चलेगी।
सुरंगों के भीतर बनेंगे स्टेशन
इस रूट की सबसे लंबी सुरंग लगभग 27 किलोमीटर की होगी। 465 किलोमीटर लंबे ट्रैक में 244 किलोमीटर का हिस्सा सुरंग में होगा। पूरे रेल रूट पर 124 बड़े ब्रिज और 396 छोटे ब्रिज भी होंगे। सुरंगों की संख्या काफी अधिक होने से कुछ रेलवे स्टेशन सुरंगों के भीतर ही बनेगी। इस रूट पर 75 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से ट्रेन दौड़ेगी।