मध्य प्रदेश: आदिवासी क्षेत्रों में भाजपा के बिगड़ रहे हैं समीकरण
मध्यप्रदेश के आदिवासी इलाकों में भारतीय जनता पार्टी के लिए चुनौती बढ़ती जा रही है। आरक्षित लोकसभा क्षेत्र रतलाम-झाबुआ पहले ही भाजपा के हाथों से फिसल कर कांग्रेस की झोली में जा चुका है। जय आदिवासी युवा संगठन ‘जयस” की पैठ इन दिनों पूरे प्रदेश में बन गई है।
धार, खरगोन, झाबुआ, अलीराजपुर, मंडला और डिंडोरी में इस संगठन ने भाजपा समर्थित अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और कांग्रेस समर्थित एनएसयूआई को कॉलेज छात्र संघ चुनाव में पटखनी देकर अपने राजनीतिक मंसूबे जता चुका है। महाकोशल में गोंडवाना पार्टी एक बार फिर खड़ी हो गई है।
शहडोल लोकसभा के उपचुनाव 2017 में भाजपा चुनाव सिर्फ गोंडवाना प्रत्याशी हीरासिंह मरकाम की मौजूदगी के कारण जीत पाई थी। ऐसे विपरीत हालात में शहडोल के आदिवासी नेता नरेंद्र मरावी का भाजपा छोड़ना पार्टी के लिए शुभ संकेत नहीं हैं। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो आदिवासी इलाकों में भाजपा के सामने चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं।
इसका प्रभाव 2018 के विधानसभा चुनाव पर तो पड़ेगा ही लोकसभा चुनाव 2019 में भी यह सत्ताधारी दल के लिए संकट बढ़ा सकता हैं। गौरतलब है कि भाजपा के सर्वे में भी आदिवासी सीटों को लेकर रुझान ठीक नहीं बताए जा रहे हैं। यही वजह है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने पूरे प्रदेश के आदिवासी इलाकों में समरसता अभियान चलाया हुआ है।
कुलस्ते-ज्ञानसिंह को झेलना पड़ा विरोध
आदिवासी इलाकों में भाजपा सांसदों को लगातार विरोध का सामना करना पड़ रहा है। विकास यात्रा के दौरान शहडोल सांसद ज्ञानसिंह को कोतमा में युवाओं ने घुसने नहीं दिया। वहीं मंडला-सिवनी के सांसद फग्गनसिंह कुलस्ते को घंसौर में जनविरोध का सामना करना पड़ा। मंत्री ओमप्रकाश धुर्वे को भी स्थानीय स्तर पर विरोध का समाना करना पड़ चुका है।
भाजपा में आदिवासी चेहरा नहीं
भारतीय जनता पार्टी में लंबे समय से प्रदेश स्तर का आदिवासी चेहरा नहीं है। फग्गनसिंह कुलस्ते को भाजपा बड़ा नेता मानती है। उन्हें अनुसूचित जनजाति मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री भी बनाया लेकिन प्रदेश की राजनीति में हमेशा वे हाशिए पर रहे। कुलस्ते के अलावा कोई भी ऐसा नेता पार्टी में नहीं है जिसका प्रदेश में दखल हो।
गोंडवाना-जयस, कांग्रेस के साथ लड़े तो बढ़ेगी भाजपा की मुश्किल
विधानसभा चुनाव में यदि गोंडवाना पार्टी और आदिवासी संगठन ‘जयस” ने कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ा तो भाजपा के सामने चुनौती बढ़ सकती है। ऐसे हालात में वोटों का धु्वीकरण होने से भाजपा को नुकसान हो सकता है। इसकी वजह ये है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ इस प्रयास में जुटे हैं कि वे छोटे-छोटे दलों के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ें । वहीं, दिग्गज समाजवादी नेता शरद यादव ने परदे के पीछे रहकर गोंडवाना पार्टी के दोनों धड़ों को एकजुट कर दिया है। इससे इनकी ताकत भी बढ़ है।
सीटें ज्यादा, प्रतिनिधित्व कम
मध्यप्रदेश में 47 विधानसभा क्षेत्र आदिवासियों के लिए सुरक्षित हैं जिनमें से अभी भाजपा के पास 30 सीटें हैं। 30 विधायकों के बावजूद कैबिनेट में इस वर्ग के मात्र 3 मंत्री हैं। पहले ज्ञानसिंह मंत्री हुआ करते थे लेकिन सांसद बन जाने से उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। रंजना बघेल 2013 तक तो मंत्री थीं लेकिन तीसरी बार की सरकार में उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया।