दिल्ली में 38 घंटे चले आग के तांडव का पूरा सच
नई दिल्ली। दक्षिणी दिल्ली के मालवीय नगर स्थित रबर के गोदाम में मंगलवार शाम पांच बजे लगी भीषण आग 38 घंटे तक सुलगती रही। इसे बुझाने के लिए वहां दिन-रात 200 से ज्यादा दमकल कर्मी और अधिकारी जुटे रहे। आग गुरुवार सुबह पूरी तरह से बुझाई जा सकी। यह पहला मौका था जब वायुसेना ने शहरी इलाके में हेलीकॉप्टर से आग बुझाने के लिए ऑपरेशन चलाया। अब घटनास्थल से सैकड़ों टन मलवा हटाने की कवायद शुरू की जा रही है। इस घटना से जहां इलाके में अब भी दहशत है, वहीं रबर और रसायन के जलने की दुर्गंध से निवासियों का बुरा हाल है। दिल्ली फायर सर्विस के चीफ फायर ऑफिसर अतुल गर्ग ने बताया कि गोदाम में सैकड़ों ट्रक वाहनों के टायर की मरम्मत के लिए रबर, कच्चा माल, प्लास्टिक की शीट सहित रसायन के ड्रम थे।
इस वजह से ही आग तेजी से फैली और दमकल कर्मियों को उसे बुझाने में ज्यादा वक्त लगा। रबर और प्लास्टिक जलने के बाद तरल पदार्थ का रूप ले लेते हैं। इस भीषण आग को बुझाना दमकल विभाग के सामने एक चुनौती थी। सूचना मिलते ही कर्मी मौके पर पहुंच गए थे। गोदाम में अत्यंत ज्वलनशील सामान होने और मंगलवार रात तेज हवा चलने से आग बुझाने में दिक्कत आई। तमाम बाधाओं के बावजूद बुधवार सुबह सात बजे आग को काबू में कर लिया गया था। ताप कम करने के लिए वहां दो से तीन दमकल की गाड़ियां लगातार जुटी हुईं थीं। गुरुवार सुबह छह बजे करीब 38 घंटे बाद आग को पूरी तरह बुझा लिया गया।
वेल्डिंग की चिंगारी से तो नहीं लगी आग
मालवीय नगर के खिड़की एक्सटेंशन स्थित प्लाट संख्या जे-ए1/1 में बने रबर के गोदाम में मंगलवार शाम आग लगी थी। गोदाम मैक्सवेल प्राइवेट लिमिटेड कंपनी ने किराये पर ले रखा था। करीब 15 साल से टीन शेड में अवैध रूप से चल रहे इस गोदाम में आग से बचाव के इंतजाम नहीं थे। करीब तीन हजार गज में बने गोदाम में रबर, कच्चा माल सहित प्लास्टिक की शीट रखी गई थी। घटना के वक्त गोदाम में एक ट्रक पर रबर की शीट लादी जा रहीं थीं तभी अचानक ट्रक में आग लग गई। बताया जाता है कि एक इमारत में की जा रही वेल्डिंग की चिंगारी से पहले ट्रक और बाद में गोदाम में आग लगी। पुलिस आग के कारणों की जांच कर रही है। लापरवाही बरतने पर गोदाम मालिक को गिरफ्तार किया गया है।
हाई कोर्ट ने मामले में लिया स्वत: संज्ञान, मांगी रिपोर्ट
मालवीय नगर में गोदाम में लगी आग की घटना का हाई कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया। कोर्ट ने दिल्ली पुलिस, दमकल विभाग दक्षिण दिल्ली नगर निगम व गोदाम के मालिक संजय सैनी को गुरुवार कोनोटिस जारी कर जवाब मांगा है। कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश गीता मित्तल की पीठ ने दक्षिणी दिल्ली पुलिस उपायुक्त को आदेश दिए की मामले की जांच कर रिपोर्ट पेश करें। इलाके में हुए अवैध कब्जे को लेकर स्थिति साफ करने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई तीन जुलाई को होगी। मामले में सख्त रुख अपनाते हुए पीठ ने कहा कि जांच रिपोर्ट में जानकारी दी जाए कि गोदाम का मालिक कौन है, गोदाम कब बनाया गया और इसके कब्जेदार कौन हैं। कब से इस जगह का व्यावसायिक इस्तेमाल हो रहा है। प्रकरण में पुलिस की भूमिका की भी जांच हो।
