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केंद्र सरकार द्वारा संशोधन प्रस्ताव को लेकर मध्यप्रदेश में ब्यूरोक्रेट्स आमने-सामने

अखिल भारतीय सेवाओं के कॉडर नियमों में केंद्र सरकार द्वारा संशोधन प्रस्ताव को लेकर मध्यप्रदेश में ब्यूरोक्रेट्स आमने-सामने आ गए हैं। भारतीय प्रशासनिक सेवा में रहे पूर्व अफसरों का मत है कि आईएएस अधिकारियों  को केंद्र में जबरन डेपुटेशन पर नहीं लेना चाहिए और राज्य सरकारों पर दबाव बनाया जाना भी उचित नहीं है। वहीं आईपीएस और आईएफएस के पूर्व अधिकारियों का कहन है कि केंद्र सरकार का प्रस्ताव बिल्कुल ठीक है। ाज्यों को अपना कॉडर मैनेजमेंट सही करना चाहिए। गौरतलब है कि अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों को राज्यों से केंद्र में डेपुटेशन पर लेने के लिए लाए जा रहे संशोधन प्रस्ताव पर राज्यों से उनका मत मांगा गया है। इसको लेकर कांग्रेस और गैर भाजपा शासित प्रदेशों ने विरोध जताया है। ऐसे राज्यों का कहना है कि संशोधन प्रस्ताव से केंद्र का दबाव बढ़ेगा। फिलहाल मप्र की ओर से दिए गए किसी सुझाव को लेकर कोई जानकारी सामने नहीं आई है। केंद्र के प्रस्ताव पर 25 जनवरी तक राज्य को अपना मत देना है। पीएस जीएडी से कई बार संपर्क करने का प्रयास पर भी वे उपलब्ध नहीं हुई। यह है कॉडर नियम – अखिल भारतीय सेवा के अफसरों की भर्ती केंद्र सरकार करती है लेकिन जब उन्हें उनके राज्य का कॉडर दिया जाता तो वे राज्य सरकार के अधीन आ जाते हैं। किसी अधिकारी को राज्य सरकार और केंद्र सरकार की सहमति से ही केंद्र सरकार या किसी दूसरे राज्य में प्रतिनियुक्ति दी जा सकती है। अगर प्रतिनियुक्ति में किसी भी तरह की कोई असहमति होती है तो फैसला केंद्र सरकार करती है और इस फैसले को राज्य सरकार को मानना होता है। यह है संशोधन प्रस्ताव – केन्द्र अफसरों को केन्द्र में पदस्थ कर सकती है और उस राज्य सरकार को तय समय में केंद्र के फैसले को लागू करना होगा। अगर समय रहते राज्य सरकार केंद्र के फैसले को लागू नहीं करती है और अधिकारी को मुक्त नहीं करती है तो केंद्र की ओर से तय तारीख में अधिकारी को कॉडर से मुक्त माना जाएगा। तय समय में राज्य सरकार को केंद्र के फैसले को लागू करने की बात कही गई है जबकि मौजूदा नियम में ऐसी कोई समय सीमा नहीं है। पूर्व मुख्य सचिव केएस शर्मा कहते हैं कि अमूमन राज्यों में पदस्थ आईएएस केंद्र में जाना नहीं चाहते हैं। जिस तरह से केंद्र का संशोधन प्रस्ताव है उससे राज्य के पॉवर कम हो जाएंगे। दबाव बनाकर अफसर को पदस्थ करना उचित नहीं है। उनका कहना है कि केन्द्र को राज्य में आईएएस अफसरों की व्यवस्था को देखते हुए निर्णय लेना चाहिए। वैसे राज्य शासन को अपना मत यही देना चाहिए कि केन्द्र का संशोधन प्रस्ताव ठीक नहीं है। पूर्व सीएस निर्मला बुच का कहना है कि दरअसल, पहले आईएएस अफसर केन्द्र में जाते थे। अफसरों को केन्द्र में जाना चाहिए, इससे भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में कामकाज का अनुभव मिलता है। पॉलिसी मैकिंग की दृष्टि से भी यह उचित है। केंद्र में पद भरना भी जरूरी है। जहां तक राज्य में आईएएस की कमी की बात है तो केंद्र को डिमांड के अनुसार पद भरना चाहिए। अफसर से उनकी कठिनाईयों को जानते हुए भी कोई निर्णय लेना चाहिए। पूर्व पुलिस महानिदेशक अरुण गूर्टू का कहना है कि केंद्रीय सेवाओं में इंडीविजुअल, स्टेट और सेंटर है, जिसमें कॉडर में ही डेपुटेशन का कोटा फिक्स होता है। इसी इसी कोटे पर केन्द्र निर्भर रहता है। ऐसे में अगर स्टेट सपेयर नहीं करता या इंडिविजुअल ही नहीं जाना चाहे तो बड़ी विषम स्थिति बन जाएगी, तो ऐसे कैसी चलेगा? स्अेट अड़चन डालते हैं या एनओसी में देरी करते हैं तो केन्द्र कैसे काम चलाए। ऐसे में केंद्र द्वारा उठाया गया कदम मजबूरी में ही सही, लेकिन सही है।  

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