उत्तर प्रदेश

200 साल के इतिहास में मेरठ में पहली महिला पादरी

आजादी के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के पहले ही ईसाईयत की जड़ें मेरठ तक फैल चुकी थीं। 199 साल पुराना सेंट जोंस चर्च इसका गवाह है। 200वीं वर्षगांठ का समारोह आयोजित करने जा रहे चर्च के साथ एक और खास बात जुड़ गई है। पहली बार यहां पर एक महिला की नियुक्ति पादरी के रूप में हुई है। जनपद में 12 बड़े और 16 छोटे चर्च हैं। मेरठ में ईसाईयत के इतिहास में सेंट जोंस चर्च की पादरी रिनवी नोएल पहली महिला पादरी हैं। 

आगरा धर्म प्रांत में केवल तीन महिला पादरी 

कैथोलिक समुदाय में महिला पादरियों की नियुक्ति नहीं होती है। केवल मेथोडिस्ट और सीएनआइ चर्चो में ही महिला पादरियों की नियुक्ति का सिलसिला 1995 से आरंभ हुआ है। मेरठ समेत 26 जनपदों के सीएनआइ (चर्च आफ नार्थ इंडिया) और मेथोडिस्ट परंपरा के चर्च आगरा धर्म प्रांत के अंतर्गत आते हैं। आगरा परिक्षेत्र में कानपुर से लेकर मुरादाबाद और पूरा उत्तराखंड शामिल है। सीएनआइ श्रेणी में वे चर्च शामिल हैं जिसे ब्रिटिश उपनिवेश के दौरान अंग्रेज हुकूमत ने निर्मित किया था। पादरी रिनवी नोएल सेंट जोंस चर्च की ही नहीं मेरठ की पहली महिला प्रीस्टेस हैं। समूचे आगरा धर्म प्रांत में केवल तीन महिला पादरी हैं। मूल रूप से केरल की रिनवी स्नातक हैं और उन्होंने छह वर्ष तक धर्म शिक्षा ली है। 

हर धर्म में होनी चाहिए महिला पुरोहित 

32 वर्षीय पादरी रिनवी नोएल ने कहा कि आश्चर्य की बात यह नहीं है कि महिलाएं पुरोहित के रूप में हैं। सवाल यह होना चाहिए कि अब तक महिला धर्म पुरोहित हुई क्यों नहीं। उन्होंने कहा कि पता नहीं सभी धर्मों में क्यों नहीं महिलाओं को पूजा स्थलों पर पुरोहित की जिम्मेदारी सौंपी गई। उन्होंने बताया कि उनके पिता वीपी वर्गीज जो सरकारी अस्पताल में कर्मचारी थे, से सेवा की प्रेरणा मिली थी। जब उन्होंने धार्मिक शिक्षा लेना आरंभ की थी तो मिशनरी के सेवा कार्य से जुड़ना चाहती थी। लेकिन विवाह के बाद उन्होंने पादरी की भूमिका स्वीकार की। सबरीमाला के मामले में उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ महिलाएं ही इसका विरोध कर रही हैं। उनके तीन बेटियां हैं, पति परितोष के सहयोग से वह घर और चर्च का दायित्व बखूबी निर्वहन कर रही हैं।

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