खबर 50

यहाँ जानिए माँ नर्मदा से जुडी वह कथा जो कोई नहीं जानता

कथा : कई हजारों वर्ष पहले की बात है. नर्मदा जी नदी बनकर जन्मीं. सोनभद्र नद बनकर जन्मा. दोनों के घर पास थे. दोनों अमरकंट की पहाड़ियों में घुटनों के बल चलते. चिढ़ते-चिढ़ाते. हंसते-रुठते. दोनों का बचपन खत्म हुआ. दोनों किशोर हुए. लगाव और बढ़ने लगा. गुफाओं, पहाड़‍ियों में ऋषि-मुनि व संतों ने डेरे डाले. चारों ओर यज्ञ-पूजन होने लगा. पूरे पर्वत में हवन की पवित्र समिधाओं से वातावरण सुगंधित होने लगा. इसी पावन माहौल में दोनों जवान हुए.

उन दोनों ने कसमें खाई. जीवन भर एक-दूसरे का साथ नहीं छोड़ने की. एक-दूसरे को धोखा नहीं देने की.एक दिन अचानक रास्ते में सोनभद्र ने सामने नर्मदा की सखी जुहिला नदी आ धमकी. सोलह श्रृंगार किए हुए, वन का सौन्दर्य लिए वह भी नवयुवती थी. उसने अपनी अदाओं से सोनभद्र को भी मोह लिया. सोनभद्र अपनी बाल सखी नर्मदा को भूल गया. जुहिला को भी अपनी सखी के प्यार पर डोरे डालते लाज ना आई. नर्मदा ने बहुत कोशिश की सोनभद्र को समझाने की. लेकिन सोनभद्र तो जैसे जुहिला के लिए बावरा हो गया था. नर्मदा ने किसी ऐसे ही असहनीय क्षण में निर्णय लिया कि ऐसे धोखेबाज के साथ से अच्छा है इसे छोड़कर चल देना. कहते हैं तभी से नर्मदा ने अपनी दिशा बदल ली. सोनभद्र और जुहिला ने नर्मदा को जाते देखा. सोनभद्र को दुख हुआ. बचपन की सखी उसे छोड़कर जा रही थी. उसने पुकारा- ‘न…र…म…दा…रूक जाओ, लौट आओ नर्मदा. लेकिन नर्मदा जी ने हमेशा कुंवारी रहने का प्रण कर लिया. युवावस्था में ही सन्यासिनी बन गई. रास्ते में घनघोर पहाड़ियां आईं. हरे-भरे जंगल आए.

पर वह रास्ता बनाती चली गईं. कल-कल छल-छल का शोर करती बढ़ती गईं. मंडला के आदिमजनों के इलाके में पहुंचीं. कहते हैं आज भी नर्मदा की परिक्रमा में कहीं-कहीं नर्मदा का करूण विलाप सुनाई पड़ता है.नर्मदा ने बंगाल सागर की यात्रा छोड़ी और अरब सागर की ओर दौड़ीं. भौगोलिक तथ्य देखिए कि हमारे देश की सभी बड़ी नदियां बंगाल सागर में मिलती हैं लेकिन गुस्से के कारण नर्मदा अरब सागर में समा गई.

नर्मदा की कथा जनमानस में कई रूपों में प्रचलित है लेकिन चिरकुवांरी नर्मदा का सात्विक सौन्दर्य, चारित्रिक तेज और भावनात्मक उफान नर्मदा परिक्रमा के दौरान हर संवेदनशील मन महसूस करता है. कहने को वह नदी रूप में है लेकिन चाहे-अनचाहे भक्त-गण उनका मानवीयकरण कर ही लेते है. पौराणिक कथा और यथार्थ के भौगोलिक सत्य का सुंदर सम्मिलन उनकी इस भावना को बल प्रदान करता है और वे कह उठते हैं नमामि देवी नर्मदे…. !

Related Articles

Back to top button