दिल्ली पुलिस से आग पर काबू पाने के लिए हुए खर्च का ब्योरा भी देने का आदेश दिया। पीठ ने पुलिस उपायुक्त से गोदाम से संबंधित शिकायतें और शिकायत करने वालों की भी सूची पेश करने का आदेश दिया। मालवीय नगर में गोदाम में लगी आग की स्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आग पर काबू पाने के लिए पहली बार वायुसेना का सहारा लेना पड़ा। वहीं पुलिस के अनुसार आरोपित गोदाम मालिक संजय सैनी ने किसी भी विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) नहीं लिया था। उसे गिरफ्तार किया गया है।
रिहायशी क्षेत्र में पहली बार वायुसेना का बांबी ऑपरेशन
मालवीय नगर स्थित रबर के गोदाम में लगी आग को बुझाने के लिए वायुसेना के हेलीकॉप्टर एमआइ-17 को भी लगाया गया था। हेलीकॉप्टर से बांबी बकेट द्वारा तीन बार में आग पर करीब नौ हजार लीटर पानी का छिड़काव किया गया। वायुसेना के अधिकारियों के मुताबिक यह पहला मौका था जब सेना ने रिहायशी इलाके में बांबी ऑपरेशन चलाया। इससे पहले जंगल में लगी आग में कई बार वायुसेना के हेलीकॉप्टर का प्रयोग किया जा चुका है। रिहायशी इलाका, क्षेत्र में ऊंची इमारतें व हाईटेंशन तार होने के कारण हेलीकॉप्टर द्वारा आग बुझाने में कई तरह की चुनौतियां थीं, लेकिन सेना के प्रशिक्षित विंग कमांडर ने इसे बखूबी अंजाम दिया।
मंगलवार शाम आग लगने के बाद डीएम ने आधी रात में वायुसेना से हेलीकॉप्टर की मांग की थी। रात में हेलीकॉप्टर का संचालन नहीं होने के कारण अधिकारियों ने सुबह प्रबंध करने का भरोसा दिया। बुधवार सुबह सहारनपुर से वायुसेना का हेलीकॉप्टर पालम लाया गया। बाद में यमुना जलाशय से बांबी बकेट से पानी भरकर गोदाम में लगी आग पर डाला गया। ऊंची इमारतों, पेड़ और हाईटेंशन तारों से बचाते हुए बांबी बकेट को घटनास्थल तक ले जाना था। ज्यादा धुएं के कारण यह पता लगाने में परेशानी हुई कि पानी डाला कहां जाए। यमुना जलाशय को भी ढूंढ़ने में दिक्कत आई। बांबी बकेट लगी होने के कारण पहले ज्यादा ऊंचाई पर हेलीकॉप्टर को उड़ाया गया फिर घटनास्थल पर धीरे-धीरे नीचे लाकर पानी गिराया गया। कम ऊंचाई पर धुआं और पक्षियों के टकराने के डर के बीच प्रशिक्षण कर्मियों ने सफलतापूर्वक कार्य को अंजाम दिया।
क्या है बांबी बकेट: बांबी बकेट लचीले मिश्रित कपडे़ से बना एक बाल्टीनुमा ढांचा है, जिसमें पानी भरकर हवाई मार्ग द्वारा कार्रवाई की जाती है। इसका रंग अमूमन संतरे जैसा होता है। आग पर काबू पाने के लिए अलग-अलग क्षमता की बांबी बकेट होती हैं। इनमें नदियों या तालाब से पानी भरा जाता है। इसका प्रयोग भारत सहित अन्य देश की सेना ज्यादातर जंगल में लगी आग को बुझाने में करती हैं। इसका आविष्कार कनाडा निवासी डॉन अरने ने वर्ष 1980 में किया था। वर्ष 1983 से इसका व्यावसायिक उत्पादन शुरू हो गया था।
