जम्मू कश्मीर

कश्‍मीर के कार्यालयों में फिरन पहनने पर रोक से उठा सियासी तूफान

फिरन (एक परंपरागत कश्मीरी परिधान) बेशक अब देश-विदेश की नामी हस्तियों के लिए एक फैशन सिंबल बनता जा रहा है, लेकिन कश्मीर में यह अब सियासी विवाद का कारण बन गया है। उत्तरी कश्मीर के हंदवाड़ा में एक जोनल शिक्षाधिकारी ने अपने कार्यालय के सभी अधिकारियों को फिरन पहन कर आने से मना करते हुए सही ड्रेसकोड में ही आने का निर्देश जारी किया है। यह निर्देश ही हंगामे का कारण बन गया है। पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इस आदेश को वापस लेने की मांग कर दी है, जबकि विभिन्न सामाजिक संगठनों ने इसे कश्मीरी संस्कृति और पहनावे पर आघात भी करार दे दिया है। हालांकि यह पहला मौका नहीं है जब कश्मीर में फिरन को लेकर किसी जगह कथित पाबंदी को लेकर विवाद पैदा हुआ है।

इससे पहले 2014 में श्रीनगर स्थित सेना की चिनार कोर मुख्यालय में होने वाले अधिकारिक सैन्य समारोहोंं में सैन्य प्रशासन ने स्थानीय पत्रकारों को फिरन न पहन कर आने का आग्रह किया था। लेकिन सेना का यह आग्रह सियासी विवाद का कारण बन गया और बाद में सैन्य प्रशासन ने इसे वापस ले लिया था। उस समय भी तत्कालीन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला इस विषय पर खूब मुखर हुए थे।

उधर, पीडीपी ने भी फिरन पर आदेश वापस लेने की मांग उठाई है। पीडीपी के प्रवक्‍ता रफी मीर ने कहा कि इस तरह के आदेश ऐसे अधिकारी जारी करते हैं जिन्‍हें कश्‍मीरी संस्‍कृति की समझ नहीं है और इन आदेशों को तुरंत वापस लिया जाना चाहिए।

कश्‍मीर में लंगेट के जोनल शिक्षाधिकारी ने गत सप्ताह एक आदेश जारी किया था। इसमें उन्होंने अपने अधीनस्थ कार्यालय में आने वाले सभी सरकारी कर्मियों व अधिकारियों से निर्देश दिए थे कि वे कार्यालय में फिरन, स्‍लीपर और प्लास्टिक के जूते पहन कर न आएं। सभी अधिकारियों व कमर्चारियों से अाधिकारिक काम से कार्यालय में आने पर ऑफिशियल ड्रेस में ही आने की नसीहत दी गई थी। वहीं, आरोप है कि जोनल शिक्षाधिकारी के इसी आदेश के आधार पर वादी में विभिन्न जिलों में मुख्य शिक्षा अधिकारियों द्वारा मौखिक निर्देश जारी किए जा रहे हैं।

शिक्षा विभाग के एक अधिकारी द्वारा फिरन को प्रतिबंधित किए जाने से पहले नागरिक सचिवालय श्रीनगर में अधिकारियों व नौकरशाहों से मिलने आने वाले आम लोगों के फिरन पहन कर आने पर तथाकथित तौर पर पाबंदी बीते कई साल से है। नागरिक सचिवालय में प्रवेश से पूर्व आमजन को फिरन उतारकर ही जाना पड़ता है। हालांकि कई वरिष्‍ठ अधिकारी और ऊंची पहुंच के लोगों के लिए ऐसे आदेश शायद मायने नहीं रखते। यही वजह है कि नागरिक सचिवालय में कई वरिष्ठ नौकरशाह और कर्मी सर्दियों में अक्सर फिरन में ही नजर आते हैं। सचिवालय की सुरक्षा का जिम्मा संभालने वाले राज्य पुलिस के सिक्योरिटी विंग के अधिकारी भी इस प्रतिबंध से इन्‍कार करते हैं, लेकिन यह प्रतिबंध जारी है और किसने कब लागू किया,यह भी किसी को पता नहीं है।

सचिवालय के सुरक्षा अधिकारी एसएसपी युसुफ शाह और राज्य स्कूल शिक्षा विभाग के निदेशक कश्मीर डॉ जीएन इट्टु दोनों से जब इस संदर्भ में संपर्क करने का प्रयास किया गया तो दोनों के फोन स्विच अॉफ थे।

