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दिल्ली के सरकारी अस्पतालों के हालात खराब, 6 घंटे में 4 अस्पताल नहीं मिला मासूम बच्चे को इलाज

ग्रेटर नोएडा निवासी एक मजूदर को दिल्ली में अपनी छह साल की बेटी का उपचार कराना मुश्किल हो गया। सोमवार को छह घंटे तक ऑक्सीजन के साथ एंबुलेंस में पीड़ित बेटी को लेकर दिल्ली के चार अस्पतालों में चक्कर लगाया लेकिन कहीं दाखिला नहीं मिला। आखिर में चाचा नेहरू अस्पताल के डॉक्टरों ने बच्ची को अस्पताल में भर्ती तो कर लिया, लेकिन वेंटिलेटर न होने की वजह से सही उपचार नहीं दे पाने का हवाला देते रहे।     

ग्रेटर नोएडा निवासी सुजीत ने बताया कि उसकी बेटी मामूनी को कुछ दिन पहले पीलिया हुआ था। उसका एक निजी अस्पताल में इलाज चल रहा था। सोमवार को बच्ची की तबीयत अचानक बिगड़ने पर डॉक्टरों ने उसे एम्स के लिए रेफर कर दिया। इस दौरान पीड़ित ने करीब 40 हजार रुपये का बिल भी चुकाया। वहीं, एम्स जाने पर पता चला कि बेड खाली नहीं है। यहां से बच्ची को लेकर परिजन डॉ. राम मनोहर लोहिया और लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज पहुंचे, लेकिन इलाज नहीं मिला। गंगाराम अस्पताल पहुंचने पर प्रति दिन एक लाख रुपये का खर्चा बताया। परिजन फिर चाचा नेहरू अस्पताल पहुंचे। लेकिन वेंटिलेटर न होने की वजह से डॉक्टरों ने उपचार से हाथ खड़े कर दिए। 

नही किया नियम का पालन
दिल्ली सरकार ने नियम बनाया था कि मरीज को रेफर करते वक्त संबंधित अस्पताल की जिम्मेदारी है कि वह एंबुलेंस उपलब्ध कराए। साथ ही जिस अस्पताल में रेफर किया जा रहा है वहां के चिकित्सा अधिकारी से बात करे। ताकि मरीज को समय से उपचार मिल सके। लेकिन सोमवार की रात ऐसा नहीं किया गया। गौर करने वाली बात है कि इस घटना को लेकर कोई भी सरकारी अस्पताल जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है। चाचा नेहरु अस्पताल, आरएमएल, लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज और एम्स के जिम्मेदार अधिकारियों ने जवाब देने से साफ इंकार कर दिया।     

वेंटिलेटर की कमी से जूझ रहे अस्पताल
दरअसल, दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में वेंटिलेटर की कमी होने की बात पहले में सामने आ चुकी है। इसके कारण कई मरीजों की मौत हो चुकी है। बावजूद इसके अब तक कोई कदम नहीं उठाया गया है। करीब डेढ़ वर्ष पहले दिल्ली सरकार ने 125 नए वेंटिलेटर की व्यवस्था की थी। लेकिन अगले चरण के लिए इसकी खरीदारी नहीं हुई।

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