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छोटे से उपकरण से होगी कैंसर की पहचान, इस तरह करेगा काम

वैज्ञानिकों ने समय पर कैंसर की पहचान करने के लिए लंच बॉक्स से भी आधे आकार का उपकरण विकसित किया है। कहीं भी ले जा सकने वाले इस ‘टाइनी’ नाम के उपकरण से पिछड़े इलाकों में भी कापोसी सारकोमा (केएस) जैसे खतरनाक कैंसरों का जल्द पता चल सकेगा। केएस कैंसर मुख्यत: लसीका और रक्त वाहिकाओं में विकसित होता है। इसके कारण त्वचा, मुंह और आंतरिक अंगों में जख्म बन जाते हैं।

इन देशों में ज्यादा खतरा

यह कैंसर चार प्रकार होता है। एड्स से संबंधित केएस कैंसर सहारा रेगिस्तान के दक्षिण में स्थित अफ्रीकी देशों में काफी आम है। केएस से पीड़ित मरीज यदि एचआइवी वायरस से संक्रमित होता है तो उसका एड्स से ग्रसित होना भी तय है। इसका जल्द पता चलने से उपचार अधिक प्रभावकारी हो सकता है, लेकिन किसी भी जांच में एक-दो हफ्ते का समय लग जाता है। इस कारण इसके मरीज का इलाज सही समय पर शुरू नहीं हो पाता है। इसी समस्या के निपटान के लिए टाइनी विकसित किया गया है।

इस तरह करेगा काम

यह उपकरण न्यूक्लिक एसिड की मात्रा का पता लगाकर कैंसर की पहचान कर लेता है। यह बिजली व सूर्य से निकलने वाली ऊर्जा को संग्रहित करता है। फलस्वरूप बिजली चली जाने पर इसका काम बाधित नहीं होता है। टाइनी की यह विशेषता अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि अफ्रीकी देशों में कभी भी बिजली चली जाती है। इस कारण भी वहां के लोग कई तरह की चिकित्सकीय सुविधा से वंचित रह जाते हैं।

जांच में मिली सफलता

उपकरण की गुणवत्ता की पहचान के लिए शोधकर्ताओं ने युगांडा के 71 मरीजों पर इसका परीक्षण किया। 94 फीसद मरीजों की जांच के दौरान टाइनी और क्वांटिटेटिव पॉलीमरेज चेन रिएक्शन (क्यूपीसीआर) से एक ही परिणाम आया। बता दें कि वर्तमान में न्यूकिल्क एसिड की जांच क्यूपीसीआर विधि से ही की जाती है।

वैज्ञानिकों ने की कैंसर कारक नए जीन की पहचान

कैंसर से बचाव के मार्ग तलाश रहे वैज्ञानिकों को एक बड़ी कामयाबी हाथ लगी है। दरअसल, उन्होंने दस ऐसे जीन की पहचान की है जिनकी वजह से कैंसर होता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इससे कैंसर की रोकथाम में मदद मिल सकती है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक, मौजूदा डाटा के आधार पर कैंसर से जुड़े नए जीन की पहचान के लिए अल्फ्रेड नामक विधि विकसित की गई। इसकी मदद से कैंसर के खतरे वाले दस नए जीन की पहचान की गई। स्पेन के कैटलन इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च एंड एडवांस स्टडीज के शोधकर्ता बेन लेहनर ने कहा, ‘हमने इस विधि को एक हजार से ज्यादा कैंसर रोगियों पर आजमाया। इसके आधार पर हमने कैंसर का खतरा बढ़ाने वाले नए जीन की पहचान की।’

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