सबरीमाला पर SC के फैसले के खिलाफ प्रदर्शन, जंतर-मंतर पर निकला मार्च
भगवान अयप्पा के उपासकों ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ दिल्ली के जंतर-मंतरपर विरोध प्रदर्शन किया. श्रद्धालुओं ने हाथों में भगवान अयप्पा के बैनर-पोस्टर लिए मंत्रोच्चार करते हुए अपना विरोध जाहिर किया. विरोध मार्च केरला भवन से शुरू होकर जंतर-मंतर तक चला.
प्रदर्शन में ज्यादातर महिलाओं ने हिस्सा लिया. इनकी मांग थी कि सबरीमाला मंदिर में सदियों से चली आ रही प्रथा कायम रखी जाए और धार्मिक मान्यताओं में किसी प्रकार की छेड़छाड़ न की जाए. प्रदर्शन में शामिल होने आईं महिलाओं का कहना था कि वे सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ नहीं हैं लेकिन अदालत के आदेश से मंदिर में नास्तिकों की आवक बढ़ जाएगी जो सबरीमाला मंदिर की पुरानी रीतियों और प्रथाओं के खिलाफ है. इनका मानना है कि वर्षों पुरानी परंपराओं में कोई बदलाव नहीं की जानी चाहिए.
भगवान अयप्पा के उपासक अपने प्रभु की श्रद्धा में 41 दिन का ‘व्रतम’ रखते हैं. इस दौरान किसी के देहांत पर भी रोने से मनाही है और अगर परिवार में किसी का जन्म होता है, तो उस घर में 16 दिन तक प्रवेश न करने की परंपरा है. जो लोग ‘व्रतम’ करते हैं उनके लिए पारिवारिक जीवन का कोई मतलब नहीं होता. श्रद्धालु इन 41 दिनों में हजामत नहीं बनाते और सबरीमाला मंदिर की यात्रा के दौरान जंगल के रास्ते नंगे पांव यात्रा करते हैं.
भगवान अयप्पा की तरह उनके श्रद्धालुओं को भी साधु-संत की तरह रहना होता है. ‘व्रतम’ के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण करना होता है. सदियों से चली आ रही इस परंपरा का पालन करने वाले श्रद्धालु ही मंदिर में प्रवेश की इजाजत पाते हैं.
एक और श्रद्धालु विजय ने कहा, ‘रितुमति या रजस्वला महिलाओं का मंदिर में प्रवेश वर्जित है.’ सबरीमाला पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन आयोजित किया गया. बीते 28 सितंबर को तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई में पांच जजों की बेंच ने सबरीमाला मंदिर में हर आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की इजाजत दे दी. इस फैसले के खिलाफ केरल से लेकर दिल्ली तक प्रदर्शन चल रहे हैं.