बिहार सरकार ने अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति (एससी-एसटी) को प्रोन्नति में आरक्षण देने का बड़ा फैसला किया है। सूबे में बीते अप्रैल 2016 से प्रोन्नति में आरक्षण बंद था। आगामी लोकसभा चुनाव के ठीक पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार का यह फैसला मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है।
बिहार में एससी-एसटी कर्मियों की प्रोन्नति पर कोर्ट के फैसले से रोक लगी थी। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट द्वारा संविधान पीट के फैसले तक रोक हटा लेने के बाद राज्य सरकार ने यह कदम उठाया है। 17 मई 2018 और 5 जून 2018 को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद केंद्र सरकार ने प्रोन्नति में आरक्षण को ले नए दिशानिर्देश जारी किए। इसके बाद बिहार सरकार ने एक कमेटी बनाई, जिसकी सिफारिशों के आधार पर यह फैसला लिया। बिहार सरकार ने प्रोन्नति के नौ दिशानिर्देश जारी किए हैं।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की इस पहल को 2019 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए मासटर स्ट्रोक माना जा रहा है। हाल ही में प्रान्नति में आरक्षण के मुद्दे पर जमकर सियासत हुई थी। केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने कहा था कि अगर इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिलती तो केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार अध्यादेश लाएगी। इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने संविधान पीठ के फैसला तक रोक हटा दी।
बहरहाल, बिहार सरकार के इस फैसले पर राजनीति ळाह शुरू हो गई है। राजद के भाई वीरेंद्र ने इसे राजग की जुमलेबाजी करार दिया है। उनके अनुसार यह केवल चुनावी वादा है।