जम्मू कश्मीर

कश्मीर में सेना अब डल को प्रदूषण के आतंक से मुक्त कराने में जुटी

प्रदूषण और अतिक्रमण की मार से मर रही डल झील को बचाने के लिए मंगलवार काे सेना जुट गई। हडडियां गला देने वाली ठंड के बीच आज सुबह जब ग्रीषमकालीन राजधानी में लाेग सोए हुए थे, सेना के जवान व अधिकारी अपने दल बल के साथ झील के ठंडे पानी में धीरे धीरे उतर रहे थे। डल में रहने वाले और सुबह डल किनारे सैर करने वाले यह देखकर पहले तो कुछ सहमे,उन्हें लगा कि शायद आतंकियों का कोई दल झील में किसी जगह छिपा है और सेना के जवान उनके सफाए के लिए ही जा रहे हैं। वह किसी हद तक सही सोच रहे थे,क्योंकि सेना के जवान झील के अस्तित्व के लिए संकट और आतंक बनी काई, जलकुंभी और कचरे के सफाए के लिए झील में दाखिल हो रहे थे।। जब तक लोगों को माजरा पूरी तरह समझ आता, तब तक कई टन कचरा झील से बाहर आ चुका था।

गौरतलब है कि विश्व प्रसिद्ध डल झील बरसों से अतिक्रमण, सीवरेज और प्रदूषण की मार के कारण आज अपने असतत्व को बचाने के संकट से जूझ रही है। झील का पानी पीने लायक नहीं रहा है। झील में स्थित पानी के कई प्राकृतिक चश्में बंद हो चुके हैं। झील के आस-पास स्थित होटलों और आवासीय बस्तियों से गंदगी लगातार झील के पानी का हिस्सा बन रही हैं। आस-पास के खेतों और नालों से आने वाला पानी भी झील में कई रसायनिक तत्वों को बढ़ा रहा है। हाऊसबोटों की गंदगी झील का एक हिस्सा बन चुकी है। कई जगहों पर झील का पानी पूरे माहौल को बदबूधार बनाताहै तो कई जगह झील में टापू बन चुके हैं। रही सही कसर काई ने पूरी कर दी है, हालत यह है कि काई अब हरी नहीं गहरे लाल रंग की है। डल में प्रदूषण का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अब इसमें पायी जाने वाली मछली की गुणवत्ता प्रभावित हो चुकी है, इसके भीतर होने वाली कई प्राकृतिक वनस्पतियां नष् टहो चुकी हैं। नदरु जिसे कमलककड़ी कहते हैं, के खेत अब बीते समय की बात हो चली है।

अदालत के निर्देश भी झील के संरक्षण में नौकरशाही और सत्ताधारी वर्ग में इच्छाशक्ति के अभाव में पूरी तरह फलीभूत नहीं हो रहेहैं। प्रदूषएण् और अतिक्रमण की मार से डल आज अपने मूल आकार की आधी रह गई है। इसकी जलवहन क्षमता में भी 40 प्रतिशत कमी आई है। हालात को देखते हुए राज्य प्रशासन ने आज सेना को मदद के लिए बुला लिया। हालांकि सेना को बुलाने की योजना पर पूर्व राज्यपाल नरेंद्र नाथ वोहरा के समय में ही विचार शुरु हो गया था। उन्होंने इस संबंध में नौसेना के एडमिरल सुनील लांबा से भी चर्चा की थी। उन्होंने थलसेना के अधिकारियों से भी इस संदर्भ में मदद का आग्रह किया था। मौजूदा राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने भी करीब दो माह पहले संकेत दे दिया था कि डल को बचाने के लिए अब सेना की मदद के सिवाय कोई दूसरा प्रभावी रास्ता नजर नहीं आता। आज सेना ने डल को बचाने का मोर्चा संभाल लिया और करीब 150 जवान व अधिकारी अपने मिशन डल में जुट गए। सेना की उत्तरी कमान की अधीनस्थ चिनार कोर के जवान और अधिकारी अपनी 22 नौकाओं, जेसीबी और दो कटर मशीनों के साथ झील की सफाईमें जुटे। सेना के जवानों ने अपने साजो सामान के साथ झील के उन इलाकों की सफाई सबसे पहले शुरु की ,जहां स्थिति सबसे ज्यादा खराब थीऔर जहां डल झील के संरक्षकण के लिए स्थापित लेक एंड वॉटरवेज अथारिटी अपने प्रयासों में पूरी तरह कामयाब नहीं हो पा रही थी।

सेना के जवान आैर अधिकारियों ने झील में काई, जलकुंभी, प्लास्टिक के कचरे व अन्य प्रकार की गंदगी काे निकालना शुरु किया और कुछ ही देर में झील किनारे कई टन कचरे का ढेर लग गया,जिसे हटाने में श्रीनगर नगर निगम के अलावा सेना और लावडा के ट्रक इस्तेमाल हुए। सफाई अभियान में जुटे सैनिकों को दिशा-निर्देश दे रहे मेजर रैंक के एक अधिकारी ने कहा कि यह डल सिर्फ कश्मीर या कश्मीरियों की शान नहीं है। यह पूरे देश और सभी हिंदुस्तानियों की गौरवशाली विरासत का एक हिस्सा है। इसका संरक्षण हमारे लिए उतना ही जरुरी है,जितनी सरहद की हिफाजत। हम यहां करीब 20 दिनों तक सफाई अभियान को अंजाम देंगे और पूरी उम्मीद है कि हम डल को फिर से उसका खोया स्वरुप प्रदान करने में सफल रहेंगे। इस अभियान को कामयाब बनाने के लिए हम विशेषज्ञों ,पर्यावरणविद्धों से भी लगातार राय ले रहे हैं ताकि झील के मौलिक पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखा जा सके।

डल झील हमारी विरासत और पहचान है

श्रीनगर नगर निगम के डिप्टी मेयर शेख इमरान ने कहा कि यह झील हमारी विरासत और पहचान है। इसे बचाने के लिए बरसों से प्रयास हो रहे हैं। लावडा ने भी अच्छा काम कियाहै है। सेना ने आज जिस तरह से यहां इसकी सफाई का काम शुरु किया है,उससे हमें उम्मीद बंधी है कि यह झील जल्द ही अपने असली रुप में आएगी। यह अभियान 21 दिन चलेगा। मेरी सभी से अपील है कि चाहे वह पुलिस ,सीआरपीएफ या फौज हो या आम आदमी या कोई सियासी पार्टी, सभी को झील केसंरक्षण में पूरा सहयोग करना चाहिए। यह झील नहीं रही तो हमारे वजूद पर भी खतरा आ जाएगा।  

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