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ब्रिटेन के श्रॉपशायर में मैकडॉनल्ड ने अपना पहला ‘नेट जीरो’ रेस्तरां खोलने का किया एलान

मैकडॉनल्ड ने ब्रिटेन के श्रॉपशायर में अपना पहला ‘नेट जीरो’ रेस्तरां खोलने का एलान किया है. कंपनी का एलान 20240 तक कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने के मंसूबे का हिस्सा है. कंपनी का दावा है कि रेस्तरां में प्लांट से तैयार वीगन फूड भी मिलेंगे.

नया ब्रांच वर्तमान में तैयार होने के करीब है. कार्बन डाइऑक्साइड गैस ग्रीन हाउस गैसों के साथ मिलकर धरती को गर्म करने का काम करती है, जो जलवायु परिवर्तन का खतरा तेजी से बढ़ाती है.

कंपनी ने कहा कि फास्ट फूड चेन का पहला नेट जीरो रेस्तरां होगा और उसने कार्बन उत्सर्जन घटाने का मंसूबा बनाया है यानी ग्रीन गैस हाउस का अधिक उत्सर्जन नहीं होगा. फूड की पैकिंग को रिसायकल चीजों से तैयार किया जाएगा,

फिर उसके इस्तेमाल के बाद दोबारा पैकिंग को रिसाइकिल कर इस्तेमाल के योग्य बनाया जा सकेगा. वर्तमान में ब्रिटेन में 13 सौ रेस्टोरेंट का मैकडॉनल्ड संचालन कर रही है. कंपनी की मंशा 2040 तक कार्बन उत्सर्जन को जीरो लेवल पर पहुंचाने की है.

उसने अपने कार्यक्रम का नाम दिया है ‘प्लान फॉर चेंज’. मैकडॉनल्ड के ब्रिटेन और आयरलैंड प्रमुख पॉल पोमरॉय ने बताया कि बदलाव के लिए नया मंसूबा सिर्फ टिकाऊ रणनीति का हिस्सा नहीं है

बल्कि ये हमारे उद्योग की प्राथमिकता है. इसका मतलब हुआ कि मंसूबा किसी एक के लिए नहीं है बल्कि बहुत सारे लोगों के लिए है. मैकडॉनल्ड का सामुदायिक सेवाओं से जुड़े मामले पर कार्रवाई करने का लंबा इतिहास रहा है.

लेकिन इस समय हमें अभी अपनी महत्वकांक्षा को तेज करने और धरती के साथ-साथ एक दूसरे की देखभाल करने के लिए ज्यादा मेहनत करने की भी जरूरत है. मीट का विकल्प जैसे सोया से बना प्रोडक्ट ग्रीन

हाउस गैस उत्सर्जन की मात्रा को कम कर पर्यावरण की मदद करता है. नॉनवेज के अत्यधिक इस्तेमाल से प्रयावरण का नुकसान वनों की कटाई में भी योगदान करता है, जो पर्यावरण समस्या का दूसरा प्रमुख मामला है.

ग्रीनहाउस गैसें तापमान में हो रही बढ़ोतरी के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं. वातावरण में मौजूद 6 प्रमुख ग्रीनहाउस गैस हैं. कार्बनडाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, हाइड्रोफ्लूरोकार्बन, परफ्लूरोकार्बन, सल्फर हेक्साफ्लोराइड समेत कार्बन का उत्सर्जन भी शामिल है.

ये गैसें धरती का तापमान बढ़ाने में मददगार साबित हो रही हैं. वातावरण में इन गैसों की बढ़ोतरी से एक मोटी पर्त जैसी बनती जा रही है. ये जरूरत से ज्यादा गर्माहट को रोक रही है, जिसके नतीजे में धरती का तापमान बढ़ रहा है.

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