शांति की उम्मीदों को रोज रौंदते रहे आतंकवादी
शांति और सुरक्षा के नए दौर के लिए शुरू हुए रमजान संघर्षविराम से पैदा हुई उम्मीदें बीते 30 दिनों में 60 से ज्यादा आतंकी हिंसा की घटनाओं से लगातार नाउम्मीदी में ही बदलती नजर आईं। इस दौरान 24 आतंकियों और नौ सुरक्षाकर्मियों व छह नागरिकों समेत 39 लोग मारे गए। करीब 100 लोग जख्मी हुए और आतंकी जमातों में डेढ़ दर्जन के करीब नए लड़के जुड़े, हालांकि पथराव और राष्ट्रविरोध हिंसक प्रदर्शनों में जरूर कमी आई। कुल मिलाकर देखा जाए तो कश्मीर के हालात में कोई ज्यादा बदलाव नहीं आया। केंद्र और राज्य सरकार ने हालात को सामान्य बनाने व कश्मीर मुद्दे पर बातचीत लायक माहौल की जमीन तैयार करने के इरादे से ही गत माह रमजान संघर्षविराम का फैसला किया था।
इसके बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा इसके एलान के साथ ही घाटी में 17 मई, 2018 को रमजान संघर्षविराम का पहला सूरज निकला। हालांकि आतंकी संगठनों और कश्मीरी अलगाववादियों ने संघर्षविराम को पहले ही दिन खारिज करते हुए इसे एक ढकोसला बताया था। इससे लोगों में संघर्षविराम को लेकर जो
उम्मीद बंधी थी, वह टूटती नजर आई। पहले ही दिन आतंकियों ने श्रीनगर के डलगेट इलाके से राज्य पुलिस के जवानों की तीन राइफलें लूट लीं। यह घटना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आगमन से दो दिन पहले हुई थी। इसके बाद आतंकी अगले दो दिन शांत रहे। इसके बाद कोई ऐसा दिन नहीं बीता, जब आतंकियों ने
अपनी उपस्थिति का अहसास न कराया हो। रमजान संघर्ष विराम के चलते पूरी वादी में सुरक्षाबलों ने अपने आतंकरोधी अभियान स्थगित रखे, जबकि आतंकियों के हमले जारी रहे। इस दौरान 24 आतंकी
मारे गए। इनमें से 22 एलओसी (नियंत्रण रेखा) पर घुसपैठ के प्रयास में मारे गए, जबकि दो बांडीपोर के जंगल में मारे गए। आतंकियों ने दक्षिण कश्मीर से उत्तरी कश्मीर तक पुलिस चौकियों और सुरक्षा शिविरों पर 25 हमले किए। इनमें से अधिकांश ग्रेनेड हमले ही थे। बीते 29 दिनों में नौ सुरक्षाकर्मी शहीद हुए।
बीते दो दिनों में तीन बड़े सनसनीखेज हमले हुए। गत गुरुवार को आतंकियों ने ईद मनाने जा रहे सैन्यकर्मी को अगवा कर मौत के घाट उतारने के अलावा लालचौक में वरिष्ठ पत्रकार शुजात बुखारी और उनके दो अंगरक्षकों की हत्या कर दी। जैसे यही काफी नहीं था, शुक्रवार को भी जुमातुल विदा पर आतंकियों ने श्रीनगर में एक पुलिस नाका पार्टी पर हमला किया, जिसमें पांच लोग जख्मी हो गए। हालांकि पहले दावा किया जा रहा था कि वादी के भीतरी इलाकों में आतंकरोधी अभियानों के दौरान आतंकियों की मौत नए आतंकियों को जन्म दे रही है, लेकिन रमजान संघर्षविराम ने इस मिथक को तोड़ा है। करीब एक दर्जन लड़के आतंकी बने हैं।
इनमें चार जैश ए मोहम्मद में और चार अल-बदर में शामिल हुए हैं। शोपियां के रहने वाले आइपीएस अधिकारी का भाई कथित तौर पर हिजबुल मुजाहिदीन का हिस्सा बना है। एक नौ साल का लड़का भी आतंकी जमात का हिस्सा बना है। सूत्रों की मानें तो करीब 18 लड़के बीते 29 दिनों में आतंकी बने हैं। कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ मुख्तार अहमद बाबा के अनुसार, बेशक अप्रैल माह की तुलना में मई का महीना या जून के यह 10-12 दिन किसी हद तक शांत कहे जा सकते हैं, लेकिन यह किसी भी तरह से वादी के हालात सामान्य होने का संकेत नहीं देते। कोई ऐसा दिन नहीं बीता है, जब आतंकियों ने किसी जगह हमला न किया हो। यहां जमीनी स्तर पर कोई बदलाव नहीं आया है।