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आइये जाने महर्षि वाल्मीकि के जन्मदिन पर उनसे जुड़ी पौराणिक कथाएं

हर साल आश्विन माह की पूर्णिमा को महर्षि वाल्मीकि का जन्मदिन मनाया जाता है. आपको बता दें कि महर्षि को संस्कृत का आदिकवि कहा जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महर्षि वाल्मीकि ने रामायण की रचना की थी.

संस्कृत भाषा में रचित इस महाकाव्य में 24000 श्लोक हैं. जानकारी के अनुसार इसे वाल्‍मीकि रामायण भी कहा जाता है. इस वर्ष वाल्मीकि जयंती 20 अक्टूबर (बुधवार) यानी आज मनाई जा रही है. जानिए, पूर्णिमा तिथि के लिए पूजा का शुभ मुहूर्त और वाल्मीकि जी से जुड़ी पौराणिक कथाएं

वाल्मीकि जी की जयंती शरद पूर्णिमा तिथि पर मनाई जाती है. इस तिथि के लिए पूजा का समय 19 अक्टूबर को शाम 7 बजकर 3 मिनट से शुरू होकर 20 अक्टूबर यानी आज रात 8 बजकर 26 मिनट पर समाप्त होगा. वाल्मीकि जयंती को परगट दिवस के नाम से भी जाना जाता है.

कहा जाता है कि महर्षि वाल्मीकि का असल नाम रत्नाकर था. उनके पिता ब्रह्मा जी के मानस पुत्र थे लेकिन रत्नाकर जब बहुत छोटे थे तब एक भीलनी ने उन्हें चुरा लिया था. जिसके बाद वह भीलों के समाज में पले-बढ़ें. वहां कई सारे भील राहगीरों को लूटने का काम करते थे. इसलिए वाल्मीकि ने भी वही रास्ता अपनाया.

एक बार नारद मुनि जंगल के रास्ते जाते हुए डाकू रत्नाकर के चंगुल में आ गए. बंदी नारद मुनि ने रत्नाकर से सवाल किया कि क्या तुम्हारे घरवाले भी तुम्हारे बुरे कार्यों में तुम्हारा साथ देंगे? रत्नाकर ने अपने घरवालों के पास जाकर नारद मुनि का सवाल दोहराया.

जिसके जवाब में उन्होंने स्पष्ट रूप से इनकार कर दिया. डाकू रत्नाकर को इस बात से काफी झटका लगा और उसका ह्रदय परिवर्तन हो गया. साथ ही उसमें अपने जैविक पिता के संस्कार जाग गए. इसके बाद रत्नाकर ने नारद मुनि से मुक्ति का रास्ता पूछा.

नारद मुनि ने रत्नाकर को राम नाम का जाप करने की सलाह दी लेकिन रत्नाकर के मुंह से राम की जगह मरा-मरा निकल रहा था. इसकी वजह उनके पूर्व कर्म थे. नारद ने उन्हें यही दोहराते रहने को कहा

और कहा कि तुम्हें इसी में राम मिल जाएंगे. ‘मरा-मरा’ का जाप करते-करते कब रत्नाकर डाकू तपस्या में लीन हो गया. तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें ‘वाल्मीकि’ नाम दिया और साथ ही रामायण की रचना करने को कहा.

महर्षि वाल्मीकि ने नदी के तट पर क्रोंच पक्षियों के जोड़े को प्रेमालाप करते हुए देखा लेकिन तभी अचानक पास में मौजूद एक शिकारी का तीर नर पक्षी को लग गया. ये देखकर कुपित हुए वाल्मीकि के मुंह से निकला, ‘मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः .यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधी काममोहितम्.’

अर्थात प्रेम क्रीड़ा में लिप्त क्रोंच पक्षी की हत्या करने वाले शिकारी को कभी सुकून नहीं मिलेगा. हालांकि, बाद में उन्हें अपने इस श्राप के कारण दुख हुआ. तब नारद मुनि ने उन्हें सलाह दी कि आप इसी श्लोक से रामायण की रचना करने की शुरुआत करें.

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