खबर 50
केरल से सबक लेते हुए भविष्य में आपदा से पहले ही तैयार रखने होंगे राहत के इंतजाम
युद्ध हो, भूकंप या बाढ़ या फिर किसी भी अन्य प्रकार की प्राकृतिक आपदा, भारत के नागरिकों की खासियत है कि ऐसे दुर्भाग्यपूर्ण अवसरों पर उनके हाथ पीड़ितों की मदद व सहयोग के लिए हर समय खुले रहते हैं। छोटे-छोटे गांव-कस्बे तक आम लोंगों से इमदाद जुटाने के कैंप लग जाते हैं, गली-गली लोग झोली फैला कर घूमते हैं, अखबारों में फोटो छपते हैं कि मदद के ट्रक रवाना किए गए। फिर कुछ दिनों बाद आपदा ग्रस्त इलाकों के स्थानीय व राज्य प्रशासन की लानत-मनानत करने वाली खबरें भी छपती हैं कि राहत सामग्री लावारिस पड़ी रही और जरूरतमंदों तक पहुंची ही नहीं। हो सकता है कि कुछ जगह ऐसी कोताही भी होती हो, लेकिन वास्तविकता तो यह है कि आम लोगों को यही पता ही नहीं होता है कि किस आपदा में किस समय किस तरह की मदद की जरूरत है।
उदाहरण के लिए बीते वर्षों आए अब बिहार के जल प्लावन को ही लें तो देशभर में कपड़ा-अनाज जोड़ा जा रहा है, और दीगर वस्तुएं जुटाई जा रही हैं, पैसा भी। भले ही उनकी भावना अच्छी हो लेकिन यह जानने का कोई प्रयास नहीं कर रहा है कि आज वहां तत्काल किस चीज की जरूरत है और आने वाले महीनों या साल में कब क्या अनिवार्य होगा। समुद्र तट पर बसे केरल में बीते एक सदी की सबसे भयानक जल-त्रासदी है यह और शायद भारत का सबसे बड़ा राहत अभियान भी। करीब दस लाख लोग 6,000 से अधिक राहत शिविरों में रह रहे हैं। राज्य की करीब 16,000 किलोमीटर सड़क व 164 से ज्यादा पुल पूरी तरह नष्ट हो गए हैं। सेना और अन्य सुरक्षा बलों के एक लाख से ज्यादा जवान 24 घंटे राहत कार्य में लगे हैं।