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नाटक ‘आषाढ़ का एक दिन का मंचन’

लखनऊ । गोमतीनगर स्थित बाल्मीकि रंगशाला में केंद्रीय संगीत नाटक अकादमी के  सहयोग से रंगयात्रा की मासिक नाट्य श्रृंखला के तहत मोहन राकेश द्वारा लिखित व ज्ञानेश्वर मिश्रा ‘ज्ञानी’ के निर्देशन में नाट्य कृति ‘आषाढ़ का एक दिन’ का सफल मंचन किया गया। मोहन राकेश द्वारा रचित नाटक ‘आषाढ़ का एक दिन महाकवि कालिदास के व्यक्तिगत जीवन पर केंद्रित रहा। नाटक का आरम्भ आषाढ़ अर्थात बरसात के एक दिन से होता है। नाटक के प्रथम खंड में कालिदास अपने मामा मातुल के साथ रहते हैं और उसी ग्राम में रहने वाली मल्लिका से उन्हें प्रेम है जो लोकापवाद से डरने वाली विधवा स्त्री अम्बिका की की पुत्री है। कालिदास ने ग्राम में रहते हुए ही ऋतुसंहार की रचना की। जिसे पढ़ने के बाद उज्जैन के सम्राट द्वारा उन्हें सम्मानित करने के लिए राजदरबार से बुलावा भेज गया । कालिदास जाने के लिए अनिश्चुक  हैं,परन्तु मल्लिका के समझाने के उपरांत जाने को तैयार हो जाते हैं।  उनके अकेले जाने को लेकर विलोम अनेक प्रश्न खड़े करता है । विलोम मल्लिका को पसंद करता है और कालिदास को अपना  प्रतिद्वंदी मानता है।कालिदास को उज्जैनी में राजकवि का पद मिलता है । वहाँ रहकर वो कई रचनायें करते हैं और वहीँ गुप्त वंश की विदुषी राजकुमारी प्रियंगुमंजरी से उनका विवाह संपन्न होता है । उन्हें काश्मीर का राजा बनाया जाता है । काश्मीर जाते समय कालिदास और प्रियंगुमंजरी मल्लिका के गांव से गुजरते हैं परन्तु कालिदास मल्लिका से  मिलने आती है और बातचीत करती है। समय का चक्र चलता है, दुखी एवं अस्वस्थ अम्बिका की मृत्यु हो जाती है ।  मल्लिका माँ की मृत्यु के पश्च्यात असहाय एवं विवश होकर विलोम से विवाह कर लेती है । उधर कालिदास विद्रोही शक्तियों का सामना न कर पाने के कारण काश्मीर छोड़ देते  हैं और जब वो मल्लिका के पास आतें हैं तो ये भी आषाढ़ का एक दिन है । कालिदास और मल्लिका के बीच इतने समय केअन्तराल में व्यतीत स्थितियों एवं मनःस्थिति के बारे में वार्तालाप होता है परन्तु साहसा ही मल्लिका की बच्ची का  रुदन सुनकर कालिदास को ज्ञात हो जाता है कि मल्लिका अब विवाहित है और विलोम उसका पति है । वह इस घनघोर वर्षा में भारी मन से बहार निकल जाता है ।नाटक के माध्यम से यथार्थ एवं भावना के द्वन्द द्वारा इस जीवन दर्शन को स्पष्ट किया गया है कि जीवन में भावना महत्वपूर्ण है पर यथार्थ से मुँह मोड़कर जीवन केवल भावना से नहीं चल सकता lमंच पर नीलम श्रीवास्तव, अंशिका सक्सेना, आशीष सिंह राजपूत, आदित्य सोनी, मधु प्रकाश श्रीवास्तव, किशन मिश्रा, पूर्णेन्द्र त्रिपाठी, अंजलि वर्मा, वर्षा गुप्ता, दिनेश सिंहअनामिक तिवारी ने अपन अभिनय से नाटक को जीवंत कर  दिया। मंच परे प्रकाश – तमाल बोसे, संगीत – राहुल शर्मा, मुखसज्जा- राज किशोर गुप्ता और मंच निर्माण – शिव रतन का बहुत ही साहनीय था।

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