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देश में ज्यादातर लोग मदरसों को इस्लामिक धार्मिक शिक्षा का केंद्र मानते हैं.

 उदयपुर के एक मदरसे ने इस प्रचलित अवधारणा को बदलने का प्रयास किया है. फिलहाल इस मदरसे ने 6 गैर-मुस्लिम छात्रों के लिए संस्कृत के टीचर को नियुक्त किया है.राजस्थान के उदयपुर के महावातवाड़ी इलाके के इस मदरसे में 5वीं क्लास पास करने के बाद यहां पढ़ने वाले बच्चों को उर्दू को अपनी तीसरी भाषा के रुप में चुनना पड़ता है. लेकिन यहां पढ़ने वाले 6 गैर-मुस्लिम छात्रों ने संस्कृत को अपनी तीसरी भाषा के रुप में पढ़ना चाहा .जिसके बाद मदरसा कमिटी ने यहां संस्कृत के टीचर की नियुक्ति की है.

फिलहाल इस मदरसें में 122 बच्चें पढ़ाई कर रहे हैं. मदरसा कमिटी के अध्यक्ष मेराज अहमद बताते हैं कि, ‘इस मदरसे की बेहतर शिक्षा वयवस्था और आधारभूत संरचना को देखकर संस्थान में इस साल 6 गैर-मुस्लिम छात्रों का नामांकन हुआ था.’ मेराज के अनुसार, ‘मदरसे में इन बच्चों का नामांकन राजस्थान मदरसा बोर्ड की अनुमति के बाद लिया गया था.’ 

वैसे मदरसे में नियुक्त नए संस्कृत शिक्षक मोमिन कौसर का कहना है कि, ‘इस मदरसे में पढ़ने वाले ये बच्चें घर के पास में पढ़ाई की सारी सुविधा होने के कारण यहां पढ़ने आते हैं.’

इस संबंध में  राजस्थान मदरसा बोर्ड के सचिव मोहम्मद सलीम खान ने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा कि ,’ मदरसे बदलते वक्त के साथ आधुनिकता की ओर कदम बढ़ा रहे हैं.’ वैसे सलीम का यह भी कहना है कि, ‘मदरसों के भीतर शिक्षा की सारी आधुनिकतम सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएगी ,जिससे सारे धर्मों के बच्चें यहां पढ़ाई कर सकें.’

उदयपुर के सिद्दिकिया मदरसे में संस्कृत की पढ़ाई के लिए टीचर की नियुक्ति के बारे में पुछने पर खान का कहना है कि, ‘राजस्थान के कई मदरसों में गैर-मुस्लिम छात्र पढ़ाई कर रहें हैं और अगर संस्कृत की पढ़ाई मदरसा कमिटी कराना चाहेगा, तो मदरसा बोर्ड इसकी अनुमति निश्चित देगा.’

वैसे राजस्थान के मदरसों में सुबह होने वाली प्रार्थना के दौरान वहां पढ़ने वाले सारे विद्यार्थी हिन्दी और अरबी में प्राथनाएं करते हैं. उसके साथ हीं वो राष्ट्र-गान भी गाते हैं.

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