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भूख से बच्चियों की मौत का रहस्य गहराया, संदेह में मददगार, कमरे से मिली कीटनाशक दवाएं

मंडावली के पंडित चौक इलाके में एक ही परिवार की तीन बच्चियों की मौत का रहस्य गहराता जा रहा है। लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल में 24 जुलाई को हुए पोस्टमार्टम की रिपोर्ट और गुरु तेग बहादुर अस्पताल में मेडिकल बोर्ड द्वारा किए गए पोस्टमार्टम के बाद मौत का कारण भूख को माना जा रहा है। लेकिन, एसडीएम व पुलिस द्वारा की जा रही जांच में कुछ अलग पहलू भी सामने आ रहे हैं। पुलिस को बच्चियों के कमरे से कई तरह की दवा मिली हैं। इनमें कुछ कीटनाशक दवा (मच्छर मारने वाली लिक्विड दवा) भी शामिल हैं, जिन्हें अब जांच के लिए लैब भेज दिया गया है।

विसरा रिपोर्ट से सुलझेगी गुत्थी

एसडीएम अरुण गुप्ता ने डिविजनल कमिश्नर को जो घटनाक्रम की लिखित जानकारी दी है और उसमें उन्होंने बच्चियों के पिता मंगल के दोस्त नारायण यादव के बयान का भी जिक्र किया है। इसके अनुसार, नारायण ने पुलिस और एसडीएम से बताया कि 22 जुलाई को मंगल ने उल्टी दस्त रोकने के लिए एक दवा खरीदकर बच्चियों को पिलाई थी। दवा क्या थी, इसकी उन्हें जानकारी नहीं है। ऐसे में आशंका यह भी है कि कहीं वह कीटनाशक दवा तो नहीं थी। वहीं, बड़ी बच्ची मानसी के बैंक अकाउंट में करीब दो हजार रुपये होने और मौत से एक दिन पहले मानसी के मिड-डे-मील खाने का भी जिक्र है। दूसरे पोस्टमार्टम और विसरा की रिपोर्ट अभी नहीं आई है। अब विसरा रिपोर्ट पर सबकी नजर टिकी है।

मंगल की तलाश में पश्चिम बंगाल गई पुलिस

दिलशाद गार्डन स्थित मानव व्यवहार एवं संबद्ध विज्ञान संस्थान (इहबास) में भर्ती बच्चियों की मां वीणा देवी के बयान पर मंडावली थाना पुलिस ने मंगल की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज की है। बच्चियों के पिता मंगल घटना के दिन से ही लापता हैं। सूत्रों के अनुसार, पुलिस की एक टीम मंगल की तलाश के लिए तीन वर्ष पहले मंगल की चाय और पराठे की दुकान पर काम करने वाले कर्मचारी को साथ लेकर पश्चिम बंगाल भी गई है।

मददगार की भूमिका संदिग्ध

सूत्रों की मानें तो पुलिस और एसडीएम की जांच में नारायण यादव की भूमिका भी संदिग्ध लग रही है। पुराने पड़ोसियों ने भी नारायण पर शक जाहिर किया था। पुलिस अभी उससे सख्ती से इसलिए पूछताछ नहीं कर रही है, क्योंकि मानसिक रूप से कमजोर बच्चियों की मां की देखभाल करने वाला कोई नहीं है। नारायण द्वारा दिए गए बयान का विश्लेषण किया जा रहा है। नारायण यही कह रहे हैं कि उन्हें नहीं पता कि मंगल ने बच्चियों को क्या दवा दी और न ही उन्होंने देखा। वहीं, जिलाधिकारी कार्यालय में नारायण ने कहा था कि वह मंगल से बार-बार बच्चियों को अस्पताल ले जाने के लिए कह रहे थे, लेकिन मंगल उल्टी दस्त खुद ही ठीक होने की बात कहकर टाल रहे थे।

घर के सामने निःशुल्क खाना, फिर भी भूख से मौत

मंडावली के पंडित चौक इलाके में जिस घर की तीन बच्चियों की भूख से मौत हुई है, उसके ठीक सामने आंगनबाड़ी केंद्र है। यहां पढ़ने वाले 30 बच्चों को भोजन भी दिया जाता है। बताया जा रहा है कि जिस मकान में तीनों बच्चियां 21 जुलाई से रहती थीं, उस मकान में किराए पर रहने वाले 35 परिवारों के बच्चे भी इसी आंगनबाड़ी केंद्र से भोजन लेते हैं। ऐसे में 24 जुलाई को शिखा, मानसी और पारुल की भूख से मौत पर सभी हैरान हैं।

मृत बच्चियों के पिता मंगल के दोस्त नारायण यादव का कहना है कि मकान मालिक के डर की वजह से वह अपने कमरे का दरवाजा बंद रखते थे। उन्हें डर था कि इस परिवार को देखकर मकान मालिक कमरे से निकाल न दे। आंगनबाड़ी केंद्र की संचालिका ने भी कहा कि जिन बच्चियों की मौत हुई है, वे कभी खाना लेने के लिए नहीं आई थीं। ऐसे में सवाल यह भी है कि जब बच्चियां दाने-दाने के लिए मोहताज थीं तो क्या मंगल आंगनबाड़ी केंद्र से बच्चियों को खाना लाकर नहीं दे सकते थे। नारायण ने पुलिस से कहा कि मौत से एक दिन पहले मानसी ने मुर्गे की एक बोटी खाई थी, अन्य दोनों बहनों ने भी दाल खाई थी, लेकिन उल्टी-दस्त के कारण खाना नहीं पचा।

15 दिन पहले रिक्शा मिस्त्री ने परिवार को दिया था खाना

मंडावली साकेत ब्लॉक में रेलवे की जमीन पर बनी झुग्गियों के पास पंकज के रिक्शा गैराज के मिस्त्री छोटेलाल मंगल की आर्थिक स्थिति से भलीभांति वाकिफ थे। इसलिए अक्सर उनकी मदद किया करते थे। मूल रूप से उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के रहने वाले छोटेलाल ने 15 दिन पहले ही मंगल के परिवार को आटा, दाल, सब्जी के साथ छोटे सिलेंडर में गैस भरवाकर दी थी। छोटेलाल ने बताया कि उन्होंने कई बार मंगल के परिवार की मदद की। वह खुद राशन देकर आते थे। वह अमीर तो नहीं हैं, लेकिन एक गरीब होकर दूसरे गरीब की पीड़ा को अच्छे से समझते हैं।

मोहल्ला क्लीनिक से नहीं ली दवाई

मंडावली पंडित चौक के पास तलाब चौक के पास दिल्ली सरकार का मोहल्ला क्लीनिक है। कहा जा रहा था कि उल्टी दस्त रोकने के लिए मोहल्ला क्लीनिक में जांच कराई गई थी। इसलिए दिल्ली सरकार ने मोहल्ला क्लीनिक में उस रजिस्टर की जांच कराई, जिसमें मरीजों की जानकारी दर्ज की जाती है। उस रजिस्टर में बच्चियों के नाम नहीं मिले।

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