जम्मू कश्मीर

मुहर्रम की आड़ में लहराए जा रहे आतंकी बुरहान वानी के पोस्टर

श्रीनगर। कश्मीर में आतंकवाद और अलगाववाद से अक्सर दूर रहने वाले शिया समुदाय में जिहाद और अलगाववाद के बीज फिर से बोने की साजिश रची गई है। जगह-जगह निकल रहे मुहर्रम के ताजियों और जुलूसों में आतंकी बुरहान वानी के पोस्टर खुलेआम लहराए जा रहे हैं। जुलूस में शामिल कुछ शरारती तत्व लोगों को बुरहान का रास्ता पकड़ने और कश्मीर में जिहाद का हिस्सा बनने के लिए उकसा रहे हैं।

मुहर्रम के जुलूस में आतंकियों के महिमामंडन से सुरक्षा एजेंसियां सकते में आ गई हैं। सभी उन तत्वों की निशानदेही करने में जुट गई हैं जो इस साजिश को अमली जामा पहना रही हैं। कश्मीर में शिया समुदाय का एक वर्ग विशेष शुरू से अलगाववादियों का समर्थक रहा है।

शियाओं ने 1990 के दशक में पासवान ए इस्लामी और हिजबुल मोमनीन नामक आतंकी संगठन बनाए थे। पाकिस्तान के खेल को समझने के बाद ये संगठन निष्क्रिय हो गए। इनसे जुड़े अधिकांश आतंकी मारे गए या मुख्यधारा में शामिल हो गए थे। आगा सईद हसन बड़गामी और मौलाना अब्बास अंसारी जैसे शिया नेता हुर्रियत में शिया समुदाय का प्रतनिधित्व कर रहे हैं, लेकिन मजहबी आधार को छोड़ दोनों का ज्यादा सियासी आधार अपने समुदाय में नहीं है।

कश्मीर में मौजूदा समय में सक्रिय आतंकियों में शिया समुदाय से एक या दो आतंकी हैं। महानिरीक्षक रैंक के एक पुलिस अधिकारी ने कहा कि बेशक यहां कुछ शिया आतंकी संगठन रहे हैं। सामान्य तौर पर यह समुदाय कभी आतंकी हिंसा और अलगाववाद का समर्थक नहीं रहा है।

इस समुदाय से जुड़े कुछ लड़के पत्थरबाजी में किसी जगह स्थानीय परिस्थितयों के चलते लिप्त रहे हैं, लेकिन बीते 18 वर्षो में कोई शिया लड़का आतंकी नहीं बना है। गत वर्ष एक शिया लड़के के आइएस(इस्लामिक स्टेट) से जुड़े होने की बात जरूर सामने आई थी, लेकिन वह एक अपवाद है।

उन्होंने कहा कि मुहर्रम के जुलूस के दौरान फिलस्तीन में सक्रिय हिजबुला के कुछ कमांडरों के पोस्टर जरूर यहां नजर आते रहे हैं, लेकिन किसी कश्मीरी आतंकी का पोस्टर या उसके नाम पर नारेबाजी मुहर्रम के जुलूस में नहीं होती थी।

मंगलवार को जिस तरह से मुहर्रम के जुलूस में बुरहान के पोस्टर निकले और उसका नाम लेकर कश्मीर के हालात को जोड़ने वाले जो भाषण हुए हैं, वह गंभीर चिंता का विषय है।

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