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कहीं दुनिया के मानचित्र से गायब हो जाएंगे कुछ देश, ग्रीनलैंड की पिघलती बर्फ ने दिया संदेश

आज पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन की विकट समस्या का सामना कर रही है। भूकंप, बाढ़, तूफान और चक्रवात के रूप में इसके दुष्परिणाम भी धीरे-धीरे हमारे सामने आ रहे हैं। वैज्ञानिक और पर्यावरणविद इस बात की आशंका भी जता चुके हैं कि यदि इसे गंभीरता से नहीं लिया गया तो कुछ दशकों में दुनिया के मानचित्र से कई देश गायब हो जाएंगे। यह आशंका कोई कोरी कल्पना नहीं बल्कि कड़वा सच है, जिसे हम नजरअंदाज किए जा रहे हैं। हाल के एक शोध में सामने आया है कि ग्रीनलैंड में ग्लेशियर की बर्फ पिछले 350 वर्षो की अधिकतम गति से पिघल रही है। यह क्रम बना रहा तो आने वाले दो दशक में समुद्रतल के बढ़ने का सबसे बड़ा कारक यही होगा।

प्रोसिडिंग्स ऑफ द नेशनल अकेडमी ऑफ साइंसेज में छपे अध्ययन के मुताबिक, अब तक जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव को कम आंका जा रहा था। वैज्ञानिक सारा दास का कहना है कि हम या तो उस चरण में पहुंच गए हैं या पहुंचने वाले हैं, जहां से वापसी नामुमकिन होगी। पृथ्वी के बढ़ते तापमान के लिए जिम्मेदार गैसों व कार्बन के उत्सर्जन को नहीं रोका गया तो हमें बहुत बुरे परिणामों का सामना करना होगा। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि अगर पृथ्वी का तापमान दो डिग्री सेल्सियस बढ़ता है तो उससे सागरों का जलस्तर दो फीट तक बढ़ेगा। जलस्तर में इस वृद्धि से तटीय इलाकों में रहने वाले तीन से आठ करोड़ लोग प्रभावित होंगे। वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि पिछली सदी के मुकाबले इस सदी में एक डिग्री तापमान बढ़ने का प्रभाव बहुत अधिक होगा।

पृथ्वी के अन्य हिस्सों के मुकाबले आर्कटिक दो गुना तेजी से गर्म हो रहा है। ग्रीनलैंड का ज्यादातर हिस्सा आर्कटिक में ही पड़ता है। इसी कारण वहां की बर्फ तेजी से पिघल रही है। 2012 में ग्रीनलैंड के ग्लेशियर की करीब 400 अरब टन बर्फ पिघली थी, जो 2003 के मुकाबले चार गुना ज्यादा है। 2013-14 के दौरान बर्फ पिघलना करीब रुक गया था। उसके बाद फिर बर्फ पिघलने की दर में तेजी आ गई।

क्यों रुका था बर्फ का पिघलना?

विशेष पारिस्थितिक चक्र के कारण ग्रीनलैंड में गर्म हवाएं चलने का क्रम बदलता रहता है। जिस चक्र में गर्म हवाएं चलती हैं उस दौरान बर्फ बहुत तेजी से पिघलती है जबकि गर्म हवाएं ना हो तो बर्फ का पिघलना रुक जाता है। इसी कारण 2013-14 में बर्फ का पिघलना रुक गया था।

 

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