जम्मू कश्मीर

जम्मू कश्मीर में रोजगार नीति न होने से युवाआें में हताशा बढ़ी

जम्मू कश्मीर में रोजगार को लेकर किसी नीति का न बनना ही युवाओं में हताशा का कारण बन रहा है। राज्यपाल प्रशासन ने पच्चीस हजार पदों को रहबर-ए-तालीम अध्यापकों को सौंप कर एक तरह से उनके रोजगार का स्थायी प्रबंध तो कर दिया लेकिन इससे उन युवाओं में आक्रोश भड़क उठा, जो अध्यापक का फार्म भरने के लिए इंतजार कर रहे थे।

सर्व शिक्षा अभियान के तहत नियुक्त अध्यापकों को समय पर वेतन नहीं मिल रहा था जिस कारण हड़ताल, प्रदर्शन हो रहे थे। राज्यपाल प्रशासन ने रहबर-ए-तालीम योजना को बंद करते हुए अपनी तरह से एक असमंजस की स्थिति को दूर करने की दिशा में कदम बढ़ाए परंतु इस बीच दूसरी समस्या युवाओं के रोष के रूप में सामने आना शुरु हो गई। यह कहना गलत नहीं होगा कि पूर्व सरकारों के ढुलमुल रवैये के कारण ही रोजगार से संबधित समस्याएं पैदा हो रही है। बताते चले कि पूर्व नेकां-कांग्रेस सरकार के समय में शेर-ए-कश्मीर रोजगार योजना बनाई गई थी। इस योजना के तहत बेरोजगार युवाओं को मानदेय उपलब्ध करवाना सुनिश्चित बनाया गया। हर साल एक लाख रोजगार देने का एलान हुआ। विदेश में नौकरियां दिलाने के लिए जम्मू कश्मीर ओवरसीज इम्पलायमेंट कारपोरेशन का गठन किया। पूर्व सरकार की रोजगार नीति पर थोड़ा बहुत काम तो हुआ लेकिन लक्ष्य हासिल करने में नाकाम रही। उसके बाद दो बार पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार बनी लेकिन रोजगार नीति पर कोई काम नहीं हुआ।

राज्यपाल प्रशासन आने के बाद समस्याओं का समाधान करने के लिए काम होने लगा। राज्यपाल प्रशासन ने हाल ही में ओवरसीज इम्पलायमेंट कारपोरेशन का पुनर्गठन किया ताकि इस पंगु बने संगठन को सक्रिय करके युवाओं को विदेश में फायदा दिलाया जाए। जम्मू कश्मीर में पढ़े लिखे बेरोजगार युवाओं की संख्या में निरंतर बढ़ोतरी का सिलसिला जारी है।

अनुमान के अनुसार साढ़े छह लाख से अधिक बेरोजगार युवा है जिसमें पीएचडी, एमफिल, पीजी, ग्रेजुएट, अंडर ग्रेजुएट शामिल है। राज्य के जिलों में नब्बे हजार से अधिक बेरोजगार युवाओं ने रोजगार केंद्रों में अपने नाम दर्ज करवाए है। जम्मू कश्मीर के युवा सरकारी नौकरियों पर निर्भर इसलिए भी है क्योंकि प्राइवेट सेक्टर बहुत कम होने के कारण रोजगार के साधन बहुत कम है। प्राइवेट सेक्टर में नौकरियों के लिए युवाओं को बाहरी राज्यों का रूख करना पड़ रहा है। जब तक राज्य में कोई पुख्ता रोजगार नीति नहीं बन जाती है तब तक युवाओं का भला नहीं हो सकता। अब राज्य प्रशासनिक काउंसिल के फैसले के खिलाफ युवाओं में आक्रोश बढ़ता ही जा रहा है।

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