यह आसन्न नगर निकाय चुनाव की चिंता ही है कि राज्य की मलिन बस्तियों में वोटों की लहलहाती फसल काटने के लिए विपक्षी कांग्रेस और सत्तारूढ़ भाजपा दोनों ही दल आतुर हैं। अतिक्रमण हटाओ अभियान की जद में आ रही मलिन बस्तियों को बचाने के लिए पहले भाजपा विधायक उतरे और फिर सरकार अध्यादेश ले आई तो अब कांग्रेस ने एक कदम आगे बढ़कर बस्तियों के नियमितीकरण की मांग उठा दी है।
बस्तियों पर चल रही दलों की ये सियासत क्या रंग लाएगी, ये तो चुनाव नतीजों के बाद ही पता चलेगा, लेकिन सियासतदां के हस्तक्षेप के बाद बस्तियों में रहने वाली लाखों की आबादी को बेहतर जिंदगी देने की मुहिम पटरी से उतरने के आसार जरूर बन गए हैं।
हाईकोर्ट के मलिन बस्तियों को हटाने और उन्हें सुव्यवस्थित करने के निर्देशों पर अब सियासत तारी हो गई है। सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों ही इस मामले में पीछे रहने को तैयार नहीं है। यही वजह है कि नदियों-नालों समेत संवेदनशील स्थानों पर जीवन दांव पर लगाकर रहने को मजबूर गरीब आबादी का ठौर-ठिकाना सुरक्षित और बेहतर होगा, इसे लेकर भी अब संशय मंडराने लगा है। दरअसल, प्रदेश में जल्द ही नगर निकाय चुनाव होने हैं। चुनाव के मौके पर मलिन बस्तियों को लेकर हाईकोर्ट का आदेश सरकार और सत्तारूढ़ दल के हाथ-पांव फुला चुका है। बस्तियों को हटाने के नोटिस जारी होते ही सत्तारूढ़ दल के विधायकों ने ही बस्तीवासियों के समर्थन में उतरने में देर नहीं लगाई। नतीजतन सरकार ने भी मलिन बस्तियों को संकट से निजात दिलाने को अध्यादेश का सहारा ले लिया।
वहीं, विपक्ष भी मलिन बस्तियों के मुद्दे को लेकर सत्तापक्ष से किसी भी सूरत में पीछे रहने को तैयार नहीं है। वजह एकदम साफ है। चुनाव के मद्देनजर विपक्षी दल कांग्रेस की नजरें भी मलिन बस्तियों के वोट बैंक पर टिकी हैं। इसे अपना परंपरागत वोट बैंक मानने वाली कांग्रेस ने बस्तियों की सियासत पर एक कदम आगे बढ़ाते हुए इनके नियमितीकरण की मांग तेज कर दी है। पार्टी ने इस मुद्दे पर राजधानी देहरादून में भारी बारिश के बावजूद शक्ति प्रदर्शन किया। बस्तियों के नियमितीकरण की मांग बुलंद किए जाने के विपक्ष के इस कदम के साथ यह भी तकरीबन तय हो गया है कि भविष्य में बस्तियों के पुनर्वास और सुधार के सरकार के एजेंडे का कांग्रेस पुरजोर विरोध का मौका हाथ से जाने नहीं देगी।