हेलीकॉप्टर की नहीं थी जरूरत : दमकल विभाग
दिल्ली फायर सर्विस के निदेशक डॉ. जीसी मिश्रा कहते हैं कि मालवीय नगर में लगी आग भले ही भीषण थी, लेकिन दमकल विभाग की क्षमता से बाहर नहीं थी। इसके लिए हेलीकॉप्टर की जरूरत नहीं थी। सूचना मिलते ही दमकल की गाड़ियों को रवाना कर दिया गया था। शुरुआत में गोदाम में रबर और रसायन जलने के अलावा तेज हवा चलने के कारण दमकलकर्मियों को आग बुझाने में दिक्कत आई थी, लेकिन छह घंटे बाद स्थिति नियंत्रण में आ गई थी। गुरुवार सुबह सात बजे आग पर काबू पा लिया गया था। इसके बाद हेलीकॉप्टर से आग पर पानी का छिड़काव किया गया, जिसका ज्यादा फायदा नहीं हुआ। स्थिति को नियंत्रण में देखते हुए ही अन्य राज्यों से मदद और न ही हेलीकॉप्टर की मांग की थी।
आग के मुहाने पर है दक्षिणी दिल्ली का इलाका
मालवीय नगर की घटना के बाद दक्षिणी दिल्ली में आग का खतरा कम नहीं हुआ है। यहां कई रिहायशी इलाकों में बड़े पैमाने पर अब भी धड़ल्ले से अवैध तरीके से फैक्ट्रियां चल रहीं हैं। स्थित यह है एक छोटी सी चिंगारी भी भीषण आग का कारण बन सकती है, लेकिन एजेंसियों को इसकी परवाह नहीं है। इससे जहां वायु व ध्वनि प्रदूषण बढ़ा रहा है, वहीं जल भी प्रदूषित हो रहा है। प्रदूषण की वजह से स्थानीय निवासी कई बीमारियों की चपेट में आ चुके हैं। फैक्ट्रियों से रात में होने वाले ध्वनि प्रदूषण की वजह से लोगों में सुनने की क्षमता कम हो रही है। नींद नहीं आने की शिकायत भी आम हो गई है।
दक्षिणी दिल्ली में सबसे प्रभावित इलाकों में तुगलकाबाद, जैतपुर, सरिता विहार, जामिया, बदरपुर, मदनपुर खादर, गोविंदपुरी शामिल हैं। अन्य कॉलोनियां भी इससे अछूती नहीं हैं। रिहायशी इलाकों में संकरी गलियों में मौजूद घरों में बेधड़क रबर, रसायन, स्टील और तेजाब की फैक्ट्रियां चल रहीं हैं। जानकारों का कहना है कि अवैध होने के कारण इनके मालिकों को न तो विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) मिल सकता है और न ही आग से बचाव के कोई उपाय किए गए हैं।
लिहाजा आग विकराल रूप धारण कर लेती है। गत दिनों तुगलकाबाद, जामिया और मदनपुर खादर इलाके में आग की घटनाओं में जहां कई लोग हताहत हुए, वहीं करोड़ों की संपत्ति का नुकसान भी हुआ। बावजूद इसके विभिन्न विभागों के अधिकारी हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। मालवीय नगर निवासी किरण देवी का कहना है कि वर्ष 2000 में सुप्रीम कोर्ट ने रिहायशी इलाके में चल रह रहीं फैक्ट्रियों को हटाने के संबंध में निर्देश जारी किए थे। नोडल एजेंसी का अध्यक्ष तत्कालीन केंद्रीय शहरी विकास मंत्री जगमोहन को बनाया गया था। अवैध फैक्ट्रियां सील की गईं। मालिकों को बवाना, नरेला व अन्य औद्योगिक क्षेत्रों में प्लाट आवंटित किए गए थे, लेकिन बाद में फिर लोगों ने नरेला-बवाना इलाके के प्लाट को किराये पर दे दिया और उद्योग दोबारा अपने घरों में चालू कर लिया। स्थानीय निवासी राकेश शर्मा ने बताया कि वर्तमान में स्थित बहुत ही विकट है। फैक्ट्रियों के कारण आग का खतरा बना रहता है।
