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ऐक्शन और आरोपों के साथ पूरा हुआ राज्यपाल राम नाईक का पांच साल का कार्यकाल

उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक  का पांच साल का कार्यकाल रविवार को पूरा हो जाएगा। शनिवार को आनंदी बेन पटेल को उनका उत्तराधिकारी भी घोषित किया जा चुका है, लेकिन इन पांच वर्षों में राम नाईक ने जो फैसले लिए, उनकी धमक जनता के साथ सत्ता भी लगातार महसूस करती रही। ‘रबर स्टैंप’ राज्यपाल की परंपरा को तोड़ते हुए नाईक ने सरकार को कई फैसलों पर अपने ‘स्टैंप’ के लिए तरसा दिया। इस दौरान राजभवन पर सियासी होने के भी आरोप खूब लगे, लेकिन उनके जवाब नाईक ने संविधान की किताब से तलाश कर सबके सामने रख दिए।

सक्रिय राजनीति में चार दशक बिताने के बाद 22 जुलाई 2014 को राम नाईक ने उत्तर प्रदेश के राज्यपाल  के पद पर शपथ ली थी। नाईक ने राजभवन को आरामगाह बनाने की जगह सक्रियता की नई परिभाषा से जोड़ दिया। सड़क पर पेड़ गिरने से रास्ता रुकना हो, क्लब में वेशभूषा के चलते किसी की एंट्री पर रोक या पिछली सरकार के सबसे ताकतवर मंत्री के तेवर ढीले करने हों… राजभवन हर जगह सुर्खियां बटोरता रहा। 10 से अधिक भाषाओं में प्रकाशित हुई नाईक की पुस्तक ‘चरैवेति! चरैवेति!’ भी चर्चा में रही।

राम नाईक का कार्यकाल अखिलेश और  योगी सरकार में लगभग आधा-आधा बंटा रहा है। बतौर राज्यपाल सुलभ रहने के साथ उनकी मुखर टिप्पणियां अखिलेश यादव  सरकार के लिए खास तौर पर मुसीबत बनती रहीं। विधान परिषद में मनचाहे चेहरों को एमएलसी नामित करवाने की पिछली समाजवादी सरकार की कोशिशों पर भी नाईक भारी पड़े।

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