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जम्मू-कश्मीर: 370 हटने के बाद चार गुना बढ़ा संपत्ति रजिस्ट्रेशन

अनुच्छेद 370 के हटने के बाद से केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के ग्रामीण इलाकों में संपत्तियों के पंजीयन में इजाफा देखा जा रहा है। दो साल में पंजीयन के आंकड़ों में चार गुना की वृद्धि हुई है। 2020-21 में जहां 21,293 पंजीयन हुए थे, वहीं 2022-23 में यह संख्या बढ़कर 80,128 हो गई।

संपत्ति के पंजीकरण की डिजिटल व्यवस्था ने अब लोगों को कातिब (रजिस्ट्री लिखने वाला) के चक्कर लगाने से भी निजात दिला दी है। आजादी के बाद से जम्मू-कश्मीर एक मात्र ऐसा राज्य रहा, जहां भूमि पंजीकरण का काम अदालतों के सुपुर्द था। इसके लिए लोगों को वकीलों और अदालतों के चक्कर काटने पड़ते थे, लेकिन अब वे घर बैठे भी इस सुविधा का लाभ ले सकते हैं।

पहले जमीनों का पंजीयन अदालतों में होता था
1889 में सर वाल्टर लारेंस के सुझाव पर तत्कालीन महाराजा प्रताप ने जमीनों के पंजीयन का काम अदालतों को सौंप दिया था। यह जम्मू और कश्मीर पंजीकरण अधिनियम 1977 विक्रम संवत के अनुसार चलता रहा। इसके बाद 1947 में आजादी के बाद सात दशकों तक यह परंपरा चलती रही, लेकिन 5 अगस्त 2019 को धारा 370 के समाप्त होते ही 2020 में राज्य में जमीन रजिस्ट्रेशन के लिए नया विभाग बना जो कि राजस्व विभाग के तहत संचालित किया जा रहा है। इसी दौरान 77 रजिस्ट्रार और उप रजिस्ट्रार बनाए गए जो की केंद्रीय कानून रजिस्ट्रेशन एक्ट 1908 से संचालित होने लगे। इसके अलावा राज्य के 153 कानूनों को 106 केंद्रीय कानूनों से बदला गया।

ग्रामीण अंचलों में फायदा
डिजिटलीकरण से ग्रामीण अंचलों में सुविधाएं बढ़ गई हैं। इसमें उन्हें रजिस्ट्रेशन को लेकर एसएमएस अलर्ट, अंगूठे की छाप की अनिवार्यता के साथ बुजुर्गों, दिव्यांगों और सरकारी दफ्तर तक आने में असमर्थ लोगों को उनके घर पर ही रजिस्ट्रेशन की सुविधा और ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कॉपी मुहैया कराने की सुविधा हो गई है।

एनजीडीआरएस से जुड़ी पंजीयन प्रणाली
केंद्र शासित प्रदेश का पंजीयन सिस्टम पूरी तरह से आधुनिक होकर राष्ट्रीय सामान्य दस्तावेज पंजीयन प्रणाली (एनजीडीआरएस) से जुड़ गया। इसके अलावा इसे आधार से जोड़ने के कारण इसकी पारदर्शिता और पंजीयन की विश्वसनीयता में भी इजाफा हुआ। इससे सरकारी खजाने में भी लाभ हुआ है। 2019-20 में जहां 291 करोड़ की आय हुई थी, वहीं 2022-23 में 544 करोड़ की आय हुई है।

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