प्रदूषण की स्थिति विकराल
प्रदूषण की स्थित भी विकराल हो गई है। रात होते ही फैक्ट्रियों में मशीन चलने से ध्वनि प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ जाता है। जहरीले धुएं के कारण सांस लेना मुश्किल हो जाता है। इस वजह से लोग गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं। पुलिस से शिकायत करने के बाद कुछ समय के लिए फैक्ट्रियां बंद कर दी जाती हैं, लेकिन कुछ दिन बाद दोबारा शुरू हो जाती हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि रिहायशी इलाके में अवैध गतिविधियों की जानकारी देने की जिम्मेदारी पुलिस को दी गई है। पुलिस के बताने पर स्थानयी एसडीएम को कार्रवाई करना होता है, लेकिन ज्यादातर मामलों में कार्रवाई नहीं होती है। उनका कहना है कि पैसे का लेनदेन भी होता है।
समस्या का सबब बनी हैं अवैध रूप से चल रहीं फैक्ट्रियां
दिल्ली फायर सर्विस के निदेशक डॉ. जीसी मिश्रा का कहना है कि रिहायशी इलाके में अवैध रूप से चल रहीं फैक्ट्रियां दमकल विभाग के लिए समस्या का सबब बनी हुईं हैं। वहां आग से बचाव के इंतजाम नहीं होते हैं, जिससे जानमाल की क्षति ज्यादा होती है। विभिन्न एजेंसियों को इसमें सख्ती बरतने की जरूरत है।
धुआं छंटा, बरतें एहतियात
मालवीय नगर में लगी आग के दो दिन बाद धुआं तो लगभग खत्म हो गया है, लेकिन स्थानीय लोगों को सांस लेने में थोड़ी परेशानी हो रही है। पर्यावरण विशेषज्ञ एक-दो दिन तक अधिक सावधानी बरतने की सलाह दे रहे हैं। उनका कहना है कि मास्क लगाए रखें ताकि रबर के जलने से उत्पन्न धुआं शरीर के भीतर तक न जाने पाए। मालवीय नगर में एयर मॉनिर्टंरग स्टेशन नहीं है, इसलिए वहां के वायु प्रदूषण का अधिकृत आंकड़ा मिलना संभव नहीं है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के पूर्व अपर निदेशक डॉ. एसके त्यागी कहते हैं कि इस तरह की आग का धुआं कुछ घंटे बाद छंट जाता है, लेकिन उसके प्रदूषक तत्व कई दिन तक वातावरण में रहते हैं। इसलिए अस्थमा या सांस के रोगी ही नहीं, सामान्य लोगों को भी मास्क लगाए रखना चाहिए। हवा की गति भी फिलहाल ज्यादा नहीं है। ऐसे में सब कुछ साफ होने में दो तीन दिन लग ही जाएंगे। रबर जलने पर उसका असर सामान्य वस्तुओं की तुलना में अधिक देर तक रहता है। हवा की गति कम होने और नमी बनी रहने से वातावरण में मौजूद प्रदूषक तत्व धीरे-धीरे खत्म होंगे।
अब भी डरे हुए हैं लोग, सांस लेने में हो रही है परेशानी
मालवीय नगर में रबर के गोदाम में लगी आग भले ही बुझा ली गई हो, लेकिन इसका खौफ स्थानीय लोगों के चेहरे पर साफ झलक रहा है। जहरीले धुएं के कारण लोगों को सांस लेने में थोड़ी परेशानी हो रही है। डर का आलम यह है कि कई लोग अभी अपने घरों में नहीं लौटे हैं। घटनास्थल पर रसायन से भरे ड्रम भी पड़े हुए हैं। इससे लोगों को दोबारा से आग भड़कने का खतरा सता रहा है।