सावन में शिव: आदिशक्ति और अनंत की उपासना
आध्यात्मिकता और परंपरा के पवित्र संगम का उत्सव
सावन का महीना भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं में विशेष स्थान रखता है। इस महीने में भगवान शिव की उपासना का विशेष महत्व है। शिव, जो अनंत और आदिशक्ति के प्रतीक हैं, काशी के कण-कण में विराजमान हैं। काशी के विश्वनाथ मंदिर को बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है और सावन के महीने में यहां भक्तों की अपार भीड़ उमड़ती है।
जुलाई से अगस्त का महीना विविध त्योहारों से परिपूर्ण होता है। इस दौरान काली पूजा, एकादशी, नाग पंचमी, और रक्षाबंधन जैसे पर्व मनाए जाते हैं। इन त्योहारों के बीच धरती हरी-भरी हो जाती है, जिससे वातावरण में नई ऊर्जा का संचार होता है। इस समय भगवान शिव की आराधना विशेष फलदायी मानी जाती है।
भगवान शिव को संतुष्टि और शांति का प्रतीक माना जाता है। उनके अनंत स्वरूप के कारण वे समस्त ब्रह्मांड में व्याप्त हैं। सावन मास को सर्वोत्तम मास कहा जाता है, क्योंकि इस महीने में भगवान शिव ने पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल जाने का निर्णय लिया था। वहाँ उनका स्वागत अभिषेक और जलाभिषेक से किया गया था।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, सावन मास में देवताओं और असुरों द्वारा समुद्र मंथन किया गया था। इस मंथन के दौरान जो हलाहल विष निकला, उसे भगवान शिव ने अपने कंठ में समाहित कर लिया ताकि संसार की रक्षा हो सके। विष को कंठ में धारण करने के कारण उनका कंठ नीला हो गया और वे नीलकंठ महादेव कहलाए। विष के प्रभाव को कम करने के लिए देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया। यही कारण है कि सावन मास में शिवलिंग पर जल चढ़ाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
भगवान शिव की महिमा का वर्णन एक प्रसिद्ध दोहे में मिलता है:
“करता करे ना कर सके,
शिव करे सो हो।
तीन लोक नौ खंड में,
महाकाल से बड़ा न कोय।”
इस दोहे में शिव की सर्वशक्तिमानता और अनंतता का गुणगान किया गया है। यह दोहा बताता है कि संसार में ऐसा कोई नहीं है जो महाकाल से बड़ा हो। भगवान शिव की कृपा से ही सभी कार्य संपन्न होते हैं और वे ही सृष्टि के रक्षक हैं।
सावन का महीना शिवभक्तों के लिए एक विशेष समय होता है, जब वे भगवान शिव की उपासना कर अपने जीवन को पवित्र और समृद्ध बना सकते हैं। सावन माह की सभी को शुभकामनाएँ, इस आशा के साथ कि भगवान शिव की कृपा सब पर बनी रहे और सबके जीवन में शांति और समृद्धि आए।