इस बीच, उमर अब्दुल्ला ने ट्विटर पर स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा लगाई गई फिरन पर पाबंदी की निंदा करते हुए कहा कि स्कूल शिक्षा विभाग को अपना ऐसा आदेश वापस लेना चाहिए। उन्होंने आगे लिखा है कि मुझे समझ में नहीं आता कि आखिर फिरन पर पाबंदी क्‍यों लगाई गई है। यह मूर्खतापूर्ण आदेश है। फिरन तो सर्दियों में कश्मीरियों के लिए खुद को गर्म रखने का एक व्यावहारिक तरीका ही नहीं हमारी सांस्कृतिक पहचान का भी हिस्सा बन चुका है। उमर अब्दुल्ला ने आगे लिखा है कि मैं और मेरे पिता डॉ फारुक अब्दुल्ला कई बार सरकारी समारोहों में भी फिरन पहनकर शामिल हुए हैं। आगे भी हम ऐसा करते रहेंगे।

इसके बाद सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई। एक कश्मीरी युवक मोहम्मद अाफाक सईद ने शिक्षा विभाग के आदेश की आलोचना करते हुए लिखा है कि जो लोग फिरन नहीं पहनते या फिरन पहनना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं, वह कश्मीरी नहीं हो सकते। ऐसे लोग अपनी संस्कृति और पहचान को लेकर भ्रम में हैं।

आम आदमी से लेकर बॉलीवुड तक लोकप्रिय है फिरन

फिरन-एक चोगानुमा गर्म कपड़े की घुटने तक या घुटने से नीचे तक लंबी कमीज है और कश्मीर में हर वर्ग के लोग पहनते हैं। महिलाओं और पुरुषों के फिरन का डिजायन अलग-अलग रहता है। अब इसे कोटनुमा डिजाइन में और अन्‍य कई शानदार डिजाइन बाजार में आ रहे हैं। शायद ही कश्मीर में कोई ऐसा स्थानीय नागरिक होगा, जिसके पास फिरन न हो और जो फिरन न पहनता हो। पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को अक्सर सर्दियों में फिरन में देखा जा सकता है। वह जब मुख्यमंत्री थी तो कई बार सचिवालय में फिरन में ही नजर अाईं। पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद हों या पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी या स्व: राजीव गांधी भी फिरन पहन चुके हैं।

अलगाववादी नेता मीरवाईज मौलवी उमर फारुक और यासीन मलिक भी अगर कभी सर्दियों में कश्मीर से बाहर जाएं तो वह फिरन पहने हुए नजर आते हैं। बॉलीवुड में शाहिद कपूर, रणबीर कपूर, सलमान खान भी इसे पहन चुके हैं। मिशन कश्मीर की शूटिंग के दौरान संजय दत्त ने भी इसे पहना। फिरन और बाॅलीवुड का नाता उतना ही पुराना है, जितना कश्मीर और बॉलीवुड का। फिरन में बीते कुछ सालों के दौरान कई प्रयोग हुए हैं और यह अब फैशन सिंबल भी बन चुका है। भारत से बाहर अमेरिका, यूरोप में अब यह सर्दियाें ठंड से बचाव के साथ साथ एक फैशनेबल परिधान के रुप में भी पहचान बना रहा है। कश्‍मीरी लोग बर्फीले मौसम में शरीर को गर्म रखने के लिए इसके भीतर कांगड़ी (एक तरह की अंगीठी) पकड़कर चलते हैं।

कश्मीरी नहीं है फिरन

फिरन बेशक आज कश्मीर की पहचान बन चुका है। कश्मीरियों की जिंदगी का एक अभिन्न हिस्सा बन चुका है। लेकिन इतिहासकारों और कश्मीरी विशेषज्ञों के मुताबिक यह मध्य एशिया से आया है और फिर कश्मीरी परिधान होकर रह गया है। मध्य एशिया से यह करीब 700 साल पहले आया है। कुछ लोगों के मुताबिक, कश्मीर में फिरन का आगमन अफगानिस्तान से पठानों के आगमन के साथ हुआ और उन्होंने इसे कश्मीरियों पर थोपा था। 

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