पंतनगर, ऊधमसिंह नगर: ज्वलंत पर्यावरण पहलुओं को प्रकाशित करने वाली अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका ‘एन्वायरमेंटल रिसर्च लेटर्स’ में वैज्ञानिकों ने भारत के बड़े भू-भाग के लिए खतरे की घंटी बजा दी है। इसमें चेतावनी दी गई है कि बढ़ती गर्मी एवं उमस के संयुक्त प्रभाव से भारत का उत्तर-पूर्वी क्षेत्र (जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिमी बंगाल, दार्जिलिंग, सिक्किम एवं अरुणाचल प्रदेश) 21वीं सदी के अंत तक हीट स्ट्रेस से प्रभावित होने वाला दुनिया का सबसे प्रमुख क्षेत्र होगा।
कोलंबिया विश्वविद्यालय की नासा गोडार्ड इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस स्टडीज एवं सेंटर फार इंटरनेशनल अर्थ साइंस इन्फार्मेशन नेटवर्क के वैज्ञानिकों के जनवरी 2018 में प्रकाशित शोध पत्र में बढ़ती गर्मी का सबसे बड़ा खतरा हिमालयी पर्वत श्रंखला को बताया गया है। हिमालय भले ही एशिया के आठ देशों की सीमाओं तक विस्तार लिए हुए है, लेकिन सबसे अधिक खतरा भारतीय हिमालय पर ही मंडरा रहा है।
ऐसी संभावना भी है कि सदी के मध्य अथवा उत्तरार्ध में गर्माहट सहन करने की मानव क्षमता ही बेहद कम हो जाएगी। गोविंद बल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय के पर्यावरण वैज्ञानिक डॉ. वीर सिंह का कहना है कि शोध हमें चेता रहे है। हिमालयी क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन गंभीर चेतावनी है। इस पर अभी ध्यान नहीं दिया गया तो बाद में बहुत देर हो जाएगी।
हैरान करने वाले आंकड़े
वायुमंडल में कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा बढ़कर 410 पीपीएम (पार्ट्स पर मिलियन) हो चुकी है, जो कि खतरे की घंटी है। यह 18वीं शताब्दी के अंत में 280 पीपीएम मापी गई थी। इस गर्माहट के सबसे अधिक शिकार हिमालय हो रहा हैं।
तप रहा है हिमालय
जीबी पंत विवि के शोधार्थी श्रेष्ठा, गौतम एवं बावा के शोधपत्र के अनुसार 1982 से 2006 तक हिमालय का तापक्रम 1.5 डिग्री सेल्सियस अर्थात 0.6 डिग्री प्रतिवर्ष की दर से बढ़ा, जो अत्यंत गंभीर है। उत्तराखंड में सार्वभौमिक गर्माहट की स्थानीय हलचल खतरे की ओर संकेत करती है। वर्ष 1911 में यहां का औसत तापमान 21.0 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचता था, जो अब बढ़कर 23.5 डिग्री सेल्सियस हो गया है।