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जापान में खुद को शिव का अवतार बताने वाले ‘बाबा’ को फांसी

नई दिल्ली: जापान की राजधानी टोक्यो के सबवे में जानलेवा सरीन गैस हमले के दोषी डूम्सडे पंथ के नेता शोको असहारा और उसके छह समर्थकों को शुक्रवार को फांसी पर लटका दिया गया. शोको अमु शिनरीक्यिो संप्रदाय से था. 63 वर्षीय असहारा अपने को शिव का अवतार बताता था. जिससे प्रभावित होकर हजारों लोग उसके अनुयायी बन गए थे. शोको ने 1980 में धार्मिक संप्रदाय की स्थापना की. उसकी छवि ऐसे करिश्माई नेता की थी जिससे प्रभावित हो कर शिक्षित लोग यहां तक कि डॉक्टर और वैज्ञानिक तक उसके पंथ में शामिल हो गए थे.

हालांकि उसके धार्मिक संप्रदाय को हमेशा से ही जापान में संदेह की नजरों से देखा जाता था. 20 मार्च 1995 को असहारा के समर्थकों ने टोक्यो के सब-वे में जानलेवा सरीन गैस छोड़ दी थी. इस घटना में 13 लोग मारे गए थे और हजारों की संख्या में लोग इससे प्रभावित हुए थे. बताया जाता है कि आश्रमों को छापेमारी से बचाने और सरकार का ध्यान भटकाने के लिए शोको ने इस घटना को अंजाम दिया था.

शोको को 2004 में मौत की सजा सुनाई गई थी. लेकिन अन्य आरोपियों के दोषी साबित नहीं होने की वजह से शोको को सजा मिलने में देरी हुई. नर्व एजेंट हमला मामले में फांसी की यह पहली सजा दी गई है अभी इस पंथ के छह और सदस्यों को मौत की सजा देना बाकी है. 1995 में हुए भीषण हमले से प्रभावित लोगों ने दोषियों को फांसी दिए जाने की खबर का स्वागत किया. 

कौन था शोको
शोको दृष्टि हीन है और 1980 में उसने डूम्सडे पंथ की स्थापना की. उसकी छवि ऐसे करिश्माई नेता की थी जिससे प्रभावित हो कर पढ़े-लिखे लोग यहां तक कि डॉक्टर और वैज्ञानिक तक उसके पंथ में शामिल हो गए थे. हालांकि इस पंथ को ले कर हमेशा से ही देश में शंका थी. लेकिन इस हमले के बाद पंथ के हेडक्वार्टर पर कड़ी कार्रवाई हुई और शोको समेत उसके समर्थकों को गिरफ्तार कर लिया गया था. शोको असहारा को 2004 में को मौत की सजा सुनाई गई थी. 

शोको का गरीब परिवार से था संबंध 
असहारा के सात भाई-बहन थे. घर में गरीबी के होने की वजह से खाने की कमी थी. शोको को एक आंख से कम दिखता था. शोको को अवैध दवा बेचने के आरोप में गिरफ्तार भी किया गया था.  

अंधविश्वास का मकड़जाल 
शोको खुद को शिव का अवतार बताता था और लोगों से कहता था कि मैंने हिमालय में तपस्या भी की है. वह कहता था कि बुद्ध के बाद उसे ज्ञान की प्राप्ति हुई है.  हिंदुओं को जोड़ने के लिए शोको खुद को शिव का अवतार बताता था. ईसाई धर्म के लोगों को प्रभावित करने के लिए खुद को ईसा मसीह भी कहता था.

 

शोको असहारा ने हिंदू-बौद्ध मान्यताओं से बनाया ‘ओम शिनरीक्यो’ संप्रदाय
शोको असहारा का जन्म 1955 में क्यूशू द्वीप में हुआ जिसका नाम चिजुओ मात्सुमोतो रखा गया. शोको की कम उम्र में ही उसकी आंखों की रोशनी चली गई. चिजुओ मात्सुमोतो बाद में नाम बदलकर अपना धार्मिक साम्राज्य स्थापित करना शुरू किया. उसने शुरूआत में योग शिक्षक को का काम काम. 1980 में हिंदू और बौद्ध मान्यताओं को मिलाकर एक आध्यात्मिक समूह के रूप में ओम शिनरीक्यो संप्रदाय शुरू किया. बाद में शोको ने सर्वनाश से जुड़ी भविष्यवाणी का ईसाई विचार भी इसमें शामिल कर लिया. ओम शिनरीक्यो का शाब्दिक अर्थ है ‘सर्वोच्च सत्य’

शोको असहारा ने खुद को बताया दूसरा ‘बुद्ध’
1989 में शोको असहारा द्वारा शुरू किए गए धार्मिक संप्रदाय को जापान में औपचारिक मान्यता मिल गई. शोको के 30 हजार से अधिक समर्थक अकेले रूस में थे. इस संप्रदाय की लोकप्रियता इतनी फैली कि शोको ने खुद को ईसा और बुद्ध के बाद दूसरा बुद्ध घोषित कर दिया. समूह ने बाद में दावा किया कि एक विश्व युद्ध में समूची दुनिया ख़त्म होने वाली है और केवल उनके संप्रदाय के लोग ही जीवित बचेंगे. 1995 हमले के बाद संप्रदाय भूमिगत हो गया, लेकिन ग़ायब नहीं हुआ और उसने नाम बदलकर उसने ‘एलेफ’ और ‘हिकारी नो वा’ नामक दो संगठनों बना लिए. 

क्या होता है सरीन
नर्व एजेंट कहे जाने वाले पदार्थों में से एक सरीन रंगहीन, स्वादहीन तरल और साफ पदार्थ होता है. वाष्प के संपर्क में आते ही सरीन लोगों की जान पर भारी पड़ जाता है. इससे मनुष्य का श्वसन तंत्र तुरंत बंद हो जाता है. साथ ही शरीर में ऐंठन और मरोड़ होने लगती है. इसे सायनाइड से भी खतरनाक जहर माना जाता है

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