LIVE TVMain Slideदेशविदेशसाहित्य

भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के विभिन्न भागों के छात्रों और वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष विकिरण पर्यावरण की विशेषताओं पर चर्चा की

भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के डोमेन विशेषज्ञों और छात्रों ने अंतरिक्ष विकिरण कार्यशाला : सूर्य से पृथ्वी, चन्द्रमा, मंगल और उससे इतर तक विकिरण विशेषता पर 24-28 जनवरी तक आयोजित भारत-अमेरिका कार्यशाला में अंतरिक्ष विकिरण पर्यावरण की विशेषता से लेकर खगोल जीव विज्ञान और इसमें कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मशीन सीखने के उपकरणों के अनुप्रयोग जैसे मुद्दों पर चर्चा की।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो- आईएसआरओ) के पूर्व अध्यक्ष, ए.एस. किरण कुमार ने परसों 26 जनवरी को अपने मुख्य भाषण में भारत द्वारा पिछले अंतरिक्ष मिशनों का अवलोकन दिया और 2025 तक नए मिशनों का रोडमैप तैयार किया और इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे इसरो ने सीमित संसाधनों के साथ विनम्र शुरुआत के साथ शुरुआत की और इसरो के कुछ उल्लेखनीय अंतरिक्ष मिशनों के बारे में बातचीत की। उन्होंने कहा कि चंद्रयान 1 भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो- आईएसआरओ) के लिए एक महत्वपूर्ण मिशन था और इसने हमारे लिए चंद्रमा की धारणा को बदल दिया, जिसमें चंद्रमा पर हाइड्रोक्साईड (ओएच) और पानी के अणुओं की खोज शामिल है। मार्स ऑर्बिटर मिशन ने मंगल का अध्ययन करते हुए 7 साल पूरे कर लिए हैं। एस्ट्रोसैट मिशन पहली ऐसी समर्पित खगोलीय वेधशाला है जिसे भारत ने कक्षा में भेजा हुआ है। यह कई राष्ट्रीय संस्थानों के बीच एक बड़ा सहयोग कार्यक्रम है और इसने खगोलीय अनुसंधान में बड़ी मात्रा में महत्वपूर्ण अध्ययनों के लिए डेटा प्रदान किया है। चंद्रयान 2 ऑर्बिटर सुचारू रूप से काम कर रहा है, और इसके सभी पेलोड चालू हैं। यह अंतरिक्ष यान अभी कई और वर्षों तक क्रियाशील रह सकता है। अब तक प्राप्त आंकड़ों के परिणामस्वरूप कई शोधकार्य सामने आ चुके हैं। उन्होंने यह भी बताया कि सूर्य का अध्ययन करने के उद्देश्य से आदित्य-एल1 मिशन के लिए उपग्रह का निर्माण अब पूरा होने के करीब है और इसके इस साल प्रक्षेपित होने की संभावना है। उन्होंने यह भी कहा कि भविष्य में इसरो और जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी (जेएएक्सए) एक चंद्र अन्वेषण मिशन पर आपस में सहयोग करेंगे। इस कार्यशाला को भारत-अमेरिका विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंच (इंडो-यूएस साइंस एंड टेक्नोलॉजी फोरम) द्वारा समर्थित किया गया था और भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग , भारत के तहत एक स्वायत्त संस्थान आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर ऑब्जर्वेशनल साइंसेज (एआरआईईएस), नैनीताल तथा भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (आईआईएसईआर), पुणे द्वारा आयोजित किया गया था। यह एआरआईईएस में भारत की स्वतंत्रता के 75 वषर्: आज़ादी का अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में आयोजित गतिविधियों का एक हिस्सा है। इस 5 दिवसीय कार्यशाला में पृथ्वी, वायु और अंतरिक्ष उड़ान, अन्वेषण, अंतरिक्ष विकिरण और जीव विज्ञान, अंतरिक्ष स्थिति जागरूकता और अवसर प्रत्येक दिन के लिए एक अलग विषय रखा गया था। इसमें ब्रह्मांडीय (कॉस्मिक) किरणें, सौर निगरानी, अंतरिक्ष अन्वेषण, अंतरिक्ष मौसम एवं उपग्रहों तथा अंतरिक्ष यात्रियों पर इसके प्रभाव, खगोल जीव विज्ञान, संबंधित क्षेत्रों में काम करने वाले विशेषज्ञों द्वारा गुब्बारा आधारित अध्ययन जैसे क्षेत्रों में व्यापक विविधता को शामिल किया गया था। इन क्षेत्रों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) और मशीन लर्निंग टूल्स के अनुप्रयोग पर व्यावहारिक सत्र भी आयोजित किए गए, जो आधुनिक डेटा विश्लेषण और मॉडलिंग तकनीकों में उपयोगी हैं। कार्यशाला में भारत और अमेरिका के प्रख्यात वैज्ञानिकों को शामिल करते हुए एक भारत-अमेरिका (यूएस – इंडिया) अंतरिक्ष अन्वेषण संवाद सत्र भी शामिल था।

Related Articles

Back to top button