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मध्यप्रदेश में कांग्रेस से समझौता नहीं करने के पीछे मायावती ने बनाई ये योजना

बसपा सुप्रीमो सुश्री मायावती ने विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस को ‘टा-टा’ कर दिया है। लेकिन अहम सवाल यह है कि इस फैसले के पीछे वजह क्या है। ग्वालियर और चंबल बसपा का गढ़ माना जाता है। कांग्रेस से समझौता नहीं करने के पीछे मायावती की एक योजना है। खबरों के मुताबिक पिछले चुनाव में दो सीटें जीतने वाली बसपा इस बार 11 सीटों पर ताकतवर हुई है।

बसपा की बढ़ती ताकत के पीछे तीन वजहें बताई जा रही हैं। सपाक्स और दलित आंदोलन, भाजपा के खिलाफ स्थानीय स्तर पर सत्ता विरोधी लहर और आखिरी समय में रणनीति में बदलाव।

रणनीति इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि बसपा अपसी 10 साल पुरानी राजनीतिक ताकत दोबारा हासिल करने के लिए कांग्रेस-भाजपा के बागियों पर नजर टिकाए हुए है।

बसपा ने पहले चरण में उन सीटों पर अपने प्रत्याशियों के नामों का ऐलान किया है, जहां उसका संगठन मजबूत है। दूसरे चरण में भाजपा-कांग्रेस के दमदार बागी नेताओं को अपने पाले में करने की तैयारी है।

जिस बागी में है दम, बसपा उसके संग

ब्राह्मण-ठाकुर, वैश्य मतदाताओं को ध्यान में रखकर बसपा ऐसे चेहरे तलाश रही है जो उसके मूल वोट बैंक के साथ चुनाव को अपने पक्ष में करने की क्षमता रखते हैं। ग्वालियर ग्रामीण में गुर्जर, पोहरी में कुशवाह, श्योपुर में मीणा (रावत) बिरादरी के नेता, कोलारस में यादव, दिमनी में क्षत्रिय समाज का बाहुल्य है।

राजनीतिक जानकारों की मानें तो यहां बागियों को टिकट दिए तो बसपा को एक-दो सीटें ज्यादा मिल सकती हैं।

तीन अहम बातों पर चुनाव 

बसपा की मौजूदा सीट अंबाह व दिमनी में हालत खराब है। इन सीटों पर परंपरागत वोटर के बिखराव को रोकने के लिए मायावती की सभा कराने की योजना है। चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद मायावती की ग्वालियर में एक, मुरैना और भिंड में एक-एक राजनीतिक सभा हो सकती हैं।

जिन सीटों पर पिछले चुनाव में बसपा दूसरे स्थान पर थी, खासतौर पर भिंड, मुरैना, सुमावली में जातिगत समीकरण के मुताबिक प्रत्याशियों को खोजा जा रहा है।

ऐसे बढ़ा सकती है बसपा दोनों दलों की परेशानी

भिंड

इस सीट पर सत्ता विरोधी लहर की वजह से भाजपा के मतदाता नाराज हैं। इसलिए भाजपा के पूर्व सांसद के बेटे को बसपा ने टिकट दिया।

अंबाह

इस सीट पर जीत कायम रखने के लिए मायावती और बड़े नेताओं की सभा कराने की योजना है।

इन सीटों पर बसपा का असर

श्योपुर, अंबाह, दिमनी, ग्वालियर ग्रामीण, मुरैना, भिंड, करैरा, पोहरी, कोलारस, सेंवढ़ा।

2013 का चुनावी प्रदर्शन

बसपा ने अंबाह (आरक्षित) और दिमनी (अनारक्षित) सीटों पर जीत दर्ज की थी। श्योपुर, सुमावली, मुरैना और भिंड में दूसरे स्थान पर रही। इन सीटों पर भाजपा के प्रत्याशी जीते और कांग्रेस तीसरे स्थान पर थी। आठ सीटों पर बसपा तीसरे स्थान पर रही।

ग्वालियर-चंबल अंचल 
 

कुल सीटें 34
भाजपा 20
कांग्रेस 12
बसपा 02

कांग्रेस-भाजपा के एक दर्जन नेता बसपा के सीधे संपर्क में : बसपा

श्योपुर

श्योपुर में मीणा समुदाय का वोट बैंक मजबूत है, इसलिए बसपा और भाजपा दोनों ही दल मीणा समुदाय का उम्मीदवार तलाश रहे हैं।

दिमनी

दिमनी क्षत्रियों का गढ़ है। बसपा यहां मौजूदा विधायक का टिकट काटकर किसी क्षत्रिय को प्रत्याशी बनाएगी देगी। भाजपा भी क्षत्रिय उम्मीदवार तलाश रही है।

मुरैना

मुरैना सीट पर बसपा 1,704 मत से हारी थी। इस बार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की जातीय हिंसा का केंद्र मुरैना था। यहां अनुसूचित जाति के मतदाता ज्यादा है और बसपा मजबूत हुई है।

ग्वालियर

ग्रामीण, कोलारस, पोहरी में बसपा की नजर भाजपा व कांग्रेस के असंतुष्टों पर है। बागियों को टिकट दिए तो मुकाबला रोचक होगा।

अपना-अपना दावा 

बसपा के प्रदेश प्रभारी रामअचल राजभर के मुताबिक कांग्रेस और भाजपा के कई नेता और पदाधिकारियों ने उनसे संपर्क साधा है। बागियों के नाम अगली सूची में हो सकते हैं।

कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रामनिवास रावत का कहना है कि बसपा कांग्रेस के परंपरागत वोट ही लेती है, लेकिन वह कितना असर दिखा पाएगी, यह तो चुनाव परिणाम के बाद ही सामने आएगा।

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