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खुलेगा रहस्य: लखनऊ में 220 साल पुरानी लाल ईंटों की सुरंग मिली

220 साल पुराने महल छतर मंजिल की खुदाई के दौरान शनिवार को पुरानी लाल ईंटों से बनीं एक गोल आकार की छोटी सुरंग मिली है। इस सुरंग के सामने आने के साथ ही इस महल में दफन इसकी पुरातन निर्माण शैली की कई नवीन जानकारियां भी खुलेंगी। नदी से महल का संबंध भी उजागर होगा।
कुछ दिन पहले ही यहां खुदाई के दौरान 42 फुट लंबी और 11 फुट चौड़ी गंडोला नांव मिली थी। शनिवार को जब इस छोटी सुरंग की जानकारी मिली तो पुरातत्व विभाग के निदेशक एके सिंह मौके पर पहुंचे। उन्होंने बताया कि यह पुरानी लाल ईटों की छोटी सुरंग लग रही है। माना जा रहा है कि इससे गोमती नदी का पानी बिल्डिंग के अंदर आता था। बिल्डिंग का निचला हिस्सा काफी ठंडा रहता है। वहां उपस्थित अन्य लोगों का कहना था कि यह उस समय की निर्माण शैली का अदभुत नमूना हो सकता है। खुदाई करने वालों में कोई इसे सीवेज के लिए उपयोग होने वाला नाला और कोई छोटी सुरंग कह रहा था। पुरातत्व विभाग के निदेशक कहा कि इसकी जांच के बाद ही कुछ कहा जा  सकता है।

यहां तहखानों में चला करती थी नाव
पर्यटकों को छतर मंजिल की सैर कराने वाले वरिष्ठ टूरिस्ट गाइड बताते हैं कि नवाब गाजीउद्दीन हैदर के आदेश पर इंडो यूरोपियन स्टाइल में इस भवन का निर्माण करवाया गया था। कलाउड मार्टिन ने फरहत बक्श कोठी बनाई थी। इसके नीचे अण्डग्राउंड कमरे बने हैं। बेसमेंट में पानी भरा रहता है। तहखानों में नाव चला करती थीं जो गामती नदी में निकलती थीं। बेगमात यहां से बादशाह बाग जाती थीं। फरहत बक्श कोठी के बाद नवाब सआदत अली खां ने छतर मंजिल बनाई। ये इमारतें 1814 से पहले की बनी हैं।

नाव के संरक्षण के लिए पहुंची एनआरएलसी टीम
राज्य पुरातत्व विभाग के निदेशक एके सिंह ने बताया कि नांव के संरक्षण और रासयनिक उपचार के लिए शनिवार को नेशनल रिसर्च लेबोरेट्री ऑफ कंसरवेशन (एनआरएलसी) की टीम भी पहुंची। उन्होंने इसको संरक्षित करने के लिए तैयारी शुरू कर दी है। जानकारों का कहना है कि इस नांव की उम्र की जांच के लिए नांव की लकड़ी को फारेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट (एफआरआई) देहरादून भी भेजा जा सकता है।

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