साहित्य

‘गोस्वामी तुलसीदास,मुंशी प्रेमचंद, राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त, आचार्य शिवपूजन सहाय एवं डॉ0 जगदीश गुप्त स्मृति समारोह विषयक पर संगोष्ठी‘

गोस्वामी तुलसीदास,मुंशी प्रेमचंद, राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त, आचार्य शिवपूजन सहाय एवं डॉ0 जगदीश गुप्त स्मृति समारोह विषय पर आज एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
डॉ0 सदानन्दप्रसाद गुप्त, मा0 कार्यकारी अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की अध्यक्षता में आयोजित संगोष्ठी में सम्माननीय अतिथि जयप्रकाश, चण्डीगढ़ उपस्थित थे।
अभ्यागतों का स्वागत करते हुए श्री पवन कुमार, निदेशक, उ0प्र0 हिन्दी संस्थान ने कहा- उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ द्वारा गोस्वामी तुलसीदास, मुंशी प्रेमचन्द्र, राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त, आचार्य शिवपूजन सहाय एवं डॉ0 जगदीश गुप्त स्मृति की पावन स्मृति को समर्पित इस संगोष्ठी में पधारें सभी विद्वानों का उ0प्र0 हिन्दी संस्थान परिवार स्वागत एवं अभिनन्दन करता है। मा0 कार्यकारी अध्यक्ष महोदय के प्रति भी हम हृदय से आभारी हैं। आपके कुशल मार्ग दर्शन में हिन्दी संस्थान अपनी साहित्यक गतिविधियों में निरन्तर सजग है। पत्रकार बंधुओं, मीडिया कर्मियों एवं हमारे अनुरोध पर पधारें सभी साहित्य अनुरागियों, हिन्दी प्रेमियों का भी स्वागत एवं अभिनन्दन है। आशा है स्मृति समारोह के अवसर पर आयोजित इस संगोष्ठी में अनेक महत्वपूर्ण तथ्यों से हम सभी लाभान्वित होंगे।
डॉ0 भगवान सिंह ने कहा – प्रेमचंद देशज यथार्थ के रचनाकार हैं। प्रेमचंद उपन्यास सम्राट हैं। प्रेमचंद कृषक जीवन को निकटता से अनुभव करते हुए विकास के लिए कृषि की प्रधानता को महत्वपूर्ण मानते हैं। देश व समाज का विकास कृषि से ही हो सकता है। गोदान में शिक्षित वर्ग के द्वारा किसानों के प्रति उपेक्षा का चित्रण मिलता है। आज प्रेमचंद के बताये जीवन मूल्यों, आदर्शों पर चलने व उसे अपनाने की आवश्यकता है। प्रेमचंद को पढ़ना है तो गाँव की ओर जाना होगा। ‘पंच परमेश्वर‘ रचना प्रेमचंद की रचना अद्भुत है। पंच परमेश्वर में खाला अपने हक के लिए जागरुक दिखती है। गोदान में धनिया होरी का हृदय परिवर्तन करने में समर्थ है। धनिया स्त्री के आदर्श आचरण की धनी है। प्रेमचंद की ग्रामीण क्षेत्र पर आधारित रचनाओं में आदर्श एवं यथार्थ दोनों भारत को जानना है तो तुलसीदास जी का रामचरित मानस को पढ़ना होगा। तुलसीदास विश्वकवि के रूप में जाने व माने जाते है।
डॉ0 कैलाश देवी सिंह ने कहा -डॉ0 जगदीश गुप्त बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। डॉ0 गुप्त आधुनिकता के दुराग्रही नहीं थे। वे नितांत सरल स्वभाव के थे। उनकी रचनाओं में प्राचीन और आधुनिकता का समन्वय मिलता है। वे सारस्वत रूप में कवि के रूप में हमारे सामने आते हैं। उन्होंने सम्पादक कर्म को बहुत ही सुन्दर ढ़ग से निर्वहन किया। वे स्वभाव से समन्वयवादी थे। उनके रेखाचित्रों में चित्रकार रूप दिखायी देता है। उनकी कविताएँ तर्कप्रधान हैं। कविताएँ देश प्रेम व मानवता से ओत-प्रोत हैं। गुप्त जी की रचनाओं में पौराणिक आख्यानों का समावेश है। गुप्त जी का ब्रज भाषा काव्य किसी अन्य ब्रजभाषा कवियों के काव्य से कहीं से भी कम नहीं है। उनकी कविताओं का लक्ष्य मानवीय चेतना है। उनका मानना था। नई कविता जनसाधारण के लिए नहीं यह प्रबुद्ध वर्ग के लिए है। गुप्त जी मानवता के लिए भारतीय दर्शन को महत्व देते हैं। उनका मानना था संस्कृति गतिशील होती है। उनका काव्य शिल्प बहुआयामी है। वे मानव मूल्य व मानव धर्म के पक्षधर थे।
मुख्य अतिथि के रूप में डॉ0 जयप्रकाश ने कहा ने कहा-साहित्यकारों की स्मृतियों  की बड़ी महत्ता है। तुलसीदास जी स्मरणीय इसलिए हैं क्यों कि ऊपर कटाक्ष व आलोचनाओं का प्रहार होता रहा फिर भी वे अपनी जगह अडिग रहे। तुलसीदास जी ने मानव मूल्यों का निर्धारण किया उनका अनुसरण करना चाहिए। तुलसीदास जी ने रामकथा के माध्यम से लोक जीवन का चित्रण किया। उनका काव्य समाज को दिशा प्रदान करता है उनकी रचनाओं में समाज के विभिन्न जटिल प्रश्नों का उत्तर मिलता है। श्रेष्ठ काव्य वही है जिसमें विस्तृत व्याख्या की क्षमता हो। तुलसीदास जी ने अपनी रचना कवितावली में किसानों की समस्या व उनकी स्थितियों का व्यापक चित्रण किया है। तुलसीदास लोक जीवन से सम्बन्धित विषयों पर अपनी लेखनी चलायी। किसानों की गरीबी, दरिद्रता की स्थितियों का बहुत निकट से अनुभव का कवितावली में उदृत किया। तुलसी लोक कवि, लोक नायक, लोक परिवर्तन की क्षमता रखने वाले कवि हैं। तुलसी रामराज्य की कल्पना करते हैं तुलसी अपनी रचनाओं व ग्रंथों के माध्यम से पूज्यनीय हैं। तुलसी की रचनाएँ लोक भावना से ओत-प्रोत हैं।

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